बसंत
याद आता है वो बसंत...... भारत में पूरे साल को छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों में सरसों का सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। फूलों पर भर भर भंवरे भंवराने लगते। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु देवी, सरस्वती और कामदेव की पूजा होती| यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी के नाम से भी उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है। बसंत का प्रतीकात्मक शुभ रंग पीला है और इस दिन पीले चावल और लड्डू का अपना ही महत्व है। मुझे याद है जब हमारे गांव में वसंत आता था तो आम के पेड़ों में बौर खोजे जाते थे, और उस बौर की सुगंध आज भी मन में बसी हुई है| हमारे नए पीले रंग वाले कपड़े आते, दादी-बाबा से लेकर मां-पिता, बुआ, बहन-भाई सब एक ही रंग में रंगे होते जैसे सब ने कोई यूनिफार्म पहन रखी हो।...