आज मुझे प्रिंस हैरी की मदर प्रिंसेस डायना के वह शब्द याद आ रहे है जिन्हे मैने टीवी पर अपने बचपन मे सुना था स्वयम प्रिंसेस के मुँह से : मैं ब्रिटेन की जनता के दिलों पर राज करना चाहती हूँ इस लिए कभी ब्रिटेन के साही राज घराने की महारानी नही बन सकती !” कुछ ख़बरें इतिहास में दर्ज़ हो जाती हैं..कुछ निर्णय इतिहास में अमर हो जाते हैं..ऐसी ही एक ख़बर इन दिनों ब्रिटेश के शाही राजघराने से आई है.. कुछ समय पहले शादी के डोर में बंधे रॉयल कपल प्रिंस हैरी और मेगन मर्केल ने राजशाही सदस्यता से खुद को अलग कर लिया है। चकाचौंध की दुनिया से मुक्ति ले ली है.. एलिज़ाबेथ ने उन्हे फौरी तौर पर तो मुक्त किया है..लेकिन अस्थाई तौर पर..अब शायद वे कनाडा जाकर आम लोगों की तरह जीवन बितायें...कुछ समय पहले हुई इनकी शादी में मानों पूरी दुनिया बाराती बनी थी...हर कोई इस शादी को लेकर उत्साहित था... करोड़ों लोग इस शादी को लाइव देख रहे थे! इस शादी की मानों दुनिया दीवानी थी! लेकिन अब इन दोनों ने सहमति से लिए इस फैसले से पूरी दुनिया को चौंका दिया है! इन दोनों ने राजशाही सदस्यता से खुद को अलग कर लिया है...अब ये दोनों सुकून की तलाश में निकलेंगे..अपने अनुसार जीयेंगे..कोई प्रोटोकॉल नहीं होगा.. कोई रोकने-टोकने वाला नहीं होगा.. कोई दबाव नहीं होगा..मीडिया वाले दिनरात आसपास इकट्ठा होकर पल-पल का लाइव टेलीकॉस्ट नहीं करेंगे..अब ये दोनों रोज़-रोज़ के राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय अख़बारों की सुर्ख़ियां नहीं होंगे.. उससे इन्हें मुक्ति मिल जाएगी ! कुल मिलाकर अब ये दोनों दुनियाभर की पब्लिसिटी और चकाचौंध भरे राजशाही जीवन से बहुत दूर, अपने अनुसार सुकून से जी सकेंगे...सोचिए, आज के समय में, जब हर कोई खुद को ओवरइस्टीमेट करवाने, सुर्ख़ियां पाने, पहचान बनाने, पब्लिसिटी पाने के लिए न जाने किस-किस हद से गुज़र जाता है, उस दौर में शाही जोड़े का यह निर्णय अपने आप में ऐतिहासिक है.. जिसके पास कुछ नहीं है, वह सब कुछ पाने की दौड़ में मरा जाता है..और जिसके पास किसी चीज की कमी नहीं होती, वह सारी उपलब्धियों और चकाचौंधपूर्ण रॉयल लाइफ़ को एक झटके में लात मार दे रहा है!माना जा रहा है कि इस शाही जोड़े ने मीडिया के कैमरों की दुनिया और चकाचौंध भरे जीवन से ऊबकर ऐसा निर्णय लिया है...मुझे यहां गौतम बुद्ध की अनायास याद आ रही है। हालांकि अभी भी इनमें और बुद्ध में जमीन-आसमां का अंतर है...पर बात कुछ कुछ वैसी है.. मेरा मानना है कि जब आप दुनिया की लगभग सारी सुविधाओं का पूर्णत: भोग कर लेते हैं, तभी आप में चकाचौंध का आकर्षण ख़त्म हो पाता है.. भूखा-नंगा व्यक्ति/समाज कभी भी मोह, माया और आडंबरों से मुक्त नहीं हो सकता.. अभाव में पला-बढ़ा व्यक्ति/समाज हमेशा धन व पब्लिसिटी की ओर दौड़ता रहा है और दौड़ता रहेगा..कुछ अपवाद होते होंगे..इस घटना पर आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक और मानव स्वभाव को इंटरकनेक्ट करते हुए किताबें लिखी जा सकती हैं...एक फेसबुक पोस्ट में सबकुछ समाहित कर पाना संभव नहीं है... बस यहां इतना समझ लीजिए कि कोई व्यक्ति/समाज भीतर से बड़प्पनभाव, आत्मविश्वास और खुशहाली से जितना ही भरा होता है, वह चकाचौंध, आडंबर, दिखावे और पहचान बनाने की भिखमंगी दौड़ से उतना ही कम आकर्षित होता है...ऐसा व्यक्ति दुनिया में पब्लिसिटी पाने के लिए नहीं मरता...बल्कि वह शांति ढूंढ़ता है..एकांत ढूंढ़ता है..खुद के लिए समय ढूंढ़ता है..क्योंकि उसे पता होता है कि पब्लिसिटी पाने की बाहरी दौड़ में अनगिनत लोगों का जीवन हाथ से फिसलता चला गया...कुछ हासिल नही होता..दरिद्रता व हीनता के भाव से ग्रसित कमजोर आत्मविश्वास के व्यक्ति/समाज को लगता है, बाहर की दुनिया में अगर मैं खुद को साबित कर दिखाता हूं तो मैं बड़ा कहा जाऊंगा..वह भौकाल टाइट करता है.. वाक़-पटुता से बात करते हुए, खुद के 5 को 50 साबित करता है..बुरा मत मानना..एशिया और अफ्रीका के औपनिवेश रहे देशों को यह पुश्तैनी संक्रामक बीमारी मिल चुकी है.. विश्वास न हो, तो आप जहां भी हों, जिस भी राज्य में हों, जिस भी समाज में हों, वहां देख सकते हैं..हर व्यक्ति खुद को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता फिर रहा होगा..भारत व अफ्रीका का पीढ़ियों ग़ुलामी किया समाज धन, पद, प्रतिष्ठा, गाड़ी, बंगला, कार, दौलत, शोहरत, पब्लिसिटी इत्यादि की दौड़ में मरा जा रहा है! और ऐसा होना शतप्रतिशत स्वभाविक है..इसीलिए अब बुद्ध या कृष्ण की भारतभूमि बुद्धपुरुषों को जन्म देना भूल चुकी है.. पश्चिमी चकाचौंध, असीमित बाजार और पिछलग्गूपने में आकर भारतभूमि अपनी उत्पादकता खो चुकी है...फिर बुरा मत मानना.. इस मामले में यूरोप हमसे आगे निकल गया.. क्योंकि उसने सदियों ग़ुलामी नहीं झेली.. वह भौतिकवाद को सबसे ज़्यादा उपभोग करके तृप्त हो चुका है..जबकि हमने (अपने भारत ने) पीढ़ियों तक ग़ुलामी झेली है.. ग़ुलामी, ग़रीबी और दासता से हम हीनता के शिकार हो गये..नतीजन हमारा समाज भीतरी हीनता को भरने के दौड़ में बुद्ध और कृष्ण पैदा करने की क्षमता भूल बैठा...! फिर भी हमारी सच्ची सनातन आध्यात्मिकता हमारी ताकत है..हालांकि भारत में भी अक्सर कई बड़े पूंजींपति, कई बड़ी नौकरी करने वाले युवक, युवतियां दुनिया की मगझमारी से ऊबकर, अपनी अरबों की संपत्ति दान करके, शांति व सुकून की खोज में, हमेशा के लिए सपरिवार एकांत द्वीपों पर निकल जाते हैं..लेकिन मीडिया द्वारा ऐसी ख़बरों को दबा दिया जाता है... उन्हें लगता है, इससे समाज पर बुरा असर पड़ेगा..लोग बुद्ध के मार्ग पर चल निकलेंगे..महावीर को ढूंढने लगेंगे..जबकि मेरा मानना है, ऐसी ख़बरों को खूब प्रसारित किया जाना चाहिए, ताकि लोग आपाधापी, लड़ाई, दंगे, महत्वाकांक्षा की अंधी दौड़ इत्यादि से मुक्त होकर शांतिपथ पर बढ़ सकें और दुनिया में शांति स्थापित की जा सके.. आप नेट पर सर्च करके उन सबके बारे में भी इत्मिनान से पढ़ सकते हैं..😊

आज मुझे प्रिंस हैरी की मदर प्रिंसेस डायना के वह शब्द याद आ रहे है जिन्हे मैने टीवी पर अपने बचपन मे सुना था स्वयम प्रिंसेस के मुँह से : मैं ब्रिटेन की जनता के दिलों पर राज करना चाहती हूँ इस लिए कभी ब्रिटेन के साही राज घराने की महारानी नही बन सकती !” 

कुछ ख़बरें इतिहास में दर्ज़ हो जाती हैं..कुछ निर्णय इतिहास में अमर हो जाते हैं..ऐसी ही एक ख़बर इन दिनों ब्रिटेश के शाही राजघराने से आई है.. कुछ समय पहले शादी के डोर में बंधे रॉयल कपल प्रिंस हैरी और मेगन मर्केल ने राजशाही सदस्यता से खुद को अलग कर लिया है। चकाचौंध की दुनिया से मुक्ति ले ली है.. एलिज़ाबेथ ने उन्हे फौरी तौर पर तो मुक्त किया है..लेकिन अस्थाई तौर पर..अब शायद वे कनाडा जाकर आम लोगों की तरह जीवन बितायें...

कुछ समय पहले हुई इनकी शादी में मानों पूरी दुनिया बाराती बनी थी...हर कोई इस शादी को लेकर उत्साहित था... करोड़ों लोग इस शादी को लाइव देख रहे थे! इस शादी की मानों दुनिया दीवानी थी! लेकिन अब इन दोनों ने सहमति से लिए इस फैसले से पूरी दुनिया को चौंका दिया है! इन दोनों ने राजशाही सदस्यता से खुद को अलग कर लिया है...

अब ये दोनों सुकून की तलाश में निकलेंगे..अपने अनुसार जीयेंगे..कोई प्रोटोकॉल नहीं होगा.. कोई रोकने-टोकने वाला नहीं होगा.. कोई दबाव नहीं होगा..मीडिया वाले दिनरात आसपास इकट्ठा होकर पल-पल का लाइव टेलीकॉस्ट नहीं करेंगे..अब ये दोनों रोज़-रोज़ के राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय अख़बारों की सुर्ख़ियां नहीं होंगे.. उससे इन्हें मुक्ति मिल जाएगी ! कुल मिलाकर अब ये दोनों दुनियाभर की पब्लिसिटी और चकाचौंध भरे राजशाही जीवन से बहुत दूर, अपने अनुसार सुकून से जी सकेंगे...

सोचिए, आज के समय में, जब हर कोई खुद को ओवरइस्टीमेट करवाने, सुर्ख़ियां पाने, पहचान बनाने, पब्लिसिटी पाने के लिए न जाने किस-किस हद से गुज़र जाता है, उस दौर में शाही जोड़े का यह निर्णय अपने आप में ऐतिहासिक है.. जिसके पास कुछ नहीं है, वह सब कुछ पाने की दौड़ में मरा जाता है..और जिसके पास किसी चीज की कमी नहीं होती, वह सारी उपलब्धियों और चकाचौंधपूर्ण रॉयल लाइफ़ को एक झटके में लात मार दे रहा है!

माना जा रहा है कि इस शाही जोड़े ने मीडिया के कैमरों की दुनिया और चकाचौंध भरे जीवन से ऊबकर ऐसा निर्णय लिया है...

मुझे यहां गौतम बुद्ध की अनायास याद आ रही है। हालांकि अभी भी इनमें और बुद्ध में जमीन-आसमां का अंतर है...पर बात कुछ कुछ वैसी है..

 मेरा मानना है कि जब आप दुनिया की लगभग सारी सुविधाओं का पूर्णत: भोग कर लेते हैं, तभी आप में चकाचौंध का आकर्षण ख़त्म हो पाता है.. भूखा-नंगा व्यक्ति/समाज कभी भी मोह, माया और आडंबरों से मुक्त नहीं हो सकता.. अभाव में पला-बढ़ा व्यक्ति/समाज हमेशा धन व पब्लिसिटी की ओर दौड़ता रहा है और दौड़ता रहेगा..कुछ अपवाद होते होंगे..

इस घटना पर आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक और मानव स्वभाव को इंटरकनेक्ट करते हुए किताबें लिखी जा सकती हैं...एक फेसबुक पोस्ट में सबकुछ समाहित कर पाना संभव नहीं है... 

बस यहां इतना समझ लीजिए कि कोई व्यक्ति/समाज भीतर से बड़प्पनभाव, आत्मविश्वास और खुशहाली से जितना ही भरा होता है, वह चकाचौंध, आडंबर, दिखावे और पहचान बनाने की भिखमंगी दौड़ से उतना ही कम आकर्षित होता है...

ऐसा व्यक्ति दुनिया में पब्लिसिटी पाने के लिए नहीं मरता...बल्कि वह शांति ढूंढ़ता है..एकांत ढूंढ़ता है..खुद के लिए समय ढूंढ़ता है..क्योंकि उसे पता होता है कि पब्लिसिटी पाने की बाहरी दौड़ में अनगिनत लोगों का जीवन हाथ से फिसलता चला गया...कुछ हासिल नही होता..

दरिद्रता व हीनता के भाव से ग्रसित कमजोर आत्मविश्वास के व्यक्ति/समाज को लगता है, बाहर की दुनिया में अगर मैं खुद को साबित कर दिखाता हूं तो मैं बड़ा कहा जाऊंगा..वह भौकाल टाइट करता है.. वाक़-पटुता से बात करते हुए, खुद के 5 को 50 साबित करता है..

बुरा मत मानना..एशिया और अफ्रीका के औपनिवेश रहे देशों को यह पुश्तैनी संक्रामक बीमारी मिल चुकी है.. विश्वास न हो, तो आप जहां भी हों, जिस भी राज्य में हों, जिस भी समाज में हों, वहां देख सकते हैं..हर व्यक्ति खुद को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता फिर रहा होगा..भारत व अफ्रीका का पीढ़ियों ग़ुलामी किया समाज धन, पद, प्रतिष्ठा, गाड़ी, बंगला, कार, दौलत, शोहरत, पब्लिसिटी इत्यादि की दौड़ में मरा जा रहा है! और ऐसा होना शतप्रतिशत स्वभाविक है..

इसीलिए अब बुद्ध या कृष्ण की भारतभूमि बुद्धपुरुषों को जन्म देना भूल चुकी है.. पश्चिमी चकाचौंध, असीमित बाजार और पिछलग्गूपने में आकर भारतभूमि अपनी उत्पादकता खो चुकी है...

फिर बुरा मत मानना.. इस मामले में यूरोप हमसे आगे निकल गया.. क्योंकि उसने सदियों ग़ुलामी नहीं झेली.. वह भौतिकवाद को सबसे ज़्यादा उपभोग करके तृप्त हो चुका है..जबकि हमने (अपने भारत ने) पीढ़ियों तक ग़ुलामी झेली है.. ग़ुलामी, ग़रीबी और दासता से हम हीनता के शिकार हो गये..नतीजन हमारा समाज भीतरी हीनता को भरने के दौड़ में बुद्ध और कृष्ण पैदा करने की क्षमता भूल बैठा...!

  फिर भी हमारी सच्ची सनातन आध्यात्मिकता हमारी ताकत है..हालांकि भारत में भी अक्सर कई बड़े पूंजींपति, कई बड़ी नौकरी करने वाले युवक, युवतियां दुनिया की मगझमारी से ऊबकर, अपनी अरबों की संपत्ति दान करके, शांति व सुकून की खोज में, हमेशा के लिए सपरिवार एकांत द्वीपों पर निकल जाते हैं..लेकिन मीडिया द्वारा ऐसी ख़बरों को दबा दिया जाता है... उन्हें लगता है, इससे समाज पर बुरा असर पड़ेगा..लोग बुद्ध के मार्ग पर चल निकलेंगे..महावीर को ढूंढने लगेंगे..जबकि मेरा मानना है, ऐसी ख़बरों को खूब प्रसारित किया जाना चाहिए, ताकि लोग आपाधापी, लड़ाई, दंगे, महत्वाकांक्षा की अंधी दौड़ इत्यादि से मुक्त होकर शांतिपथ पर बढ़ सकें और दुनिया में शांति स्थापित की जा सके.. आप नेट पर सर्च करके उन सबके बारे में भी इत्मिनान से पढ़ सकते हैं..😊

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता