सर्दियों में मूँगफली की रेहड़ी से बचकर कौन निकलना चाहता है। कल मैं भी वहीं थी। अमूमन ऐसा नहीं करती पर कल एक मूँगफली उठा ही ली खाने के लिए। रेहड़ी के आसपास मूँगफली के छिलके पड़े थे सो मैंने भी कोई ज़हमत उठानी ज़रूरी नहीं समझी और ऐसा काम अमूमन तो क्या, कभी नहीं किया मैंने लेकिन चारों तरफ़ बिखरे छिलकों ने कुछ और सोचने-समझने की मोहलत ही नहीं दी मुझे। दुकानदार मानों इसी ताक में था। छूटते ही बोला मैडम जी, छिलका यहाँ गत्ते के डिब्बे में डालिये। मुझे बहुत अच्छा लगा और मैंने उसकी तारीफ़ भी की। लेकिन मुझे हैरत थी कि फिर छिलकों का यह बिखरा भंडार आया कहाँ से.... "तुम तो इसी तरह लपक कर रोकते होगे सभी को, फिर ये सब कूड़ा कैसे? उसने कहा मना करने पर भी लोग ज़बरदस्ती यहीं फेंकते हैं। हम तो गत्ता दिखा देते हैं तब भी बहुत ही कम लोग उसमें डालते हैं। कुछ तो शायद इसी बात से गुस्सा हो जाते हैं कि रेहड़ी वाला होकर हमें समझा रहा है और यहीं गन्दा कर देते हैं सब" 🙄🙄 #स्वच्छभारत #ग़लतीकिसकी
सर्दियों में मूँगफली की रेहड़ी से बचकर कौन निकलना चाहता है। कल मैं भी वहीं थी। अमूमन ऐसा नहीं करती पर कल एक मूँगफली उठा ही ली खाने के लिए। रेहड़ी के आसपास मूँगफली के छिलके पड़े थे सो मैंने भी कोई ज़हमत उठानी ज़रूरी नहीं समझी और ऐसा काम अमूमन तो क्या, कभी नहीं किया मैंने लेकिन चारों तरफ़ बिखरे छिलकों ने कुछ और सोचने-समझने की मोहलत ही नहीं दी मुझे।
दुकानदार मानों इसी ताक में था। छूटते ही बोला मैडम जी, छिलका यहाँ गत्ते के डिब्बे में डालिये।
मुझे बहुत अच्छा लगा और मैंने उसकी तारीफ़ भी की। लेकिन मुझे हैरत थी कि फिर छिलकों का यह बिखरा भंडार आया कहाँ से....
"तुम तो इसी तरह लपक कर रोकते होगे सभी को, फिर ये सब कूड़ा कैसे? उसने कहा मना करने पर भी लोग ज़बरदस्ती यहीं फेंकते हैं। हम तो गत्ता दिखा देते हैं तब भी बहुत ही कम लोग उसमें डालते हैं। कुछ तो शायद इसी बात से गुस्सा हो जाते हैं कि रेहड़ी वाला होकर हमें समझा रहा है और यहीं गन्दा कर देते हैं सब" 🙄🙄
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