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Showing posts from December, 2018

तो आखिर तुमने पैकअप कर ही लिया ??

तो आखिर तुमने पैकअप कर ही लिया नही मानोगे ? तो ˈमै मान लूँ अब कि : फ़ाइनली” finally” मुझे छोड़ कर तुम आज चले जा रहे हो ?? अब और नही रूकोगे ना ?? सुनो : जा तो रहे हो पर क्या ! पैकअप करते वक्त तुमने ...

जब सबने ही इसपर कुछ का कुछ लिखा तो पता नहीं मैं ऐसा क्यों लिख रही हूँ। विस्तार से भी ज़रूर लिखूँगी लेकिन तब तक कहीं फ़िल्म हट न जाये। आप में से जिन्होंने नहीं देखी, हटने से पहले एक बार ज़रूर देखें। मैं भी डर-डर कर ही गयी थी पर लगा कि इधर अरसे बाद एक अच्छी फ़िल्म देखी जिसमें मनोरंजन तो था ही, उससे अलग भी कुछ मौजूद था जो दरअसल मुझे ख़ास लगा। हालाँकि वह ख़ास तो सबकी अपनी अपनी समझ और पसंद पर निर्भर करेगा। 'ज़ीरो' अच्छी लगी। अभिनय की दृष्टि से भी, कथानक की दृष्टि से भी, मनोरंजन की दृष्टि से भी और वर्चुअल दुनिया के मायाजाल को चुनौती देती मानवीय भावनाओं की प्रबलता की दृष्टि से भी। आप इसे बिना डर देख सकते हैं 🙂

जब सबने ही इसपर कुछ का कुछ लिखा तो पता नहीं मैं ऐसा क्यों लिख रही हूँ। विस्तार से भी ज़रूर लिखूँगी लेकिन तब तक कहीं फ़िल्म हट न जाये। आप में से जिन्होंने नहीं देखी, हटने से पहले ए...

(लोकतंत्र के चार स्तम्भ मे अपाहिज हो चुका है चतुर्थ स्तम्भ “मीडिया”)

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जब हम बात करते हैं लोकतंत्र के चार स्तंभों की तो उसमें चतुर्थ स्तम्भ मीडिया को बोला जाता है। वह इसलिए कि मीडिया का काम जन-जन तक सच्ची ख़बरें पहुंचाना है, क्योंकि उन ख़बरों के आ...

शिमला। वायसराय निवास। एक आम आदमी का रिएक्शन ठेठ देसी अंदाज में। बहुत गर्मी लगती थी अंगेजो को यहां भारत मे। कलकत्ता में । तो कलकत्ता से हजारों मील दूर ऊंची पहाड़ी खोज लिए अपने लिए महल बनवाने को। हद है। अगर यहां की गर्मी इत्ती ही झेलाऊ थी तो इंग्लैंड लौट जाते। क्या डॉक्टर बताए थे हिंदुस्तान में रहने को। चलो मान लिया कि भारत ज्यादा ही अच्छा लग गया था तो यहीं बस जाते ना। परिवार दोस्त अहबाब सबका यहीं बुलाइ लेते कि चलौ भैया भारत मे रही चलै। तब तो यहां खाने कमाने आ गए ।पैसा लूट लूट इंग्लैंड भेजत रहे और जब मन भरि गवा तौ लूट फांट करके इंग्लैंड वापस। अब कोई को अपनी परेशानी सरकार को बतानी हो तो कैसे इत्ती दूर आये। आप तो घोड़ा बग्घी से लाव लश्कर ले के आइ गए। हद है । खुले आम सब लूट खसोट चल रही अंग्रेजो की। अब अगर कोई भारतीय बन्दे से ये नंगा नाच न देखा जाए और वो ठोंक दे तो बहुत गलत तो नही ही ना। एक तो लुटेरे दूसरे विदेशी। फोकट का बहुत माल मारे अंग्रेज यहां। जो जो लोग अंग्रेजी राज मा उनके चिंटू रहे वो धिक्कार के पात्र हैं।

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शिमला। वायसराय निवास। एक आम आदमी का रिएक्शन ठेठ देसी अंदाज में। बहुत गर्मी लगती थी अंगेजो को यहां भारत मे। कलकत्ता में । तो कलकत्ता से हजारों मील दूर ऊंची पहाड़ी खोज लिए अपन...

सुनो बड़ी आंखों वाले लड़के : Happy Birthday. All time My Favourite Hero “सलमान खान” के जन्मदिन पर बचपन की एक घटना का ज़िक्र कर रही हूँ, !

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सुनो बड़ी आंखों वाले लड़के : Happy  Birthday. All time My Favourite Hero “सलमान खान” के जन्मदिन पर बचपन की एक घटना का ज़िक्र कर रही हूँ, ================================== 1989 में मैने प्यार किया फिल्म आई थी उस वक्त़ मै भारद्वाज अर्चिता यही को...

सर्दियों में मूँगफली की रेहड़ी से बचकर कौन निकलना चाहता है। कल मैं भी वहीं थी। अमूमन ऐसा नहीं करती पर कल एक मूँगफली उठा ही ली खाने के लिए। रेहड़ी के आसपास मूँगफली के छिलके पड़े थे सो मैंने भी कोई ज़हमत उठानी ज़रूरी नहीं समझी और ऐसा काम अमूमन तो क्या, कभी नहीं किया मैंने लेकिन चारों तरफ़ बिखरे छिलकों ने कुछ और सोचने-समझने की मोहलत ही नहीं दी मुझे। दुकानदार मानों इसी ताक में था। छूटते ही बोला मैडम जी, छिलका यहाँ गत्ते के डिब्बे में डालिये। मुझे बहुत अच्छा लगा और मैंने उसकी तारीफ़ भी की। लेकिन मुझे हैरत थी कि फिर छिलकों का यह बिखरा भंडार आया कहाँ से.... "तुम तो इसी तरह लपक कर रोकते होगे सभी को, फिर ये सब कूड़ा कैसे? उसने कहा मना करने पर भी लोग ज़बरदस्ती यहीं फेंकते हैं। हम तो गत्ता दिखा देते हैं तब भी बहुत ही कम लोग उसमें डालते हैं। कुछ तो शायद इसी बात से गुस्सा हो जाते हैं कि रेहड़ी वाला होकर हमें समझा रहा है और यहीं गन्दा कर देते हैं सब" 🙄🙄 #स्वच्छभारत #ग़लतीकिसकी

सर्दियों में मूँगफली की रेहड़ी से बचकर कौन निकलना चाहता है। कल मैं भी वहीं थी। अमूमन ऐसा नहीं करती पर कल एक मूँगफली उठा ही ली खाने के लिए। रेहड़ी के आसपास मूँगफली के छिलके पड़े ...

महान क्रान्तिकारी सरदार उधम सिंह जयंती विशेष

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 महान क्रान्तिकारी सरदार उधम सिंह जयंती विशेष  ================================== ✍ सरदार उधम सिंह (26 दिसम्बर 1899 से 31 जुलाई 1940) का नाम भारत की आज़ादी की लड़ाई में पंजाब के क्रान्तिकारी के रूप में दर्ज है। उन्...

25 दिसम्बर का दिन भारत के इतिहास मे सदैव दो शलाका महापुरुषो के जन्म दिन की तारीख के रूप में अंकित है 25 दिसम्बर 1861 भारत रत्न महामना मदन मोहन मालवीय जी का जन्म दिन है, एवम 25 दिसम्बर 1924 भारत रत्न आदरणीय अटल बिहारी बाजपेयी जी का जन्म दिन है ! श्री महामना और श्री अटल जी हमारे भारत देश के लिए दो ऐसे सांता क्लॉज़ साबित हुए जिनके द्वारा मिले गिफ्ट के रूप मे भारत को उदार शिक्षा व्यवस्था के साथ साथ उदारीकरण की नीति मिली और दुनिया के लिए प्रथम बार भारत ने उदारीकरण का द्वार खोला ! बनारस का हिन्दू विश्वविद्यालय महामना के अथक प्रयास से भारत को मिला वह गिफ्ट है जो महामना के पूर्व एवम महामना के बाद कभी कोई सांता क्लॉज़ किसी को नही दिया होगा इस विश्व मे ! इसी प्रकार प्रथम् बार जब अटल जी ने उदारी करण की नीति लागू करते हुए दुनिया के साथ भारत को तरक्की के लिए खडा किया वह दिन भी भारत के इतिहास का अनमोल दिन था क्योकि उदारी करण की नीति हमारे भारत देश के लिए किसी सांता क्लॉज़ के गिफ्ट से कही ज्यादा अनमोल गिफ्ट थी ! भारत के उपरोक्त दोनो महान सांता क्लॉज़ को आज उनके जन्मदिन पर देश की इस बेटी का शत-शत प्रणाम कोटि-कोटि नमन, यह बेटी आशा करती है हमारे भारतीय नक्षत्र के यह दो अखण्ड प्रदिप्त आयुष्मान भास्कर अखिल ब्रहमाण्ड मे भारत को अखण्ड काल तक प्रकाशित करते रहेंगे हम सब के प्रेरणास्रोत बनकर !! युग पुरूष तुम्हे विनम्र प्रणाम् ! साभार : भारद्वाज अर्चिता 25/12/2018

25 दिसम्बर का दिन भारत के इतिहास मे सदैव दो शलाका महापुरुषो के जन्म दिन की तारीख के रूप में अंकित है 25 दिसम्बर 1861 भारत रत्न महामना मदन मोहन मालवीय जी का जन्म दिन है, एवम 25 दिसम्बर 1924 भ...

अपने देश के वर्तमान Teenage Youth “किशोर वय युवाओं” को समर्पित मेरा लेख “ Article ” ================================== विद्या ददाति विनयम् विनयाद याति पात्रताम | पात्रत्वाद धनमाप्नोती धनाद धर्मस्तत: सुखं || अर्थात विद्या से विनय, विनय से पात्रता, पात्रता से योग्यता, योग्यता से धन, धन से धर्म,एवं धर्म के पालन से सुख की प्राप्ति होती है | यह सुख किशोर वय युवाओं के उज्जवल भविष्य एवम् राष्ट्र उन्नति का प्रतीक है ! उपरोक्त संस्कृत सूक्ति शायद आज के हमारे किशोर वय युवाओं को सही सही समझ न आए पर हिन्दी मे अनुवाद करने पर इसका जो अर्थ निकलता है वह किशोर वय युवाओं के जीवन के विकास एवम सफलता के लिए प्रत्येक Angle “कोण” से उत्तम एवं अनुकरणीय है ! पर वर्तमान समय मे मै प्रायः यह देखती हूँ कि “विद्या” Education प्राप्ति के पश्चात् विवेक के अभाव में विनय का प्रादुर्भाव होने के स्थान पर युवाओं के भीतर अहंकार, की उत्पत्ति होती है | तद्पश्चात अहंकार अविनयसिक्त विद्या से येन - केन प्रकारेण योग्यता एवं धन भी प्राप्त तो हो जाती है पर युवाओं मे तर्क एवम विवेचना शक्ति नहीं विकसित हो पाती है जिसके रिजल्ट के रूप मे क्षणिक सुख “satisfaction” तो प्राप्त हो जाता हैं परन्तु यह satisfaction भविष्य मे स्थायी आत्मिक सुख मे बदलेगा इसकी गारंटी “guarantee” तय नही होती उद्दाहरण स्वरूप हमारा युवा नव चेतना से सदैव वंचित रह जाता है और परिणाम मे विवेक हीन विद्या का परिणाम क्षोभ जनक सुख मे बदल जातात हैं | अब किशोर वय युवाओं के भीतर एक प्रश्न खडा होना लाजमी है ....अर्चिता ...आखिर यह विनयशील विवेक क्या है जो विद्या अर्जन के पश्चात भी अधिकांश जनों मे विकसित नहीं हो पाता है ? वास्तव में वर्तमान समय में जिसे ज्ञान, विद्या कह कर degree के नाम पर सरकारी गैर सरकारी शिक्षण संस्थानों “Institutes” द्वारा बेचा जा रहा है वह केवल सूचना है, वह केवल एक cirtificate है भविष्य मे रोटी कमाने के लायक बनाने का cirtificate पर भविष्य मे अपनी रोटी इस cirtificate से हमारा युवा कमा सकेगा इसकी भी पूरी guarantee नही होती ! मस्तिष्क में सूचनाएं भर लेने से हमारी आज की किशोर वय युवा पीढ़ी, किशोर वय से उपर वाली युवा पीढ़ी मात्र एक सूचना संग्रहालय तो बन गयी है पर मनुष्य नहीं बन रही है राष्ट्र के सामने यह एक जटिल परिस्थिति खडी हुई है ! अगर हम दुनिया का इतिहास खँगाले तो पाएंगे कि : इस धरती पर आज तक की समस्त मानव जनित विभत्स दुर्घटनाएं जिन्हें मानव निर्मित दुर्घटना Man - made Calamities कहा जाता है उनके केन्द्र मे जो नेतृत्व कर्ता चेहरे रहे , जो planner “ योजनाकर्ता ” रहे वह सूचना के भंडार वह सूचना के जनक थे परन्तु इतिहास मे घटा विध्वंस उन्हे विवेक हीन मनुष्य ही करार देता है | अब एक प्रश्न यह भी है कि आखिर यह विवेक यह संस्कार आता कहाँ से आता है ? हम सब जानते है विद्या अर्थात सूचनाएं तो हमे पुस्तकों के संपर्क से प्राप्त हो जाती है परन्तु विवेक एवम संस्कार भी पुस्तको से ही आ जाए यह तय नही है ना ही कोई पुस्तक इसे जबर्दस्ती आरोपित ही कर सकती है क्योंकि विवेक तो अच्छे संस्कारों से उत्पन्न होता है एवं अच्छे संस्कार पूर्ण रूप से पारिवारिक परवरिश आस-पास के परिवेश एवम समाज के साथ-साथ Genetic अनुवांशिकी होते है ! तथा जीव विज्ञान का मानक कहता है विशेष रूप से बच्चे के जन्म से लेकर 5 वर्ष की बाल्यावस्था तक माता के संस्कारयुक्त संस्कार तत्पश्चात बचपन से किशोर वय तक परिवार, परिवेश, आस - पडोस, समाज, मेे घटने वाले प्रत्येक events के प्रभाव ही तय करते है युवा पीढ़ी के विवेकशील, विनयवत, चिन्तलशील, सफल भविष्य का खाँका ! ================================== कलम से : भारद्वाज अर्चिता

अपने देश के वर्तमान Teenage Youth “किशोर वय युवाओं” को समर्पित मेरा लेख “ Article ” ==================================        विद्या ददाति विनयम् विनयाद याति पात्रताम |        पात्रत्वाद धनमाप्नोती  धनाद धर्मस्तत: सुख...