8 जनवरी 2013 की हड्डीयाँ गला डालने वाली एक सर्द रात,जिसमें राजस्थान रायफल्स की रोमियो फोर्स के कोई 6-7 जवान आपस में ठिठोली कर रहे थे,तभी उनके कानों में एक कड़क आवाज,जवान होशियार रहना,दुश्मन की LOC पर एक्टिविटी संदिग्ध लग रही हैं। सिगार मुँह में दबाये एक रोबदार व्यक्तित्व सिर पे गोल हैट और उठी हुई छाती पे एक नेम प्लेट लेफ्टिनेंट अर्जुन सिंह शेखावत। यस सर, 6 स्वर एक सुर में गरजे,साला बहुत परेशान करता हैं, ना खुद चैन से रहता हैं ना रहने देता हैं, मैगजीन की बैल्ट कमर पर बाँधते हुये लांस नायक सुधाकर सिंह बोलता जा रहा था,कौन मरेगा यहाँ इतनी सर्द रात में,दूसरे ने पीठ्ठू बैग उसकी कमर पे टाँगते हुये कहा सालो जल्दी गश्त लगाकर आना कही भाभी की याद में खो जाए,सुधाकर सिंह ने हेमराज को देखकर एक शैतानी मुस्कान फेंकी और रायफ़ल उठा चल दिये, जल्दी आना, हाय इतने प्यार से तो तेरी भाभी ने भी नही कहा कभी, इधर से बर्फ का गोला फेंकते हुये एक भद्दी सी गाली और भग साले।और उधर से हँसी का स्वर दूर पुंज सेक्टर की वादियों में घुलता चला गया। रात बीतने लगी,कॉफी का मग हाथ मे लिये दूरबीन से दूर तलक देखते हुये वे बड़बड़ाये दोनों हरामखोर हैं तुम्हे इन दोनों को अलग अलग भेजना चाहिये। साले दिखावे के लिये सारा दिन लड़ते रहते हैं पर एक दूसरे पे जान छिड़कते हैं। बहुत रात बीत गई,पर वे वापस नही आये, अब चिंता होने लगी उन्हें ,यार चलो देखते हैं बहुत टाईम हुआ आये क्यो नही अभी तक?? आनन फानन में चारो ने हथियार उठाये और चल पड़े,पाक अधिकृत कश्मीर का बोर्डर था ये,वे उन्हें तलासते बहुत दूर निकल आये, और फिर उनमें से एक चींख पड़ा सुधाकर मेरे यार ..........., बर्फ पर औंधे मुँह सुधाकर की लाश पड़ी थी,वो रोने लगा,उनमें से एक बोला हेमराज को ढूंढो, हेमराज,हेमराज पुकारते वे बदहवास से भाग रहे थे,की अचानक जो दिखा वो उन्हें पत्थर बना गया, सामने हेमराज की लाश पड़ी थी,सर गायब। आँखों से निरंतर आँसू बह रहे थे पर बहुत देर तक वे मूर्ति बने रहे।सुबह हुई ,मगर सिर्फ कहने को राजपुताना बटालियन पर गहन मौत का अंधकार छाया हुआ था। यूँ तो उन दो जियालों की मौत पर सारा देश रोया होगा,पर उनका दर्द कौन समझ सकता हैं वो कुछ घंटों पूर्व ही एक दूसरे को छेड़ रहे थे वो अचानक छोड़ जाए। खैर उन दोनों के शव उनके घर भेज दिये, मगर उन शवो का कोई क्या करें जो वही छूट गये थे ,ज़िंदा लाशें,ना कोई आवाज,ना ख़ाना ना पीना,सिर्फ क्रोध और दुःख से सुलगति आँखे। 4 दिन बाद, लेफ्टिनेंट उन चारों के टेंट में आया , वे खड़े हो गये, आवाज वही थी,पर उसमें वो रॉब नही था,तुम चारो ने खाना क्यो नही खाया 4 दिनों से, उधर से कोई जवाब नही। इधर से फिर बात दोहराई गई,मगर उधर से सिर्फ आँखों की दिशा बदली आवाज कोई नही, फिर लेफ्टिनेंट का बेबस स्वर,मैं तुम्हे इसकी इजाजत नही दे सकता,तुम जो चाहते हो जानते हो उसका अंजाम क्या होगा ?? लेफ्टिनेंट साब,सुधाकर और हेमराज की कसम जब तक दुश्मनों से उनके खून का हिसाब चुकता ना कर ले हम चारो एक निवाला मुँह में नही डालेंगें। लेफ्टिनेंट कसमसा कर बोला कि बिना सरकारी आदेश इसकी इजाजत कैसे दे दु ?? तो फिर जाईये लेफ्टिनेंट साब,हमारी फिक्र छोड़िये। वो मुड़ा और पीठ करके बोला,ठीक हैं जाओ,पर ध्यान रहे मुझमे अब और लाश देखने का साहस नही,यदि तुम नही लौटे तो भवानी की सौगंध मैं खुद को गोली मार लूँगा। इतना कहकर वो रुके नही,और वो चारो अचंभित रह गये, वे तैयारी करके बाहर निकले तो बहुत से जवान बाहर खड़े थे,आँखों मे खून उतरा हुआ,चेहरा सपाट। तुम सब केवल सीमा तक बैकअप दोगे, केवल हम अंदर जायेंगे,वे चल पड़े। सर्द हवाएं सांय सांय करती बह रही थी,परन्तू वे मानो साक्षात काल बने दुश्मन की सीमा में प्रवेश कर गये। इधर लेफ्टिनेंट फ़र्श पर बुझी सिगरेट के अशख़्य टुकडो को रौंदता चहल कदमी कर रहा था कि कोई 8-9 घंटो बाद वे चारो वापस आये, खून के छींटों से मुँह और कपडे सने हुये, चारो के हाथों में बालों से पकड़े हुये कोई 14-15 पाकिस्तानी सैनिकों के सिर। लीजिये सर सुधाकर और हेमराज को हमारी श्रद्धांजलि। लेफ्टिनेंट आगे बढ़ा और उन्हें सैल्यूट मारकर बाँहे फैला दी, वे चारो उन नरमुंडों को फेंक उनसे लिपट गये और फुट फुट कर रोने रहे,चट्टान की तरह दिखने वाला लेफ्टिनेंट भी उन संग रोता रहा।
8 जनवरी 2013 की हड्डीयाँ गला डालने वाली एक सर्द रात,जिसमें राजस्थान रायफल्स की रोमियो फोर्स के कोई 6-7 जवान आपस में ठिठोली कर रहे थे,तभी उनके कानों में एक कड़क आवाज,जवान होशियार रहना,दुश्मन की LOC पर एक्टिविटी संदिग्ध लग रही हैं। सिगार मुँह में दबाये एक रोबदार व्यक्तित्व सिर पे गोल हैट और उठी हुई छाती पे एक नेम प्लेट लेफ्टिनेंट अर्जुन सिंह शेखावत।
यस सर, 6 स्वर एक सुर में गरजे,साला बहुत परेशान करता हैं, ना खुद चैन से रहता हैं ना रहने देता हैं, मैगजीन की बैल्ट कमर पर बाँधते हुये लांस नायक सुधाकर सिंह बोलता जा रहा था,कौन मरेगा यहाँ इतनी सर्द रात में,दूसरे ने पीठ्ठू बैग उसकी कमर पे टाँगते हुये कहा सालो जल्दी गश्त लगाकर आना कही भाभी की याद में खो जाए,सुधाकर सिंह ने हेमराज को देखकर एक शैतानी मुस्कान फेंकी और रायफ़ल उठा चल दिये,
जल्दी आना,
हाय इतने प्यार से तो तेरी भाभी ने भी नही कहा कभी,
इधर से बर्फ का गोला फेंकते हुये एक भद्दी सी गाली और भग साले।और उधर से हँसी का स्वर दूर पुंज सेक्टर की वादियों में घुलता चला गया।
रात बीतने लगी,कॉफी का मग हाथ मे लिये दूरबीन से दूर तलक देखते हुये वे बड़बड़ाये दोनों हरामखोर हैं तुम्हे इन दोनों को अलग अलग भेजना चाहिये।
साले दिखावे के लिये सारा दिन लड़ते रहते हैं पर एक दूसरे पे जान छिड़कते हैं।
बहुत रात बीत गई,पर वे वापस नही आये, अब चिंता होने लगी उन्हें ,यार चलो देखते हैं बहुत टाईम हुआ आये क्यो नही अभी तक??
आनन फानन में चारो ने हथियार उठाये और चल पड़े,पाक अधिकृत कश्मीर का बोर्डर था ये,वे उन्हें तलासते बहुत दूर निकल आये,
और फिर उनमें से एक चींख पड़ा सुधाकर मेरे यार ...........,
बर्फ पर औंधे मुँह सुधाकर की लाश पड़ी थी,वो रोने लगा,उनमें से एक बोला हेमराज को ढूंढो,
हेमराज,हेमराज पुकारते वे बदहवास से भाग रहे थे,की अचानक जो दिखा वो उन्हें पत्थर बना गया,
सामने हेमराज की लाश पड़ी थी,सर गायब।
आँखों से निरंतर आँसू बह रहे थे पर बहुत देर तक वे मूर्ति बने रहे।सुबह हुई ,मगर सिर्फ कहने को राजपुताना बटालियन पर गहन मौत का अंधकार छाया हुआ था।
यूँ तो उन दो जियालों की मौत पर सारा देश रोया होगा,पर उनका दर्द कौन समझ सकता हैं वो कुछ घंटों पूर्व ही एक दूसरे को छेड़ रहे थे वो अचानक छोड़ जाए।
खैर उन दोनों के शव उनके घर भेज दिये, मगर उन शवो का कोई क्या करें जो वही छूट गये थे ,ज़िंदा लाशें,ना कोई आवाज,ना ख़ाना ना पीना,सिर्फ क्रोध और दुःख से सुलगति आँखे।
4 दिन बाद,
लेफ्टिनेंट उन चारों के टेंट में आया ,
वे खड़े हो गये,
आवाज वही थी,पर उसमें वो रॉब नही था,तुम चारो ने खाना क्यो नही खाया 4 दिनों से,
उधर से कोई जवाब नही।
इधर से फिर बात दोहराई गई,मगर उधर से सिर्फ आँखों की दिशा बदली आवाज कोई नही,
फिर लेफ्टिनेंट का बेबस स्वर,मैं तुम्हे इसकी इजाजत नही दे सकता,तुम जो चाहते हो जानते हो उसका अंजाम क्या होगा ??
लेफ्टिनेंट साब,सुधाकर और हेमराज की कसम जब तक दुश्मनों से उनके खून का हिसाब चुकता ना कर ले हम चारो एक निवाला मुँह में नही डालेंगें।
लेफ्टिनेंट कसमसा कर बोला कि बिना सरकारी आदेश इसकी इजाजत कैसे दे दु ??
तो फिर जाईये लेफ्टिनेंट साब,हमारी फिक्र छोड़िये।
वो मुड़ा और पीठ करके बोला,ठीक हैं जाओ,पर ध्यान रहे मुझमे अब और लाश देखने का साहस नही,यदि तुम नही लौटे तो भवानी की सौगंध मैं खुद को गोली मार लूँगा।
इतना कहकर वो रुके नही,और वो चारो अचंभित रह गये,
वे तैयारी करके बाहर निकले तो बहुत से जवान बाहर खड़े थे,आँखों मे खून उतरा हुआ,चेहरा सपाट।
तुम सब केवल सीमा तक बैकअप दोगे, केवल हम अंदर जायेंगे,वे चल पड़े।
सर्द हवाएं सांय सांय करती बह रही थी,परन्तू वे मानो साक्षात काल बने दुश्मन की सीमा में प्रवेश कर गये।
इधर लेफ्टिनेंट फ़र्श पर बुझी सिगरेट के अशख़्य टुकडो को रौंदता चहल कदमी कर रहा था कि कोई 8-9 घंटो बाद वे चारो वापस आये,
खून के छींटों से मुँह और कपडे सने हुये, चारो के हाथों में बालों से पकड़े हुये कोई 14-15 पाकिस्तानी सैनिकों के सिर।
लीजिये सर सुधाकर और हेमराज को हमारी श्रद्धांजलि।
लेफ्टिनेंट आगे बढ़ा और उन्हें सैल्यूट मारकर बाँहे फैला दी,
वे चारो उन नरमुंडों को फेंक उनसे लिपट गये और फुट फुट कर रोने रहे,चट्टान की तरह दिखने वाला लेफ्टिनेंट भी उन संग रोता रहा।
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