आज स्त्रित्व की जो धारा पूरे युग को बुम्बाट गर्ल, दोधारी तलवार, शीला, मुन्नी, चमेली,जलेबी के रूप मे आकर्षित कर चल पड़ी हैँ ; पहले उसे, इस छम्मक छल्लोपन से मुक्त होना पड़ेगा। अगर यही हाल रहा तो भावी पीढ़ी 2030 तक भूल ही जायेगी कि नारी संवेदन सर्जक भी होती है। मुस्तक़बिल मेँ संवेदना बचाना है तो देह से मुक्त होकर स्त्रित्व बचाना होगा और यह कोशिश स्त्री और पुरूष दोनोँ को ही पूरी ईमानदारी से करना होगा।
आज स्त्रित्व की जो धारा पूरे युग को बुम्बाट गर्ल, दोधारी तलवार, शीला, मुन्नी, चमेली,जलेबी के रूप मे आकर्षित कर चल पड़ी हैँ ; पहले उसे, इस छम्मक छल्लोपन से मुक्त होना पड़ेगा। अगर यही हाल रहा तो भावी पीढ़ी 2030 तक भूल ही जायेगी कि नारी संवेदन सर्जक भी होती है। मुस्तक़बिल मेँ संवेदना बचाना है तो देह से मुक्त होकर स्त्रित्व बचाना होगा और यह कोशिश स्त्री और पुरूष दोनोँ को ही पूरी ईमानदारी से करना होगा।
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