मेरा विश्वास मानिए, आपके जितने भी दुश्मन, दोस्त, प्रतिद्वंद्वी, प्रेमी, नफ़रत करने वाले हैं, आज से 40 साल के भीतर ही उनमें से लगभग सब मर चुके होंगे!.. 40 साल भी शायद हमने ज़्यादा बता दिया! शायद 30-35 में ही ज़्यादातर निपट चुके होंगे.. जो बचे भी होंगे, वो आंख, कान, हाथ, पैर, दिमाग़, याद्दाश्त...सब खो चुके होंगे...ये कड़वी सच्चाई है..समय का चक्र है..जरावस्था की हक़ीक़त है..और ये 30-35 साल पलक झपकते गुज़र जाएंगे! ठीक वैसे ही, जैसे अबतक की उम्र गुज़र गई! यहां सब क्षणिक है.. बेहद क्षणिक.. फिर कैसी चिंता, किस बात की फिक्र, कैसा डर, किससे डर, किससे तुलना, किससे प्रतिद्वंद्व, किससे दुश्मनी, किससे द्वेश, किस बात का द्वेश, किससे झिझक, कैसी झिझक...! इसलिए हमेशा मस्त रहें, प्रसन्न रहें, आनंदित रहें, खुशहाल रहे, ऊर्जावान रहें, चहकते रहें, हंसते रहें, हंसाते रहें...अपनी हैसियत अनुसार कभी होटलों में तो कभी खेतों-खलिहानों में, कभी नदी के किनारों पर तो कभी चौराहे के नुक्कड़ों पर, कभी किसी ज़रूरतमंद की मदद करते हुए तो कभी बच्चों के साथ खिलखिलाते हुए, कभी मित्रों के साथ तो कभी परिजनों के साथ, कभी पहाड़ों पर तो कभी झीलों के किनारे... कभी खेल के मैदान में तो कभी चौराहे वाली छोटी सी चाय की दुकान पर अपनी उम्र, पद, रैंक, पेशे इत्यादि झूठे व क्षणिक आवरण को फेंककर अट्ठाहास करके, पूरा मुंह खोलकर, हंस लिया कीजिए... चहक लिया करिए.. मृत्यु तय है.. जीवन बेहद अनिश्चित है.. बेहद छोटा है..
मेरा विश्वास मानिए, आपके जितने भी दुश्मन, दोस्त, प्रतिद्वंद्वी, प्रेमी, नफ़रत करने वाले हैं, आज से 40 साल के भीतर ही उनमें से लगभग सब मर चुके होंगे!.. 40 साल भी शायद हमने ज़्यादा बता दिया! शायद 30-35 में ही ज़्यादातर निपट चुके होंगे.. जो बचे भी होंगे, वो आंख, कान, हाथ, पैर, दिमाग़, याद्दाश्त...सब खो चुके होंगे...ये कड़वी सच्चाई है..समय का चक्र है..जरावस्था की हक़ीक़त है..और ये 30-35 साल पलक झपकते गुज़र जाएंगे! ठीक वैसे ही, जैसे अबतक की उम्र गुज़र गई!
यहां सब क्षणिक है.. बेहद क्षणिक.. फिर कैसी चिंता, किस बात की फिक्र, कैसा डर, किससे डर, किससे तुलना, किससे प्रतिद्वंद्व, किससे दुश्मनी, किससे द्वेश, किस बात का द्वेश, किससे झिझक, कैसी झिझक...!
इसलिए हमेशा मस्त रहें, प्रसन्न रहें, आनंदित रहें, खुशहाल रहे, ऊर्जावान रहें, चहकते रहें, हंसते रहें, हंसाते रहें...
अपनी हैसियत अनुसार कभी होटलों में तो कभी खेतों-खलिहानों में, कभी नदी के किनारों पर तो कभी चौराहे के नुक्कड़ों पर, कभी किसी ज़रूरतमंद की मदद करते हुए तो कभी बच्चों के साथ खिलखिलाते हुए, कभी मित्रों के साथ तो कभी परिजनों के साथ, कभी पहाड़ों पर तो कभी झीलों के किनारे...
कभी खेल के मैदान में तो कभी चौराहे वाली छोटी सी चाय की दुकान पर अपनी उम्र, पद, रैंक, पेशे इत्यादि झूठे व क्षणिक आवरण को फेंककर अट्ठाहास करके, पूरा मुंह खोलकर, हंस लिया कीजिए... चहक लिया करिए.. मृत्यु तय है.. जीवन बेहद अनिश्चित है.. बेहद छोटा है..
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