सरदार भगत सिंह के महान क्रांतिकारी बनने के पीछे चाचा सरदार अजीत सिंह रहे गुरू !!

सरदार भगत सिंह के महान क्रांतिकारी बनने के पीछे
             चाचा सरदार अजीत सिंह रहे गुरू
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जयंती विशेष :
अपने भगता को नए - नए पहलू से जब खंगालना आरम्भ किया मैने अपनी किताब लिखने के लिए तो हर दिन एक से बढ कर एक नए - नए पहलू सामने आते गए ! इन सभी पहलू में सबसे अहम पहलू जो लगा मुझे, जिस पहलू पर जाकर भगत सिंह को खंगाला मैने वह पहलू था सरदार अजीत सिंह एवम सरदार भगत सिंह के बीच सगे चाचा भतीजा का  रिश्ता ! मैने पाया क्रांति तो भगत सिंह को घुट्टी में मिली थी अपने चाचा सरदार अजीत सिंह से हां जी वही सरदार अजीत सिंह ( 1881 से 1947 ) जो बाल गंगाधर तिलक एवम लाला लाजपत राय गरम दल कांग्रेस की आंखों के नूर हुआ करते थे, जिन्होने 26 वर्ष की उम्र में ही अपने जीवन का 10 वर्ष का समय देश भक्त होने की सजा भोगने में जेल में गुजारा था, जिनके बारे में अपने पिता सरदार किशन सिंह मां विद्यावती देवी एवम चाची से 3 वर्ष का बालक भगत सिंह रोज पूछा करता था :

“चाचा कहां गया है ?
चाचा कब आएगा ?
वह फिरंगी कौन हैं जो चाचा को जेल में बंद किए हैं ?
यह खूंटी टगी बंदूक किसकी है ??
चाचा इस बंदूक से क्या करेगा ??
3 वर्ष का बालक चाचा के लिए 300 प्रकार का सवाल
और माता पिता चाची का यह जवाब :
: चाचा जेल गया है !
: जब देश आजाद होगा चाचा तब आएगा !
: फिरंगी ब्रिटेन से आए हैं हमसे हमारे देश को छीन लिए
     हैं !
: खूंटी पर टगी बंदूक चाचा की है !
: चाचा बंदूक से गोरों को मार कर देश आजाद कराएगा !
इतना सुनते ही बालक भगत सिंह बोल उठा पिता जी मैं भी चाचा की तरह बनूंगा बंदूक से गोरो को मार कर अपना देश आजाद कराऊंगा !
बचपन की यही वह घटनाएं थी जो बालक भगत द्वारा खेत में बंदूक बोने जैसे बाल सुलभ सोच की गवाह बनी थी !
अब आप पाठक सोच सकते हैं :
जिसका अपना 26 साल बडा चाचा महान क्रांतिकारी सरदार अजीत सिंह घर में मौजूद था उसे भला लेनिन से क्या लेना देना था ....???
जी हां शहीद ए आजम भगत सिंह के साथ न्याय करने के लिए यही सोच तो भारत के युवावों के जेहन में, आचरण में विकसित करना मेरी किताब का मकसद है !
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महान क्रांतिकारी चाचा अजीत सिंह के शिष्य एवम 23 वर्ष की अल्पायु में लाखों युवावों को देश पर मर मिटने के   लिए प्रेरित करने हेतु फांसी पर झूल जाने वाले, जिन्दा रहने के आखरी पल तक साहस के साथ ब्रिटिश सरकार की दमन कारी नीतियों से दो-दो हाथ मुक़ाबला करने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह की आज 111वीं जयंती है ( जन्म 28 सितम्बर 1907 )
इस जयंती मेरे भगता को मेरी किताब के कुछ एक अंश से कोटि-कोटि प्रणाम !
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उपरोक्त लेख मेरी किताब का अंश है !
कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
28/09/2018

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माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता