बचपन मे शादी का क्रेज ================एक छोटी बच्ची उम्र यही कोई 5/6 वर्ष दौर 1988 का खेलना बहुत पसन्द खेल मे भी गुड्डे गुडिया की शादी विशेष पसन्द ! अडोस - पडोस - रिश्ते मे जब भी किसी की शादी हो तो घर मे अपने बडो से रोज बस एक ही सवाल : दादी मेरा दुल्हा कब आएगा ? : बडी अम्मा मेरा दुल्हा कब आएगा ? : दद्दा मेरा दुल्हा कब आएगा ?: चाचा मेरा दुल्हा कब आएगा ? : पापा मेरा दुल्हा कब आएगा ? आजकल शादी का मौसम शुरू हो गया है तो अपने गली मुहल्ले रिश्ते मे शादी व्याह का माहौल देखकर मेरे बचपन की कुछ ऐसी यादे अचानक मुझे अपनी तरफ खींचती चली गई यथा : उस समय परिवार सँयुक्त था । बडी दादी, छोटी दादी, सहित पिता का दो बडे भाईयो वाला हमारा पूरा परिवार एक ही घर मे, एक ही छत के नीचे रहता था और घर से लगे दूसरे घर मे रहता था मेरे बाबा के चाचा जी का परिवार । दोनो घर मेरे खेलने के अद्भुद् अड्डे थे । जैसा कि मैने जो बचपन जीया है मेरा वह बचपन वाला अनुभव कहता है सँयुक्त परिवार मे हमारे बडो के बीच भले किसी तरह का असंतोष होता है पर हम बच्चो की आपस मे बडी मौज रहती है । बचपन मे यह मौज मेरी भी थी ! चलिए अब आ जाते है मुख्य बिन्दु शादी पर, मेरे बचपन वाली शादी पर ! शादी के प्रति मेरे अटूट लोभ और आकर्षण पर वह भी तब जब मुझे शादी का मतलब केवल इतना पता था की शादी जब होती है एक दुल्हा आता है उसके साथ बहुत सारे बराता आते है । कुछ डाँट डपट के साथ हम बच्चो को फ्रूटी पीने के बाद फ्रूटी के खाली पैकेट को पैरो तले रखकर उसपर जोर से पैर मारने फोडने की पूर्ण आजादी होती है । बडे लिम्का पीते है अम्मा नयी साडी और जेवर से लकदक होती है दीदी की दोस्ते और दादी जाने क्या क्या बात करती है ! और सुबह जब मै सोकर जगती हूँ तो पाती हूँ फूलो से सजी बडी गाडी मे रात को आने वाला दुल्हा दुल्हन को अपने साथ۔लेकर अपने घर चला गया ! बडी दुविधा दुल्हा दुल्हन को अपने साथ लेकर क्यो चला गया ! दौडकर दादी के पास जाती और सवाल करती दादी दुल्हा कहाँ गया ? दादी का जवाब होता : दुल्हा अपने घर चला गया फिर सवाल : दादी मेरी शादी कब होगी ? दादी का जवाब : जब तुम बडी हो जाओगी फिर मेरा सवाल : दादी मै बडी कब होऊँगी दादी का जवाब : तुम्हारे बाप के पास खूब सारे रूपए होगे । मेरा सवाल : दादी रूपए का क्या होगा ? दादी का जवाब : रूपए से ही दुल्हा आएगा फिर मेरा सवाल : दादी दुल्हा रूपए से क्यो आएगा ? दादी का जवाब : क्योकि वह तुम्हे लेने खाली हाथ थोडे आएगा , फिर मेरा सवाल : दादी पापा से कहना मेरे लिए रूपए वाला दुल्हा नही लाएगे । दादी का जवाब : रूपए वाला दुल्हा नही आएगा तो तुम दुल्हन कैसे बनोगी ? फिर मेरा सवाल : दादी मुझे मेरी अम्मा की लाल वाली साडी पहना देना, बडी अम्मा की छम छम बजने वाली पायल पहना देना, और अपने बक्से से

बचपन मे शादी का क्रेज 
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एक छोटी बच्ची उम्र यही कोई 5/6 वर्ष 
दौर 1988 का 
खेलना बहुत पसन्द 
खेल मे भी गुड्डे गुडिया की शादी विशेष पसन्द ! 
अडोस - पडोस - रिश्ते मे जब भी किसी की शादी हो तो 
घर मे अपने बडो से रोज बस एक ही सवाल 
: दादी मेरा दुल्हा कब आएगा ? 
: बडी अम्मा मेरा दुल्हा कब आएगा ? 
: दद्दा मेरा दुल्हा कब आएगा ?
: चाचा मेरा दुल्हा कब आएगा ? 
: पापा मेरा दुल्हा कब आएगा ? 

आजकल शादी का मौसम शुरू हो गया है तो अपने गली मुहल्ले रिश्ते मे शादी व्याह का माहौल देखकर मेरे बचपन की कुछ ऐसी यादे अचानक मुझे अपनी तरफ खींचती चली गई यथा : 

उस समय परिवार सँयुक्त था । बडी दादी, छोटी दादी,  सहित पिता का दो बडे भाईयो वाला हमारा पूरा परिवार एक ही घर मे, एक ही छत के नीचे रहता था और घर से लगे दूसरे घर मे रहता था मेरे बाबा के चाचा जी का परिवार । दोनो घर मेरे खेलने के अद्भुद् अड्डे थे । 
जैसा कि मैने जो बचपन जीया है मेरा वह बचपन वाला अनुभव कहता है सँयुक्त परिवार मे हमारे बडो के बीच भले किसी तरह का असंतोष होता है पर हम बच्चो की आपस मे बडी मौज रहती है । बचपन मे यह मौज मेरी भी थी ! 

चलिए अब आ जाते है मुख्य बिन्दु शादी पर, मेरे बचपन वाली शादी पर ! शादी के प्रति मेरे अटूट लोभ और आकर्षण पर वह भी तब जब मुझे शादी का मतलब केवल इतना पता था की शादी जब होती है एक दुल्हा आता है उसके साथ बहुत सारे बराता आते है । कुछ डाँट डपट के साथ हम बच्चो को फ्रूटी पीने के बाद फ्रूटी के खाली पैकेट को पैरो तले रखकर उसपर जोर से पैर मारने फोडने की पूर्ण आजादी होती है । बडे लिम्का पीते है अम्मा नयी साडी और जेवर से लकदक होती है दीदी की दोस्ते और दादी जाने क्या क्या बात करती है ! और सुबह जब मै सोकर जगती हूँ तो पाती हूँ फूलो से सजी बडी गाडी मे रात को आने वाला दुल्हा दुल्हन को अपने साथ۔लेकर अपने घर चला गया ! बडी दुविधा दुल्हा दुल्हन को अपने साथ लेकर क्यो चला गया ! दौडकर दादी के पास जाती और सवाल करती दादी दुल्हा कहाँ गया ? 
दादी का जवाब होता : दुल्हा अपने घर चला गया 
फिर सवाल : दादी मेरी शादी कब होगी ? 
दादी का जवाब : जब तुम बडी हो जाओगी 
फिर मेरा सवाल : दादी मै बडी कब होऊँगी 
दादी का जवाब : तुम्हारे बाप के पास खूब सारे रूपए होगे । 
मेरा सवाल : दादी रूपए का क्या होगा ? 
दादी का जवाब : रूपए से ही दुल्हा आएगा 
फिर मेरा सवाल : दादी दुल्हा रूपए से क्यो आएगा ? 
दादी का जवाब : क्योकि वह तुम्हे लेने खाली हाथ थोडे आएगा , 
फिर मेरा सवाल : दादी पापा से कहना मेरे लिए रूपए वाला दुल्हा नही लाएगे । 
दादी का जवाब : रूपए वाला दुल्हा नही आएगा तो तुम दुल्हन कैसे बनोगी ? 
फिर मेरा सवाल : दादी मुझे मेरी अम्मा की लाल वाली साडी पहना देना, बडी अम्मा की छम छम बजने वाली पायल पहना देना, 
और अपने बक्से से 

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता