( Indian Constitution & Dignity of The Indian Prime Minister .भारतीय संविधान और भारत के प्रधानमंत्री की गरिमा ) ====================== कलम से : भारद्वाज अर्चिता
{{ Indian Constitution & Dignity of
The Indian Prime Minister .
भारतीय संविधान और भारत के प्रधानमंत्री की गरिमा }}
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मैं ना पक्ष हूं, ना ही विपक्ष, ना भक्त हूं ना ही कमबख्त,
केवल अपने नागरिक धर्म का निर्वहन करते हुए बेबाकी से उजागर कर रहीं हूं “एक आम नागरिक की पैनी कलम से पक्ष एवम विपक्ष के कुछ चुभने वाले तटस्थ सत्य :
किसी भी लोकतंत्रात्मक देश का प्रधामनंत्री उस देश का गौरव होता है सम्मान का प्रतीक होता है किन्तु आज कांग्रेस पार्टी की It Cell की अध्यक्षा ने जिस तरह अपनी सारी सीमाएं तोड़ते हुए भारत के वर्तमान प्रधामनंत्री को चोर लिखते हुए एक फ़ोटो एडिट किया है वह मुझे मेरे देश एवम 125 करोड़ देशवासियों का अपमान लगा है, इस देश के संविधान एवम संविधान में वर्णित अनुच्छेद 74 के मुह पर करारा तमाचा लगा है, और मैं यह लेख लिखने को बाध्य हुई !
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मेरे सुधि पाठकों :
राजनीति में पक्ष - विपक्ष के बीच “वैचारिक मतभेद”
होना चाहिए इसका होना जरूरी भी है पर द्वेषपूर्ण “मनभेद” नही होना चाहिए, यह केवल मैं ही नही कह रहीं हूं बल्कि इस देश का हर आम नागरिक यही कहता एवम ऐसा ही चाहता है !
भारतीय मध्यावधि आम चुनाव 2014 के बाद कांग्रेस लगायत अन्य राजनीतिक दलों की भाषायिक स्तरहीनता एवम भारतीय संविधान को पूर्णरूपेण आत्मसात करने वाली भारतीय लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में प्रस्तावित एवम वर्णित भारतीय प्रधानमंत्री पद की गरिमा को ताक पर रख कर स्तरहीन अभिव्यक्ति का एक ऐसा चलन कायम किया गया जिसके अंतरगत देश के संविधान की परखचे परखचे धज्जियां उड़ाई जाने लगी ! लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार सबको है किन्तु भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के दायरे में रहते हुए !
लोकतंत्र व्यवस्था का मतलब ही है सबकी आजादी, सबका सम्मान, सबके लिए समानता का अधिकार, इस व्यवस्था में कोई निरंकुश नही हो सकता ! कानून का दंड एवं डंडा सबपर एक समान लागू होगा ! अब ऐसे में बात करना लाजमी हो जाता है अर्ची कि : जब भारतीय संविधान के अनुसार प्रधानमंत्री का पद बहुत ही महत्त्वपूर्ण पद है, प्रधानमंत्री ही संघ कार्यपालिका का प्रमुख होता है। चूंकि भारत में ब्रिटेन के समान संसदीय शासन व्यवस्था कों अंगीकार किया गया है, इसलिए प्रधानमंत्री पद का महत्त्व और भी अधिक हो जाता है। हमारे संविधान में अनुच्छेद 74 के अनुसार यह व्याख्यायित एवम वर्णित है कि प्रधानमंत्री ही मंत्रिपरिषद का प्रधान होगा। वह राष्ट्रपति के कृत्यों का संचालन भी करेगा ! जब देश का संविधा इतना आदर, इतना सम्मान, इतनी गरिमा प्रदान करता है प्रधानमंत्री को तो क्या ऐसे में देश के उस प्रधानमंत्री को जो :
सोलहवीं लोक सभा 2014 के आम चुनाव 7 अप्रैल 2014 से 12 मई 2014 के मध्य 9 चरणों में संपन्न हुए, वह चुनाव जो चुनाव भारतीय चुनाव आयोग द्वारा कराये गए। जिस चुनाव का परिणाम 16 मई 2014 को आया था ! जिसमें भारतीय जनता पार्टी (जो कि राजग का हिस्सा है) को कुल 543 में से 282 सीटें प्राप्त कर पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ।
जिसके बाद अर्ची भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीद्वार के रूप में नरेन्द्र भाई दामोदर दास मोदी ने 26 मई 2014 को भारत के पन्द्रहवें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लिया था। जहां तक मुझे ज्ञात है मैं भली भांति गवाह हूं कि : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को इस चुनाव में महज 44 सीटे मिली थी,अपनी कलम को अपने स्वभाव के हिसाब से आज मैं जरा सी पैनी कर दूं तो शब्द होगा कि :
बिना गठबंधन के वह कांग्रेस दल जो विपक्ष में बैठने की भी स्थिति में नही रहा उसे क्या भारतीय संविधान का अनुच्छेद 74 यह आजादी प्रदान करता है कि वह खुले मंच से भारी जनसमूह के बीच जनता द्वारा पूर्ण बहुमत से चुनी गई सरकार के मुखिया एवम भारतीय गणराज्य के सम्मानित पद पर विराजमान देश के प्रधानमंत्री को :
“चोर” कहे, कातिल कहे, साहब कहे, फेंकू कहे, दलाल कहे,पत्नी छोड़क कहे, खूनी कहे,मौत का सौदागर कहे ?
2014 से पहले देश के प्रधानमंत्री के लिए इस तरह के स्तरहीन अपमान जनक भाषा का प्रयोग इस देश में विपक्ष द्वारा प्रयोग होते मैने नही सुने थे जबकि मुझे सनद है 2014 से पहले का विपक्ष लोकसभा में विपक्षी दल के रूप में बैठने का सशक्त दावेदार था !
जहां तक मुझे ज्ञात है :
इस लोक सभा का पहला सत्र 4 जून से 11 जुलाई 2014 के मध्य रहा और इस सोलहवीं लोक सभा में विपक्ष में बैठने का दावेदार कोई नहीं था क्योंकि अर्ची भारतीय संसद के नियमानुसार, इस पद को पाने के लिए किसी दल के पास कम से कम लोक सभा के कुल सदस्यों का 10% सदस्य होना आवश्यक होता है। जबकि : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पास वर्तमान में कुल 44 सीटें ही थी वहीं कांग्रेस से केवल 7 सीट कम पर रही ऑल इण्डिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम इसके पास कुल 37 सीटें रहीं याने के विपक्ष में बैठने का सशक्त दावेदार कोई नही था !
फिर इस महागठबंधन विपक्ष द्वारा देश के वर्तमान प्रधानमंत्री के उपर इस तरह की भाषायियक हिंसा क्यों ??
2014 की सोलहवीं लोकसभा के गठन के साथ ही महागठबंधन विपक्ष द्वारा देश के प्रधानमंत्री को प्रधानमंत्री स्वीकार किए जाने तक से इनकार कर दिया गया क्यों ??
क्या किसी लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को पूर्णत: आत्मसात करके चलने वाले देश के लिए यह स्वस्थ संकेत है ??
क्या सत्तालोलुपता के चलते देश के संविधान की अवहेलना गम्भीर अपराध नही है ??
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क्रमश: पढें भारत के प्रधानमंत्री की शक्तियां एवम प्रोटोकॉल अगले अंक में :
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
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