मेरे हुजरे में नहीं , और कहीं पर रख दो,आसमां लाये हो ले आओ , जमीं पर रख दो !अब कहाँ ढूड़ने जाओगे , हमारे कातिल ,आप तो क़त्ल का इल्जाम , हमी पर रख दो !उसने जिस ताक पर , कुछ टूटे दिये रखे हैं ,चाँद तारों को ले जाकर , वहीँ पर रख दो !दो गज ही सही मगर ये मेरी मिल्कियत तो है,ऐ मौत तूने मुझको ज़मींदार कर दिया !नयी हवाओं को सौहबत बिगाड़ देती है,कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती है !वो जो जुर्म करते हैं इतने बुरे नहीं होते,सज़ा न देकर अदालत बिगाड़ देती है !मिलाना चाहा है जब भी इंसा को इंसा सेतो सारे काम सियासत बिगाड़ देती है !सियासत में जरुरी है रवादारी समझता है ,वो रोज़ा तो नहीं रखता मगर इफ्तारी समझता है !अन्दर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गये ,जितने शरीफ़ लोग थे सब खुलके आ गये !सूरज से जंग जीतने निकले थे बेवकूफ ,सारे सिपाही मोम के थे सब घुल के आ गये !! : राहत इन्दौरी साहब
मेरे हुजरे में नहीं , और कहीं पर रख दो,
Comments
Post a Comment