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Showing posts from January, 2020

बसंत

याद आता है वो बसंत...... भारत में पूरे साल को छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों में सरसों का सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। फूलों पर भर भर भंवरे भंवराने लगते। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु देवी, सरस्वती और कामदेव की पूजा होती| यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी के नाम से भी उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है। बसंत का प्रतीकात्मक शुभ रंग पीला है और इस दिन पीले चावल और लड्डू का अपना ही महत्व है। मुझे याद है जब हमारे गांव में वसंत आता था तो आम के पेड़ों में बौर खोजे जाते थे, और उस बौर की सुगंध आज भी मन में बसी हुई है| हमारे नए पीले रंग वाले कपड़े आते, दादी-बाबा से लेकर मां-पिता, बुआ, बहन-भाई सब एक ही रंग में रंगे होते जैसे सब ने कोई यूनिफार्म पहन रखी हो।...

बचपन मे दादी के मुँह से एक लोक कहावत बहुधा साँझ सवेरे सुना करती थी मै यथा : बसो तेरी गोद में, उखाडों तेरी दाढ़ी ॥ आज दिल्ली मे अराजकता का जो लाइव कास्ट हुआ उसने उपरोक्त कहावत को पूर्णत: चरितार्थ कर दिया !क्या किसी देश का लोकतंत्र इतना उदार हो सकता है कि कुछ लोग देश के एक विशेष हिस्से को, एक विशेष भूभाग को देश से अलग करने की सामूहिक घोषणा कर रहे हो और देश धैर्य धरे मौन उनकी मूर्खतापूर्ण अराजकता को सहन कर रहा है वह भी तब जब मात्र एक दिन बाद हम दुनिया के सबसे सुंदर संविधान का स्थापना दिवस ( बर्थ डे ) मनाने की तैयारी मे लगे हो ? आज दिल्ली मे जो हुआ है उसे केवल हम आप ही नही देख रहे है बल्कि उसपर आज सारी दुनिया की नजर पहुँची है ! आज केवल हम आप ही नही जान पाए है बल्कि पूरी दुनिया जान, समझ, पायी है कि : 1947 मे आजाद हुई हमारी भारत माता की छाती पर गुलामी के कितने गहरे शूल अभी बाकी हैं ? गद्दारी और बटवारे का सपना पाले कितने अराजक तत्व देश के भीतर अभी जिन्दा है ! ऐसे अराजक तत्वों का मर्दन जरूरी हो गया है वह भी देश के गणतंत्र प्रणालि के द्वारा ! जरूरी हो गया है कि देश के गण के लिए 26 जनवरी 1950 को लागू किए गए सुंदर तंत्र का सख्ती से प्रयोग करते हुए इन अराजक चेहरो को, इन अराजक तत्वों को सबक सिखाया जाए ॥ ============================भारद्वाज अर्चिता 25/01/2020

बचपन मे दादी के मुँह से एक लोक कहावत बहुधा साँझ सवेरे सुना करती थी मै यथा :                       बसो तेरी गोद में,                     उखाडों तेरी दाढ़ी ॥  आज दिल्ली मे अराजकता का जो लाइव कास्ट हुआ उसने उपरोक्त कहावत को पूर्णत: चरितार्थ कर दिया ! क्या किसी देश का लोकतंत्र इतना उदार हो सकता है कि कुछ लोग देश के एक विशेष हिस्से को, एक विशेष भूभाग को देश से अलग करने की सामूहिक घोषणा कर रहे हो और देश धैर्य धरे मौन उनकी मूर्खतापूर्ण अराजकता को सहन कर रहा है वह भी तब जब मात्र एक दिन बाद हम दुनिया के सबसे सुंदर संविधान का स्थापना दिवस ( बर्थ डे ) मनाने की तैयारी मे लगे हो ?  आज दिल्ली मे जो हुआ है उसे केवल हम आप ही नही देख रहे है बल्कि उसपर आज सारी दुनिया की नजर पहुँची है ! आज केवल हम आप ही नही जान पाए है बल्कि पूरी दुनिया जान, समझ, पायी है कि :  1947 मे आजाद हुई हमारी भारत माता की छाती पर गुलामी के कितने गहरे शूल अभी बाकी हैं ?  गद्दारी और बटवारे का सपना पाले कितने...
नई दिल्‍ली पहुंचे ब्राजील के राष्ट्रपति बोलसोनारो, 26 जनवरी परेड में होंगे मुख्य अतिथि नई दिल्‍ली, एजेंसी ।  ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर मेसियस बोलसोनारो अपनी चार दिवसीय यात्रा पर आज नई दिल्‍ली पहुंच गए हैं। वह गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर हिस्सा लेंगे। ब्राजील का राष्ट्रपति बनने के बाद बोलसोनारो की यह पहली भारत यात्रा होगी। उनके साथ उनकी कैबिनेट के आठ मंत्री एंव एक बड़े व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल के साथ दिल्ली आ रहे हैं। इस दौरान दोनों देशों के बीच 15 समझौते पर हस्ताक्षर होंगे। बता दें कि यह भारत में राष्ट्रपति बोलसोनारो का पहला राजकीय दौरा है। इससे पहले 1996 और 2004 में हमारे गणतंत्र दिवस परेड में ब्राजील के राष्ट्रपति मुख्य अतिथि रह चुके हैं ।  बता दें कि 11वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने बोलसोनारो को गणतंत्र दिवस समारोह का निमंत्रण दिया था, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया था। उनकी यात्रा का दूसरा दिन कई व्यस्तताओं से भरा हुआ है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी बैठक भी शामिल है। इसके बाद विभिन्न क्षेत्रों में भारत और ब्राज...

गण

गणतन्त्र दिवस (भारत) भारत गणराज्य द्वारा गणतंत् गणतन्त्र दिवस   भारत  का एक राष्ट्रीय पर्व है जो प्रति वर्ष  26 जनवरी  को मनाया जाता है। इसी दिन सन्  1950  को  भारत सरकार अधिनियम (एक्ट)  (1935) को हटाकर  भारत का संविधान  लागू किया गया था। एक स्वतंत्र  गणराज्य  बनने और देश में  कानून  का राज स्थापित करने के लिए संविधान को  26 नवम्बर   1949  को भारतीय संविधान सभा द्वारा अपनाया गया और  26 जनवरी  1950 को इसे एक लोकतांत्रिक सरकार प्रणाली के साथ लागू किया गया था। 26 जनवरी को इसलिए चुना गया था क्योंकि 1930 में इसी दिन  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस  (आई० एन० सी०) ने भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया था। यह भारत के तीन  राष्ट्रीय अवकाशों  में से एक है, अन्य दो  स्‍वतंत्रता दिवस  और  गांधी जयंती  ह

जी करता हैमलंग होकर नाचूं,बेखुदी सी होने लगती है! देशप्रेम की गंगा आँखों से झरवतन की सरजमीं भिगोने लगती है! न जाने कौन सी तासीर है इन तीन रंगों में! कि तिरंगा हाथ में लेते ही सुध-बुध खोने लगती है! आप सभी को 71 वें गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं! आइए, प्रण लें कि इन दिनों हमारे इस गणतंत्र को छिन्न-भिन्न करने का जो कुत्सित प्रयास किया जा रहा है उसके खिलाफ पूरी ताकत से खड़े होकर लड़ेगें और देश की अखंडता की रक्षा करेंगें! कीमत फिर चाहे जो भी हो! जय हिंद! जय भारत!

जी करता है मलंग होकर नाचूं, बेखुदी सी होने लगती है!  देशप्रेम की गंगा आँखों से झर वतन की सरजमीं भिगोने लगती है!  न जाने कौन सी तासीर है इन तीन रंगों में!  कि तिरंगा हाथ में लेते ही सुध-बुध खोने लगती है!  आप सभी को 71 वें गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं!   आइए,  प्रण लें कि इन दिनों हमारे इस गणतंत्र को छिन्न-भिन्न करने का जो कुत्सित प्रयास किया जा रहा है उसके खिलाफ पूरी ताकत से खड़े होकर लड़ेगें और देश की अखंडता की रक्षा करेंगें!  कीमत फिर चाहे जो भी हो!  जय हिंद!  जय भारत!

उत्तर प्रदेश स्थापना दिवस विशेष : चाहे बनारस के घाट एवम बनारसी साड़ियों का बेहतरीन काम हो, चाहे खुर्जा का जगत प्रसिद्ध पॉटरी का काम (pottery work), चाहे सहारनपुर का लकड़ी का काम हो, चाहे मुरादाबाद के हस्तशिल्प एवम पीतल के बर्ततनो की बेजोड कारीगरी, चाहे बरेली की जरी जरदोजी काम हो, चाहे अलीगढ के ताले, चाहे आगरा का कई कलेवर कई फ्लेवर मे अपनी मिठास से दुनिया को लुभाने वाला पेठा हो, चाहे प्रयागराज संगम नगरी स्थित माघ मेला, और नेतराम की चटपटी कचौडी का देश भर की जुबान पर कायम स्वाद हो, चाहे कानपुर का लैदर, चाहे लखनऊ का चिकन वर्क और नवाबी खाना, चाहे चंदौसी का शुद्ध देसी घी, चाहे कृष्ण नगरी मथुरा के लाजवाब देशी पेडे, चाहे गोरखपुर जिले के गोरखनाथ मंदिर मे महिने भर चलने वाला खिचड़ी मेला, सनातनी ज्ञान - विज्ञान से विश्व को परिचित कराते हुए नैतिकता से जोड़ता हुआ गोरखपुर का गीता प्रेस, एवम गोलघर स्थित अग्रवाल आइसक्रीम वाले की दर्जन भर फ्लेवर मे परोसी जाने वाली आइसक्रीम और मूंग दाल का गरमागरम पकौड़ा हो, या के अयोद्धया नगरी का मनोरम सरयू तट हो !? कला, संस्कृति, सभ्यता, संस्कार, ज्ञान - विज्ञान, प्रकृति एवम धरोहरो से लबालब भरे हुए हमारे थोडे अक्खड तो थोडे फक्कड प्रदेश, उत्तर प्रदेश में एक बात तो है की इसके किसी भी भूभाग पर हम भ्रमण करने जाएँ, इसके हर उस भूभाग से जुड़ा इसका एक अनोखा एहसास हमे बहुत ही पवित्रता से स्पर्श करते हुए बरबस ही अपनी तरफ आकर्षित करता है, उत्तर प्ररदेश की मेहमान नवाजी एवम खाने - पीने की स्थानीय विशेषताऐ भी इसे विशेष बनाती है ! इन उपरोक्त विशेषताओ के चलते ही इस बात पर गर्व होता है कि : मैं भी उस उत्तर प्रदेश की वासी हूँ , जहां राम और कृष्ण ने जन्म लिया, जहाँ की गंगा जमुनी तहजीब की दुनिया कायल रही है ! सभी को उत्तर प्रदेश स्थापना दिवस की अशेष बधाई ॥ ================== कलम से : भारद्वाज अर्चिता

उत्तर प्रदेश स्थापना दिवस विशेष :  चाहे बनारस के घाट एवम बनारसी साड़ियों का बेहतरीन काम हो, चाहे खुर्जा का जगत प्रसिद्ध पॉटरी का काम (pottery work),  चाहे सहारनपुर का लकड़ी का काम हो, चाहे मुरादाबाद के हस्तशिल्प एवम पीतल के बर्ततनो की बेजोड कारीगरी, चाहे बरेली की जरी जरदोजी काम हो, चाहे अलीगढ के ताले, चाहे आगरा का कई कलेवर कई फ्लेवर मे अपनी मिठास से दुनिया को लुभाने वाला पेठा हो, चाहे प्रयागराज संगम नगरी स्थित माघ मेला, और नेतराम की चटपटी कचौडी का देश भर की जुबान पर कायम स्वाद हो, चाहे कानपुर का लैदर, चाहे लखनऊ का चिकन वर्क और नवाबी खाना, चाहे चंदौसी का शुद्ध देसी घी, चाहे कृष्ण नगरी मथुरा के लाजवाब देशी पेडे, चाहे गोरखपुर जिले के गोरखनाथ मंदिर मे महिने भर चलने वाला खिचड़ी मेला, सनातनी ज्ञान - विज्ञान से विश्व को परिचित कराते हुए नैतिकता से जोड़ता हुआ गोरखपुर का गीता प्रेस, एवम गोलघर स्थित अग्रवाल आइसक्रीम वाले की दर्जन भर फ्लेवर मे परोसी जाने वाली आइसक्रीम और मूंग दाल का गरमागरम पकौड़ा हो, या के अयोद्धया नगरी का मनोरम सरयू तट हो !?  कला, संस्कृति, स...

उत्तराखंड में कुछ इस तरह से मनाया जाता है संक्रांति का त्योहार काले कौआ : ले कौवा पुलेणी, मी कें दे भल-भल धुलेणीपूस की कुड़कुड़ा देने वाली ठंड, कितना ही ओढ़ बिछा लो, पंखी, लोई लिपटा लो कुड़कुड़ाट बनी रहती. नाक से भी पानी चूता रहता. नानतिनों की क्या कहें, ठुले जवान बुड़-बाड़ि स्वीटर, फतुई, कुरता, जो पहना हो में नाक रगड़ ही लेते. आद मर्चवानी चाहा की कितली उबलती रहती. ऐसे ही पूस के मासांत की रात या मकर संक्रांन्ति की पुष्यूड़िया मनाया जाता घुघुतिया त्यार. मोटे आटे में घी का मोयन डाल इसे एकसार मसल देते. फिर अंदाजे से गुड़ का पाग मिला सख्त गूँथ लिया जाता. अब इससे बनते खजूरे. खजूरे के साथ ही दाड़िम का फूल, ढाल तलवार, घुघुते, पुलेनि, छोटी पूरी बनाई जाती. सांकल का आकार दे कर मोडा जाता. डमरू जैसा हुड़का भी बनता इनको तलने में डालडा या तेल का उपयोग होता. जैसे ही यह सिक जाते. बड़े स्युड में मोटे धागे या ऊन में इन्हें पिरो कर माला बना ली जाती.पहले भाँग की डोरी में भी पिरोया जाता था बल. माला के बीच बीच में मूंगफली, तालमखाने और बड़े भी पिरोये जाते. नारंगी का दाना भी. घर के हर बच्चे के लिए तो माला बनती ही. भगवान जी के लिए भी चढाई जाती. अगल बगल पडोसी और बिरादरों के साथ माल -मैदान -परदेश गए मित्रों के नाम की भी एक -एक माला बनती. घुघुते की माला इग्यारा, इक्कीस, इकावन, एकसौआठ घुघुतों से बनती. दूसरे दिन सुबह बच्चों का कौतुक होता. घर की छत से या खुले में काले काले की धाल लगा कौवे की पुकार लगती. कौवों की खूब मिन्नत होतीं ढाल, तलवार, पुलेंणी जो भी माला में होता उसे दे उससे मांग भी की जाती. कौओं के लिए अलग से भी लगड़, पूरी, बड़ा रखा जाता. बड़े बूढ़े कहते कि कौवा सुबे सुबे बागेश्वर सरयू में नहा धो के आता है. सरयू के उत्तर वाले इलाके गंगोली, सोर, कुमूँ में काले कऊवा मासांत को मना कर संक्रांति को कौआ बुलाया जाता है. तो सरयू के दक्षिण वाले भाग में संक्रांति के दिन त्यार मना माघ की दो गते सुबे-सुबे कौआ बुलाया जाता है. संक्रांति के दिन का भात तो कौवे के लिए रखा ही जाता है. ह्यून या हेमंत में खूब जाड़ा पड़ता. खेती का काम भी कम होता. घास के पुले और लकड़ी के गट्ठर पहले ही सार लिए जाते. गोठ-भकार हैसियत के हिसाब से भरे रहते. भट्ट, गहत भाँग, गुड़, चुवा, च्यूड़, निम्बू चूक, गदुवा, गड़ेरी घुइयां, तिल बदन की गर्मी बनाये रखने को पूस में खूब खायी जातीं. पूस माह में इतवार को उपवास किया जाता. दूध और नमक नहीं खाते. सूरज दिखने पर उसकी पूजा होती. तब तक आग सेकना, तात पाणि में हाथ लगाना, चाय पीने का भी परहेज होता. मकर संक्रांति के दिन ठया या पूजा घर में चौकी पर लाल वस्त्र बिछा अक्षतों का अष्टदल बना सूर्य भगवान की मूर्ति को स्थापित करते हैं. फिर षोडशोपचार पूजा होती.आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ होता है. घी, चीनी, तिल, मेवे से हवन किया जाता है. “ॐ भगवते सूर्याय, ॐ सूर्याय नमः मंत्र का जाप करते हैं. अन्नम , स्नानं, जपो, होमो देवतानाम च पूजनम, उपवास्तथा दानमेकेंक पावनं स्मृतम. संक्रांति यानि दत्तानि हव्यकव्यानि दातृभि:तानि नित्यं ददात्यक: पुनर्जनमानि जन्मानि.घुघूती त्यार के बारे में एक काथ कुमाऊं के चंदवंशीय राज से भी जुड़ी है. जब राजा कल्याण चंद के पुत्र निर्भय चंद का अपहरण राजा के मंत्री ने कर लिया. निर्भय चंद को लाड़ से घुघूती कहा जाता था. तभी एक कौवे ने कांव-कांव कर घुघूती को छुपाये स्थान का भेद दे दिया. बस राजा ने खुश हो कर कौवों को मीठा खिलाने का चलन शुरू किया और इसे घुघूती त्यार नाम मिला. मकर संक्रांति का दिन इस लिहाज से भी यादगार बन गया। सभी को घुघुतिया त्यौहार की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏 साभार -मृगेश पाण्डे काफल ट्री

उत्तराखंड में कुछ इस तरह से मनाया जाता है संक्रांति का त्योहार  काले कौआ : ले कौवा पुलेणी, मी कें दे भल-भल धुलेणी पूस की कुड़कुड़ा देने वाली ठंड, कितना ही ओढ़ बिछा लो, पंखी, लोई लिपटा लो कुड़कुड़ाट बनी  रहती. नाक से भी पानी चूता रहता. नानतिनों की क्या कहें,  ठुले जवान बुड़-बाड़ि स्वीटर, फतुई, कुरता, जो पहना हो में नाक रगड़ ही लेते. आद मर्चवानी चाहा की कितली उबलती रहती. ऐसे ही पूस के मासांत की रात या मकर संक्रांन्ति की पुष्यूड़िया मनाया जाता घुघुतिया त्यार.  मोटे आटे में घी का मोयन डाल इसे एकसार मसल देते. फिर अंदाजे से गुड़ का पाग मिला सख्त गूँथ लिया जाता. अब इससे बनते खजूरे. खजूरे के साथ ही दाड़िम का फूल, ढाल तलवार, घुघुते, पुलेनि, छोटी पूरी बनाई जाती. सांकल का आकार दे कर मोडा जाता. डमरू जैसा हुड़का भी बनता इनको तलने में डालडा या तेल का उपयोग होता. जैसे ही यह सिक जाते. बड़े स्युड में मोटे धागे या ऊन में इन्हें पिरो कर माला बना ली जाती. पहले भाँग की डोरी में भी पिरोया जाता था बल.  माला के बीच बीच में मूंगफली, तालमखाने और बड़े भी पिरोये जाते. नारंगी का दाना भी. घर...

उफ्फ हम मध्यम वर्गीय लोग “middle class people” जिंदगी भर जिंदगी को केवल बेहतर करने के चक्कर मे ही डूबते-उतराते रह जाते हैं ! गरीब होना नहीं चाहते और अमीर होने की कूबत अपने भीतर पालते तो है पर सत्य धरातल पर उसे फलिभूँत होते देखने का धैर्य रख नही पाते परिणति यह होती है कि : गरीबों के तिरस्कार और अमीरों की नकल करने मे ही हमारे सिर के बाल सफेद हो जाते है अर्ची !

उफ्फ हम मध्यम वर्गीय लोग “middle class people” जिंदगी भर जिंदगी को केवल बेहतर करने के चक्कर मे ही डूबते-उतराते रह जाते हैं !  गरीब होना नहीं चाहते और अमीर होने की कूबत अपने भीतर पालते तो है पर सत्य धरातल पर उसे फलिभूँत होते देखने का धैर्य रख नही पाते परिणति यह होती है कि :  गरीबों के तिरस्कार और अमीरों की नकल करने मे ही हमारे सिर के बाल सफेद हो जाते है अर्ची ! 
विद्यालय में आज  प्रधानमंत्री जी के 'परीक्षा पे चर्चा' कार्यक्रम का प्रसारण किया जा रहा है।उत्साह का माहौल है। बच्चे खुश है। जिस बात पर प्रसन्न हो रहे हैं, ताली बजा रहे है। यह खुशी का विषय है, खुशी का एक कारण और है कि इस बार इस कार्यक्रम का संचालन केंद्रीय विद्यालय के बच्चे कर रहें है। मैं सोचता हूँ तो आश्चर्य होता है प्रधानमंत्री के विराट सोच को देखकर। क्या कोई प्रधानमंत्री  राष्ट्र के बच्चों के परीक्षा के दौरान उत्पन्न तनाव की चिंता भी कर सकता है? यह तभी संभव है जब व्यक्ति राष्ट्र को विराट परिवार के रूप में देखता हो। बिल्कुल एक अभिभावक की तरह। प्रधानमंत्री पद के लिहाज से यह एक बहुत छोटी चीज़ है। अमूमन प्रधानमंत्री इस तरह की समस्याओं की चिंता नही करते। कारण, प्रधानमंत्री जैसे पद पर आसीन व्यक्ति के पास समयाभाव होता है।और भी बहुत महत्वपूर्ण कार्य उनके जिम्मे होते हैं। खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि कायदे से यह कार्य हमें(अध्यापकों) को करना चाहिए था लेकिन प्रधानमंत्री को करना पड़ रहा है। इस महती अवसर पर मैं समस्त केंद्रीय विद्यालय परिवार की ओर से प्रधानमंत्री को धन्यवाद ज्ञापित करता...

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भारत (India)   हिन्दी खोज होम  ›  योग के बारे में (yoga)  ›  स्वास्थ्य और आरोग्य (health & wellness) उच्च रक्तचाप हेतु योगासन | Yoga for High Blood Pressure योग के नियमित अभ्यास से शरीर रोगों के प्रति अधिक प्रतिरोधी होता है। साथ ही रोज मर्रा के तनावो का प्रभाव भी कम होता है| यदि लोग योग का सही प्रशिक्षण लें और सतत अभ्यास करे तो योग सभी के लिए लाभकारी है। योग का नियमित अभ्यास शरीर को निम्न प्रकार से लाभ पहुँचाता है। योग पाचन, रक्त परिसंचरण और रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति को बेहतर करता है। योग से तंत्रिकाओं और अंतः स्रावी ग्रंथियों के कार्य क्षमता में वृद्धि होती है। योग पुरानी बीमारियों में आराम पहुँचाता है और उन्हे रोकता भी है जैसे की - उच्च रक्तचाप पुराने दर्द की समस्या चिंता  व घबड़ाहट की समस्या अवसाद ( Depression) नींद की समस्या पुरानी थकावट की समस्या श्री श्री योग योग आसन के हर पहलू पर ध्यान देता है, प्रारंभ से अंत तक, साथ ही आसन को श्वास के साथ जोड़ता है। निम्नलिखित आसन और प्राणायाम रक्तचाप को कम करने में प्रभावी हैं। उन्हे अभ्यास में लाने से पहले उचित प...

आज मुझे प्रिंस हैरी की मदर प्रिंसेस डायना के वह शब्द याद आ रहे है जिन्हे मैने टीवी पर अपने बचपन मे सुना था स्वयम प्रिंसेस के मुँह से : मैं ब्रिटेन की जनता के दिलों पर राज करना चाहती हूँ इस लिए कभी ब्रिटेन के साही राज घराने की महारानी नही बन सकती !” कुछ ख़बरें इतिहास में दर्ज़ हो जाती हैं..कुछ निर्णय इतिहास में अमर हो जाते हैं..ऐसी ही एक ख़बर इन दिनों ब्रिटेश के शाही राजघराने से आई है.. कुछ समय पहले शादी के डोर में बंधे रॉयल कपल प्रिंस हैरी और मेगन मर्केल ने राजशाही सदस्यता से खुद को अलग कर लिया है। चकाचौंध की दुनिया से मुक्ति ले ली है.. एलिज़ाबेथ ने उन्हे फौरी तौर पर तो मुक्त किया है..लेकिन अस्थाई तौर पर..अब शायद वे कनाडा जाकर आम लोगों की तरह जीवन बितायें...कुछ समय पहले हुई इनकी शादी में मानों पूरी दुनिया बाराती बनी थी...हर कोई इस शादी को लेकर उत्साहित था... करोड़ों लोग इस शादी को लाइव देख रहे थे! इस शादी की मानों दुनिया दीवानी थी! लेकिन अब इन दोनों ने सहमति से लिए इस फैसले से पूरी दुनिया को चौंका दिया है! इन दोनों ने राजशाही सदस्यता से खुद को अलग कर लिया है...अब ये दोनों सुकून की तलाश में निकलेंगे..अपने अनुसार जीयेंगे..कोई प्रोटोकॉल नहीं होगा.. कोई रोकने-टोकने वाला नहीं होगा.. कोई दबाव नहीं होगा..मीडिया वाले दिनरात आसपास इकट्ठा होकर पल-पल का लाइव टेलीकॉस्ट नहीं करेंगे..अब ये दोनों रोज़-रोज़ के राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय अख़बारों की सुर्ख़ियां नहीं होंगे.. उससे इन्हें मुक्ति मिल जाएगी ! कुल मिलाकर अब ये दोनों दुनियाभर की पब्लिसिटी और चकाचौंध भरे राजशाही जीवन से बहुत दूर, अपने अनुसार सुकून से जी सकेंगे...सोचिए, आज के समय में, जब हर कोई खुद को ओवरइस्टीमेट करवाने, सुर्ख़ियां पाने, पहचान बनाने, पब्लिसिटी पाने के लिए न जाने किस-किस हद से गुज़र जाता है, उस दौर में शाही जोड़े का यह निर्णय अपने आप में ऐतिहासिक है.. जिसके पास कुछ नहीं है, वह सब कुछ पाने की दौड़ में मरा जाता है..और जिसके पास किसी चीज की कमी नहीं होती, वह सारी उपलब्धियों और चकाचौंधपूर्ण रॉयल लाइफ़ को एक झटके में लात मार दे रहा है!माना जा रहा है कि इस शाही जोड़े ने मीडिया के कैमरों की दुनिया और चकाचौंध भरे जीवन से ऊबकर ऐसा निर्णय लिया है...मुझे यहां गौतम बुद्ध की अनायास याद आ रही है। हालांकि अभी भी इनमें और बुद्ध में जमीन-आसमां का अंतर है...पर बात कुछ कुछ वैसी है.. मेरा मानना है कि जब आप दुनिया की लगभग सारी सुविधाओं का पूर्णत: भोग कर लेते हैं, तभी आप में चकाचौंध का आकर्षण ख़त्म हो पाता है.. भूखा-नंगा व्यक्ति/समाज कभी भी मोह, माया और आडंबरों से मुक्त नहीं हो सकता.. अभाव में पला-बढ़ा व्यक्ति/समाज हमेशा धन व पब्लिसिटी की ओर दौड़ता रहा है और दौड़ता रहेगा..कुछ अपवाद होते होंगे..इस घटना पर आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक और मानव स्वभाव को इंटरकनेक्ट करते हुए किताबें लिखी जा सकती हैं...एक फेसबुक पोस्ट में सबकुछ समाहित कर पाना संभव नहीं है... बस यहां इतना समझ लीजिए कि कोई व्यक्ति/समाज भीतर से बड़प्पनभाव, आत्मविश्वास और खुशहाली से जितना ही भरा होता है, वह चकाचौंध, आडंबर, दिखावे और पहचान बनाने की भिखमंगी दौड़ से उतना ही कम आकर्षित होता है...ऐसा व्यक्ति दुनिया में पब्लिसिटी पाने के लिए नहीं मरता...बल्कि वह शांति ढूंढ़ता है..एकांत ढूंढ़ता है..खुद के लिए समय ढूंढ़ता है..क्योंकि उसे पता होता है कि पब्लिसिटी पाने की बाहरी दौड़ में अनगिनत लोगों का जीवन हाथ से फिसलता चला गया...कुछ हासिल नही होता..दरिद्रता व हीनता के भाव से ग्रसित कमजोर आत्मविश्वास के व्यक्ति/समाज को लगता है, बाहर की दुनिया में अगर मैं खुद को साबित कर दिखाता हूं तो मैं बड़ा कहा जाऊंगा..वह भौकाल टाइट करता है.. वाक़-पटुता से बात करते हुए, खुद के 5 को 50 साबित करता है..बुरा मत मानना..एशिया और अफ्रीका के औपनिवेश रहे देशों को यह पुश्तैनी संक्रामक बीमारी मिल चुकी है.. विश्वास न हो, तो आप जहां भी हों, जिस भी राज्य में हों, जिस भी समाज में हों, वहां देख सकते हैं..हर व्यक्ति खुद को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता फिर रहा होगा..भारत व अफ्रीका का पीढ़ियों ग़ुलामी किया समाज धन, पद, प्रतिष्ठा, गाड़ी, बंगला, कार, दौलत, शोहरत, पब्लिसिटी इत्यादि की दौड़ में मरा जा रहा है! और ऐसा होना शतप्रतिशत स्वभाविक है..इसीलिए अब बुद्ध या कृष्ण की भारतभूमि बुद्धपुरुषों को जन्म देना भूल चुकी है.. पश्चिमी चकाचौंध, असीमित बाजार और पिछलग्गूपने में आकर भारतभूमि अपनी उत्पादकता खो चुकी है...फिर बुरा मत मानना.. इस मामले में यूरोप हमसे आगे निकल गया.. क्योंकि उसने सदियों ग़ुलामी नहीं झेली.. वह भौतिकवाद को सबसे ज़्यादा उपभोग करके तृप्त हो चुका है..जबकि हमने (अपने भारत ने) पीढ़ियों तक ग़ुलामी झेली है.. ग़ुलामी, ग़रीबी और दासता से हम हीनता के शिकार हो गये..नतीजन हमारा समाज भीतरी हीनता को भरने के दौड़ में बुद्ध और कृष्ण पैदा करने की क्षमता भूल बैठा...! फिर भी हमारी सच्ची सनातन आध्यात्मिकता हमारी ताकत है..हालांकि भारत में भी अक्सर कई बड़े पूंजींपति, कई बड़ी नौकरी करने वाले युवक, युवतियां दुनिया की मगझमारी से ऊबकर, अपनी अरबों की संपत्ति दान करके, शांति व सुकून की खोज में, हमेशा के लिए सपरिवार एकांत द्वीपों पर निकल जाते हैं..लेकिन मीडिया द्वारा ऐसी ख़बरों को दबा दिया जाता है... उन्हें लगता है, इससे समाज पर बुरा असर पड़ेगा..लोग बुद्ध के मार्ग पर चल निकलेंगे..महावीर को ढूंढने लगेंगे..जबकि मेरा मानना है, ऐसी ख़बरों को खूब प्रसारित किया जाना चाहिए, ताकि लोग आपाधापी, लड़ाई, दंगे, महत्वाकांक्षा की अंधी दौड़ इत्यादि से मुक्त होकर शांतिपथ पर बढ़ सकें और दुनिया में शांति स्थापित की जा सके.. आप नेट पर सर्च करके उन सबके बारे में भी इत्मिनान से पढ़ सकते हैं..😊

आज मुझे प्रिंस हैरी की मदर प्रिंसेस डायना के वह शब्द याद आ रहे है जिन्हे मैने टीवी पर अपने बचपन मे सुना था स्वयम प्रिंसेस के मुँह से : मैं ब्रिटेन की जनता के दिलों पर राज करना चाहती हूँ इस लिए कभी ब्रिटेन के साही राज घराने की महारानी नही बन सकती !”  कुछ ख़बरें इतिहास में दर्ज़ हो जाती हैं..कुछ निर्णय इतिहास में अमर हो जाते हैं..ऐसी ही एक ख़बर इन दिनों ब्रिटेश के शाही राजघराने से आई है.. कुछ समय पहले शादी के डोर में बंधे रॉयल कपल प्रिंस हैरी और मेगन मर्केल ने राजशाही सदस्यता से खुद को अलग कर लिया है। चकाचौंध की दुनिया से मुक्ति ले ली है.. एलिज़ाबेथ ने उन्हे फौरी तौर पर तो मुक्त किया है..लेकिन अस्थाई तौर पर..अब शायद वे कनाडा जाकर आम लोगों की तरह जीवन बितायें... कुछ समय पहले हुई इनकी शादी में मानों पूरी दुनिया बाराती बनी थी...हर कोई इस शादी को लेकर उत्साहित था... करोड़ों लोग इस शादी को लाइव देख रहे थे! इस शादी की मानों दुनिया दीवानी थी! लेकिन अब इन दोनों ने सहमति से लिए इस फैसले से पूरी दुनिया को चौंका दिया है! इन दोनों ने राजशाही सदस्यता से खुद को अलग कर लिया है... अब ये दोनों सुकून की त...

मन कर रहा है WhatsApp, Messenger, सब बन्द कर दूँ और 1941 के दौर वाली परम्परा अपनाऊँ मै, हर हफ्ते तुम्हे एक लम्बा सा खत लिखूँ और फिर : हफ्ता भर रोज शाम को उस राह की तरफ गहरी उम्मीद से निहारू जिस राह से भूरी वर्दी वाला डाकिया चिट्ठी का झोला लटकाए ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंगअपनी साइकिल की घंटी बजाता हुआ आता है,वह डाकिया मेरे घर के सामने रूके और मै इशारों .....इशारों ...मे उससे पूछूँ मेरी भी कोई चिट्ठी आई है क्या ?मेरे मौन इशारों पर डाकिया मुस्कुरा दे और हाँ मे तुम्हारी चिट्ठी मेरी तरफ बढ़ा दे, फिर तुम्हारी उस चिट्ठी को मै आहिस्ता से तब खोलूँ जब रात गहरा जाए बडे बुजूर्गोँ के अदब का पहरा कम हो जाए फिर एक नही एक हजार बार एक एक शब्द पढ़ूँ

मन कर रहा है  WhatsApp, Messenger, सब बन्द कर दूँ  और 1941 के दौर वाली परम्परा अपनाऊँ मै,  हर हफ्ते तुम्हे एक लम्बा सा खत लिखूँ  और फिर :  हफ्ता भर रोज शाम को  उस राह की तरफ गहरी उम्मीद से निहारू  जिस राह से भूरी वर्दी वाला डाकिया  चिट्ठी का झोला लटकाए  ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग अपनी साइकिल की घंटी बजाता हुआ आता है, वह डाकिया मेरे घर के सामने रूके  और मै इशारों .....इशारों ...मे उससे पूछूँ  मेरी भी कोई चिट्ठी आई है क्या ? मेरे मौन इशारों पर डाकिया मुस्कुरा दे  और हाँ मे तुम्हारी चिट्ठी मेरी तरफ बढ़ा दे,  फिर तुम्हारी उस चिट्ठी को मै  आहिस्ता से तब खोलूँ  जब रात गहरा जाए  बडे बुजूर्गोँ के अदब का पहरा कम हो जाए  फिर एक नही एक हजार बार  एक एक शब्द पढ़ूँ

मूंगफली दी खूशबूते गुड़ दी मिठास, मक्के दी रोटीते सरसों दा सागदिल दी खुशी तेअपनों का प्यारमुबारक होवे त्वानूं खिचडी का त्योहार॥Happy माघ पर्व खिचडी 2020

मूंगफली दी खूशबू ते गुड़ दी मिठास, मक्के दी रोटी ते सरसों दा साग दिल दी खुशी ते अपनों का प्यार मुबारक होवे त्वानूं खिचडी का त्योहार॥ Happy माघ पर्व खिचडी 2020

आज स्त्रित्व की जो धारा पूरे युग को बुम्बाट गर्ल, दोधारी तलवार, शीला, मुन्नी, चमेली,जलेबी के रूप मे आकर्षित कर चल पड़ी हैँ ; पहले उसे, इस छम्मक छल्लोपन से मुक्त होना पड़ेगा। अगर यही हाल रहा तो भावी पीढ़ी 2030 तक भूल ही जायेगी कि नारी संवेदन सर्जक भी होती है। मुस्तक़बिल मेँ संवेदना बचाना है तो देह से मुक्त होकर स्त्रित्व बचाना होगा और यह कोशिश स्त्री और पुरूष दोनोँ को ही पूरी ईमानदारी से करना होगा।

आज स्त्रित्व की जो धारा पूरे युग को बुम्बाट गर्ल, दोधारी तलवार, शीला, मुन्नी, चमेली,जलेबी के रूप मे आकर्षित कर चल पड़ी हैँ ; पहले उसे, इस छम्मक छल्लोपन से मुक्त होना पड़ेगा। अगर यही हाल रहा तो भावी पीढ़ी 2030 तक भूल ही जायेगी कि नारी संवेदन सर्जक भी होती है। मुस्तक़बिल मेँ संवेदना बचाना है तो देह से मुक्त होकर स्त्रित्व बचाना होगा और यह कोशिश स्त्री और पुरूष दोनोँ को ही पूरी ईमानदारी से करना होगा।