महान क्रान्तिकारी सरदार उधम सिंह जयंती विशेष
महान क्रान्तिकारी सरदार उधम सिंह जयंती विशेष ==================================
✍
सरदार उधम सिंह (26 दिसम्बर 1899 से 31 जुलाई 1940) का नाम भारत की आज़ादी की लड़ाई में पंजाब के क्रान्तिकारी के रूप में दर्ज है। उन्होंने जलियांवाला बाग कांड के समय पंजाब के गर्वनर जनरल रहे माइकल "ओ" ड्वायर (En:Sir Michael Francis O'Dwyer) को लन्दन में जाकर गोली मारी थी,
1919 जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड ओ ड्वायर व अन्य ब्रिटिश अधिकारियों का एक सुनियोजित षड्यंत्र था जो पंजाब पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए एवम भारत की सबसे बहादुर कौम पंजाबियों को डराने के उद्देश्य से किया गया था। बात और भी बिगड गयी तब जब जलियांवाला हत्याकाण्ड के बाद भी ओ ड्वायर जनरल डायर के समर्थन से पीछे नहीं हटा था ! सरदार उधम सिंह, ने एक क्रांतिकारी के रूप में गदर पार्टी, हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन, भारतीय श्रमिक संघ, आदि के साथ अपनी सक्रीयता बनाया और भारत में अंग्रेजी हुकुमत की तानाशाही के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंका ।
उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को क्रान्ति की उपजाऊ भूमि पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गाँव में काम्बोज परिवार में हुआ था। सन 1901 में उधमसिंह की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया बचपन मे घटी इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ जीवन यापन के लिए अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी थी ! उधमसिंह के बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्ता सिंह था जिन्हें अनाथालय में क्रमश: उधमसिंह और साधु सिंह के रूप में नए नाम दिए गए ।
दुर्भाग्यवश 1917 में उधमसिंह के बड़े भाई साधु सिंह का भी देहांत हो गया और उधम सिंह पूरी तरह अनाथ हो गए। इस घटना के दो वर्ष बाद 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए !
देश की आजादी तथा ओ'ड्वायर, एवम डायर को मारने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए उधम सिंह लगातार काम करते रहे, और समय आने पर ओ ड्वायर को उसके ही देश मे जाकर गोली मारकर मौत के घाट उतारा एवम अपनी प्रतिज्ञा पूरी किया ।
उधम सिंह 13 अप्रैल 1919 को घटित जालियाँवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे 18 वर्ष की अवस्था मे जलियाँवाला बाग में मारे अपनों की की चीखों से वीर युवा मन उधमसिंह तिलमिला गए उसी क्षण उन्होंने जलियाँवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर "माइकल ओ डायर" को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा किया और अपने मिशन को अंजाम देने के लिए उधम सिंह ने विभिन्न नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की, सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां 9-एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे।
वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीदा। भारत का यह वीर क्रांतिकारी “माइकल ओ डायर” को ठिकाने लगाने के लिए उचित वक्त का इंतजार कर रहा था ! आखिर 13 मार्च वर्ष 1940 का वह दिन आ ही गया जब अपने सैकड़ों निर्दोष भाई-बहनों की मौत का बदला लेने का सौभाग्य उधम सिंह को मिला, जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां “माइकल ओ डायर” भी उपस्थित प्रमुख वक्ताओं में से एक था। उधम सिंह उस दिन समय से ही बैठक स्थल पर पहुंच गए, अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा कर रखा था, बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने “माइकल ओ डायर” पर गोलियां दागनी शुरू कर दिया, दो गोलियां सीधे “माइकल ओ डायर” को जाकर लगीं जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई, इसमे कई सक नही की अब उधम सिंह का मिशन पूरा हो चुका था, फिर भी अर्चिता वह हमारा वीर सरदार क्रान्तिकारी निडरता के साथ वहाँ हाॅल मे खड़ा रहा ! खुद को बचाने के लिए वहां से भागने की कोशिश तक नही किया वजह साफ थी दुनिया को यह सन्देश देना था
की अब अगर हम पर अत्याचार बन्द नही किए Britisher Ruler “ब्रितानी शासक वर्ग” तो हम हिन्दुस्तानी इन्हे इनके घर मे घुस कर मारेंगे और अपनी आजादी लेकर रहेंगे ! अपने विजयी साहस के साथ गर्व से मुस्कुराते हुए आजादी के इस दीवाने ने अपनी गिरफ्तारी दी।
गिरफ्तारी के बाद सरदार उधम सिंह पर मुकदमा चलाकर 4 जून 1940 को उन्हें माइकल ओ डायर की हत्या का दोषी ठहराया गया, एवम् 31 जुलाई 1940 को अदम्य साहस के अवतार भारत माता के इस क्रान्तिकारी बेटे को पेंटनविले जेल में फांसी दी गई ।
आज 26 दिसम्बर है अर्चिता याने - के - भारत के प्रथम क्रान्तिकारी शहीद सरदार उधम सिंह का जन्मदिन । भारत माता के इस साहसी अमर वीर सपूत को आईए इन पंक्तियों के साथ शत-शत प्रणाम करें, नमन करें, एवम इन्हे साक्षी मानते हुए हम युवा अपने राष्ट्र की उन्नति का, राष्ट्र की रक्षा का प्रण लें !
सरदार उधम सिंह तुम जैसे क्रान्तिकारी तो
पैदा ही अमर होने के लिए होते है !!
कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
26/12/2018
Comments
Post a Comment