सरदार भगत सिंह क्रान्ति से शहादत तक 
 घोर राष्ट्रवादी, घोर आस्तिक युवा नेतृत्व,

एक किताब जिसे लिखने की कल्पना 16 वर्ष की उम्र मे की थी मैने ! एक चरित्र जिसके सपने बचपन मे मेरी आँखो को बेचैन करते थे ! एक नायक जो अपनी उम्र से हजार गुना महान साबित कर गया है स्वयम के चरित्र को ! एक पुजारी जिसने अपनी पूजा मे अपना शीश ही अर्पण कर दिया है और अपने राष्ट् को अपना ईष्ट स्वीकार कर घोर आस्तिकता दिखाते हुए अपने सनातनी 36 कोटि देवी देवताओ की अराधना से इनकार करते हुए भी  दुनिया को यह बता गया कि : एक गुलाम राष्ट्र के युवाओँ के लिए उनका ईष्ट उनका अराध्य तब तक के लिए केवल उनका राष्ट्र है जब तक कि उनका गुलाम राष्ट्र आजाद नही हो जाता ! मुझे खेद है काम की व्यस्तता के चलते यह किताब लम्बे वक्त तक मूर्त रूप नही ले पाई और निजी कारणो से एक लम्बे  जद्दोजहद मे ही 20 साल का वक्त गुजर गया ! मन मे पछतावा बहुत था पर वक्त की मेहरबानी नही हो पा रही थी ! दो वर्ष पूर्व जब ऊर्जावान सहयोगी लेखक और मेरे प्रेरणास्रोत मार्गदर्शक श्री विभांशु जोशी जी का मुझे साथ मिला तब फिर एक बार नए सिरे से हमने यह किताब लिखने का मन बनाया और अपने “स्माइली लाइव क्रिएशन्स” बैनर की नीव रखने के साथ ही हमने इस किताब पर काम शुरू कर दिया ! 

अपने बैनर के तहत भगत सिंह पर इस किताब को लिखने के पीछे पूर्णरूप से हमारा मकसद केवल यही रहा है कि भगत सिंह के उन उद्देश्यो की पूर्ति हो जिनके लिए उन्होने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया ! हमे गर्व है कि हम इस किताब मे वह सारे सच लिखने मे कामयाब हुए है जिनसे शायद हमारी युवा पीढ़ी अब तक अनजान थी, और जिसे हमारी युवा पीढ़ी के लिए जानना नितान्त जरूरी है ! शहीद भगत सिंह के उन अधूरे सपनो को पूरा करने की एक कोशिश है हमारी यह किताब जो आज भी अधूरे लगते है ! 

इस किताब मे हम युवाशक्ति के भीतर राष्ट्र कल्याण की भावना का अलख जगाने हेतु भगत सिंह के जीवन के अनेक विन्दु पर जाकर गहन चिन्तन, संकलन करने के बाद भगत सिंह के परिवार के सदस्यो से बात - चीत करते हुए भगत सिंह के नाती एवम सरदार अजीत सिंह जी के पडपोते सरदार किरनजीत सिंह संधू से कई मुद्दो पर चर्चा के बाद एक आदर्श उद्देश्य की पूर्ति हेतु इस किताब को लिखना और राष्ट्र के साथ साथ राष्ट्र की युवा शक्ति को सौपने का निर्णय लिया है ! 

भगत सिंह के रूप मे राष्ट्रवादी आस्तिकता की ऐसी चरम अवस्था को हमारी आत्मा ने महसूस किया है जहाँ वह साफ तौर पर कहता है “ जब तक हमारा राष्ट्र, हमारी राष्ट्र माता गुलाम है हमारा कोई और इष्ट हो ही नही सकता,  ना ही हमे किसी अन्य ईष्ट की पूजा करने का ही कोई अधिकार है ! 

एक ऐसा राष्ट्र पुजारी जिसने अपने समय के साथ - साथ आने वाली करोडो - करोड शदी की हमारी युवा पीढ़ी को झकझोरते हुए समझाया है कि : 
दुनिया मे माँ से बडा कोई भगवान नही हुआ, माँ की पूजा से बडी कोई पूजा नही हुई , माँ से ताकतवर और महान तो प्रकृति भी नहीं हो पायी है ऐसे मे अगर हमारी राष्ट्रमाता गुलामी की जंजीर में जकड़ी है तो हमारे राष्ट्र के  युवा नेतृत्व का पहला धर्म है राष्ट्रमाता की पूजा राष्ट्रमाता की अराधना क्योकि माँ और राष्ट्र माता से बडा कोई आराध्य नही वेदो मे झाँक लो या फिर दुनिया के इतिहास का कैलेन्डर खँगाल लो बस एक ही सत्य सामने खडा पाओगे जिस राष्ट्र का के नागरिको ने अपने राष्ट्र से ज्यादे प्राथमिकता किसी धर्म एवम पूजा विशेष को दिया उस राष्ट्र का स्थान विश्व मानचित्र पर या तो शून्य है या फिर कही है ही नही ! 

उसने जब इस धरती पर आँख खोला तो घुट्टी मे ही मिल गए क्रान्तिकारी चाचा सरदार अजीत सिह । अभी शब्दो की न समझ हुई थी न ही कानो ने शब्द - शब्द के बीच का अन्तर करना ही सीखा था की तभी कानो मे गूँजने लगे लोरी के बहाने माँ और चाची के गाए क्रान्तिगीत, डगमग - डगमग पग धरने की कोशिश भर की थी की दरवाजे की खूँटी पर टगी चाचे स्वर्ण सिह की बन्दूक को उचक कर छू लेने के लिए मचलने लगा ! नन्हा भगत जब भी पिता की गोदी चड कर चाचा की बन्दूक बार - बार छूता तो पिता को अक्शर एहसास होता जैसे उनके आर्य समाजी विचारो के कन्धे पर उनका नन्हा बेटा बडी ही मजबूती से राष्ट्वाद के पैर टिकाने की कोशिश कर रहा हो  !  सुबह - सुबह जब दादी भाँगोवाला कह कर उसे जगाती तो वह खिलखिलाकर पूछता पिता जी की पूजा खत्म तो नही हुई ना ? और दौड कर पिता के पास जाता अथर्ववेद की वह ऋचा सुनने जिसे पूजा के समय आर्य समाजी पिता सरदार किशन सिंह रोज गुनगुनाया करते थे :  

             माता भूमि: पुत्रोअहं पृथव्या: 
         नमो माता पृथव्यै, नमो माता पृथव्यै 

बेटे भगत को सामने देखकर पिता सरदार किशन सिंह मुस्कुराते उसे अपने पास बुलाकर उसके माथे पर हाथ फेरते और ऋषि वाल्मीकि कृत रामायण की पक्ति सुनाते यथा : 
          जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥ 

पक्ति सुनकर बालक भगत पिता से मतलब पूछता और पिता कहते : भगत माँ और मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊँचा एवम पवित्र है इन दोनो की रक्षा हेतु अगर हमारा सर्वस्व चला जाए तो भी हमे शोक नही करना चाहिए ना ही इनकी रक्षा करने से पीछे ही हटना चाहिए ॥ 
यह वह पल था जब जाने अनजाने पिता सरदार किशन सिंह अपने बेटे के भीतर राष्ट्रवाद की अलख जगा रहे थे ! 

यह किताब लिखने से पूर्व हमने जब गहन चिन्तन किया तो पाया कि एक 23 वर्ष 5 माह 25 दिन का वह युवा पत्र लिख कर दुनिया को समझा रहा है कि : 

                      मै नास्तिक क्योँ हूँ ? 

और उसके इस समझाने मे ही उसकी घोर राष्ट्रवादी आस्तिकता मूर्त हो जाती है ! अपनी किताब के बाबत हमने जब भगत सिंह का पूरा पत्र पढ़ा तो समझ आया की इस पत्र का नाम उसने यह क्यो नही लिखा की : 
“मै नास्तिक हूँ” आखिर उसने यह क्यो लिखा की “ मै नास्तिक क्यो हूँ ? ”

भगत सिंह के जीवन मे 6 यू टर्न आते है यथा : 
1 : 
आर्यसमाजी जाट सिख परिवार मे उनका जन्म लेना 

2 : 
12 वर्ष की छोटी उम्र मे 13 अप्रैल सन 1919 को जलियांवाला बाग अमृतसर नरसंहार का चश्मदीद होना, 

3 : 
17 नवम्बर 1928 को लाला लाजपत राय की मौत ! 

4 : 
1919 मे जलियांवाला नरसंहार अमृतसर की घटना के बाद मात्र 12 वर्ष की छोटी उम्र मे भगत का महात्मा गांधी के करीब आना एवम गांधी के अहिंसा वाले मार्ग का अनुकरण करना ! 

5 : 
चौरी चौरा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित कस्बे मे 4 फ़रवरी 1922 को भारतीयों द्वारा ब्रिटिश सरकार की एक पुलिस चौकी को आग लगा देने की घटना और चौकी में छुपे हुए 22 पुलिस कर्मचारियो के जिन्दा जल मरने की घटना ! 

6 : 
   असेम्बली पर बम फेक कर बहरी हो चुकी अंग्रेजी हुकूमत के कान खोलने के साथ ही आलस की नीद सोए लाखो भारतीय युवाओ को राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाते हुए स्वयम को जिन्दा करने का उद्देश्य पूरा करना !

कलम से : 
लेखक विभांशु जोशी, भारद्वाज अर्चिता

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

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