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Showing posts from September, 2018

==== विवेक तिवारी हत्याकांड ====

************* विवेक तिवारी हत्याकांड ।********** लखनऊ में बीते शनिवार को रात्रि गस्त में लगे सिपाहियों द्वारा एप्पल के सेल्स मैनेजर की हत्या बेहद दर्दनाक है। लखनऊ की इस घटना को किसी भी अन्य ...

जरा गौर से देखा जाए तो नजर आता है कि : नास्तिक भी नास्तिकता को अपना धर्म बना लेता है

आखिर नास्तिक भी तो अपना धर्म बना लेता है बानगी के तौर पर पढिए कैसे नास्तिकता को ही अपना धर्म बना बैठा था लेनिन ! ??? ================================= धर्म की अव धारणा से नास्तिकता का पुजारी 'लेनिन भी तो नही ...

सरदार भगत सिंह के महान क्रांतिकारी बनने के पीछे चाचा सरदार अजीत सिंह रहे गुरू !!

सरदार भगत सिंह के महान क्रांतिकारी बनने के पीछे              चाचा सरदार अजीत सिंह रहे गुरू ================================== जयंती विशेष : अपने भगता को नए - नए पहलू से जब खंगालना आरम्भ किया मैने अपनी कित...

धन्य हो सर्वोच्च न्यायालय जी ! आपके चरण कहां हैं ??

धन्य हो सर्वोच्च न्यायालय जी ! आप के चरण कहाँ हैं ?? ====================== मुझे याद आ रहा है अर्ची वर्ष 2014 में पूरी दुनिया में एक खबर बुध ग्रह ( सबसे तेज गति वाला ग्रह)  की गति से रातों रात वायरल हुई थी ...

( Indian Constitution & Dignity of The Indian Prime Minister .भारतीय संविधान और भारत के प्रधानमंत्री की गरिमा ) ====================== कलम से : भारद्वाज अर्चिता

{{ Indian Constitution & Dignity of           The Indian Prime Minister . भारतीय संविधान और भारत के प्रधानमंत्री की गरिमा }} ================================== मैं ना पक्ष हूं, ना ही विपक्ष, ना भक्त हूं ना ही कमबख्त, केवल अपने नागरिक धर्म का निर्वहन करते हु...

8 जनवरी 2013 की हड्डीयाँ गला डालने वाली एक सर्द रात,जिसमें राजस्थान रायफल्स की रोमियो फोर्स के कोई 6-7 जवान आपस में ठिठोली कर रहे थे,तभी उनके कानों में एक कड़क आवाज,जवान होशियार रहना,दुश्मन की LOC पर एक्टिविटी संदिग्ध लग रही हैं। सिगार मुँह में दबाये एक रोबदार व्यक्तित्व सिर पे गोल हैट और उठी हुई छाती पे एक नेम प्लेट लेफ्टिनेंट अर्जुन सिंह शेखावत। यस सर, 6 स्वर एक सुर में गरजे,साला बहुत परेशान करता हैं, ना खुद चैन से रहता हैं ना रहने देता हैं, मैगजीन की बैल्ट कमर पर बाँधते हुये लांस नायक सुधाकर सिंह बोलता जा रहा था,कौन मरेगा यहाँ इतनी सर्द रात में,दूसरे ने पीठ्ठू बैग उसकी कमर पे टाँगते हुये कहा सालो जल्दी गश्त लगाकर आना कही भाभी की याद में खो जाए,सुधाकर सिंह ने हेमराज को देखकर एक शैतानी मुस्कान फेंकी और रायफ़ल उठा चल दिये, जल्दी आना, हाय इतने प्यार से तो तेरी भाभी ने भी नही कहा कभी, इधर से बर्फ का गोला फेंकते हुये एक भद्दी सी गाली और भग साले।और उधर से हँसी का स्वर दूर पुंज सेक्टर की वादियों में घुलता चला गया। रात बीतने लगी,कॉफी का मग हाथ मे लिये दूरबीन से दूर तलक देखते हुये वे बड़बड़ाये दोनों हरामखोर हैं तुम्हे इन दोनों को अलग अलग भेजना चाहिये। साले दिखावे के लिये सारा दिन लड़ते रहते हैं पर एक दूसरे पे जान छिड़कते हैं। बहुत रात बीत गई,पर वे वापस नही आये, अब चिंता होने लगी उन्हें ,यार चलो देखते हैं बहुत टाईम हुआ आये क्यो नही अभी तक?? आनन फानन में चारो ने हथियार उठाये और चल पड़े,पाक अधिकृत कश्मीर का बोर्डर था ये,वे उन्हें तलासते बहुत दूर निकल आये, और फिर उनमें से एक चींख पड़ा सुधाकर मेरे यार ..........., बर्फ पर औंधे मुँह सुधाकर की लाश पड़ी थी,वो रोने लगा,उनमें से एक बोला हेमराज को ढूंढो, हेमराज,हेमराज पुकारते वे बदहवास से भाग रहे थे,की अचानक जो दिखा वो उन्हें पत्थर बना गया, सामने हेमराज की लाश पड़ी थी,सर गायब। आँखों से निरंतर आँसू बह रहे थे पर बहुत देर तक वे मूर्ति बने रहे।सुबह हुई ,मगर सिर्फ कहने को राजपुताना बटालियन पर गहन मौत का अंधकार छाया हुआ था। यूँ तो उन दो जियालों की मौत पर सारा देश रोया होगा,पर उनका दर्द कौन समझ सकता हैं वो कुछ घंटों पूर्व ही एक दूसरे को छेड़ रहे थे वो अचानक छोड़ जाए। खैर उन दोनों के शव उनके घर भेज दिये, मगर उन शवो का कोई क्या करें जो वही छूट गये थे ,ज़िंदा लाशें,ना कोई आवाज,ना ख़ाना ना पीना,सिर्फ क्रोध और दुःख से सुलगति आँखे। 4 दिन बाद, लेफ्टिनेंट उन चारों के टेंट में आया , वे खड़े हो गये, आवाज वही थी,पर उसमें वो रॉब नही था,तुम चारो ने खाना क्यो नही खाया 4 दिनों से, उधर से कोई जवाब नही। इधर से फिर बात दोहराई गई,मगर उधर से सिर्फ आँखों की दिशा बदली आवाज कोई नही, फिर लेफ्टिनेंट का बेबस स्वर,मैं तुम्हे इसकी इजाजत नही दे सकता,तुम जो चाहते हो जानते हो उसका अंजाम क्या होगा ?? लेफ्टिनेंट साब,सुधाकर और हेमराज की कसम जब तक दुश्मनों से उनके खून का हिसाब चुकता ना कर ले हम चारो एक निवाला मुँह में नही डालेंगें। लेफ्टिनेंट कसमसा कर बोला कि बिना सरकारी आदेश इसकी इजाजत कैसे दे दु ?? तो फिर जाईये लेफ्टिनेंट साब,हमारी फिक्र छोड़िये। वो मुड़ा और पीठ करके बोला,ठीक हैं जाओ,पर ध्यान रहे मुझमे अब और लाश देखने का साहस नही,यदि तुम नही लौटे तो भवानी की सौगंध मैं खुद को गोली मार लूँगा। इतना कहकर वो रुके नही,और वो चारो अचंभित रह गये, वे तैयारी करके बाहर निकले तो बहुत से जवान बाहर खड़े थे,आँखों मे खून उतरा हुआ,चेहरा सपाट। तुम सब केवल सीमा तक बैकअप दोगे, केवल हम अंदर जायेंगे,वे चल पड़े। सर्द हवाएं सांय सांय करती बह रही थी,परन्तू वे मानो साक्षात काल बने दुश्मन की सीमा में प्रवेश कर गये। इधर लेफ्टिनेंट फ़र्श पर बुझी सिगरेट के अशख़्य टुकडो को रौंदता चहल कदमी कर रहा था कि कोई 8-9 घंटो बाद वे चारो वापस आये, खून के छींटों से मुँह और कपडे सने हुये, चारो के हाथों में बालों से पकड़े हुये कोई 14-15 पाकिस्तानी सैनिकों के सिर। लीजिये सर सुधाकर और हेमराज को हमारी श्रद्धांजलि। लेफ्टिनेंट आगे बढ़ा और उन्हें सैल्यूट मारकर बाँहे फैला दी, वे चारो उन नरमुंडों को फेंक उनसे लिपट गये और फुट फुट कर रोने रहे,चट्टान की तरह दिखने वाला लेफ्टिनेंट भी उन संग रोता रहा।

8 जनवरी 2013 की हड्डीयाँ गला डालने वाली एक सर्द रात,जिसमें राजस्थान रायफल्स की रोमियो फोर्स के कोई 6-7 जवान आपस में ठिठोली कर रहे थे,तभी उनके कानों में एक कड़क आवाज,जवान होशियार रहन...

चल ले चल मुझे वहां अए मेरी जिंदगी जहां बस मैं होऊ, तूं हो, और हो सुकून, अब तो कतराते है लोग यहां .... बहुत सन्नाटा है इस मतलबी जहां में , यहां ढूंढे से भी ना मिले हैं अपना कोई शब्द-शब्द खो गए हैं गीत सारे मेरे .. बिखर गए साज सारे, सुर भी खामोश है तूं ही बता मुझे ! अब तूं ही बता अए जिंदगी इस गुमनाम से सफर पर चली जा रही हूं मैं कहां ! तूं कहां ......! ?? चल ले चल मुझे वहां अए मेरी जिंदगी जहां ..बस ..मैं..होऊं..तूं हो, और..हो सुकून !! साफ मन से जीना चाहूं जीने ना दे यह जहां, रोज - रोज मारे मुझे बे-मौत, मेरे मन की मौत मुझे मरने ना दे यह जहां दस्तूर कैसे हैं बने यहां स्वांग यह किसने है रचा जाने है तूं क्या ..कुछ तो बता ..?? तोड़कर घुटन का भंवर चल ले चल मुझे वहां अए मेरी जिंदगी जहां..बस...मै..होऊं..तूं...हो...और..हो सुकून ..!! सीधे मन की सच्ची सी बात कहूं इस जहां में मुझे जीने ना आया, बस दिल की सुन के - दिल का ही किया है मैंने, वफा करके वफा पर ऐतबार है जताया, यह खुदगर्ज जमाना वफा क्या जाने इसको तो आता बस : वफा पर दांव लगा के हारी बाजी जीत जाना, इस बेवफा जमाने से दूर कहीं ......, चल ले चल मुझे वहां अए मेरी जिंदगी जहां ..बस...मैं..होऊं..तूं..हो..और..हो..सुकून..!! ================================= कलम से : भारद्वाज अर्चिता 26/09/2018 1.30 Am

चल ले चल मुझे वहां अए मेरी जिंदगी जहां बस मैं होऊ, तूं हो, और हो सुकून, अब तो कतराते है लोग यहां .... बहुत सन्नाटा है इस मतलबी जहां में , यहां ढूंढे से भी ना मिले हैं अपना कोई शब्द-शब्द ...

किसी अदृश्य कांच की दीवार से टकराकर, मेरे हाथ हर बार घायल हो जाते हैं, मैं कितना भी प्रयत्न करूँ तुम्हें छू नहीं पाती हूं , उम्मीद के लिहाफ में मुंह ढककर ऐ जिंदगी यह लुकाछिपी का खेल और कब तक ?? सुनो ! सुनो ना ! क्या मेरे थक जाने से तुम जीत जाओगी ? शायद नही ! फिर भी : सोच कर देख लो जैसी तुम्हारी मर्जी हां इतना जरूर कहूंगी कि : थका हुआ व्यक्ति शायद हारता नही है हां अपनी जीत से दो - चार कदम पीछे जरूर रह जाता है , और यही दो-चार कदम का पिछड़ापन तय कर देता है : द्वंद, प्रतिशोध, तिरस्कार, एवम घृणा की Silicon Valley“ सिलिकॉन वैली ” इस सिलिकॉन वैली का प्रयोग अगर अपनी हार को दूबारा जीत में बदलने के लिए इस्तेमाल कर लिया जाए तो एक मूल्यवान जीत सामने खडी मिलेगी पर अफसोस हारे हुए लोग नाकारात्मकता से कम ही उबर पाते हैं अर्ची !!!

किसी अदृश्य कांच की दीवार से टकराकर, मेरे हाथ हर बार घायल हो जाते हैं, मैं कितना भी प्रयत्न करूँ तुम्हें छू नहीं पाती हूं , उम्मीद के लिहाफ में मुंह ढककर ऐ जिंदगी यह लुकाछिपी ...