gazal chand
चाँद की तरफ खलिश देखने से कहीं अच्छा
की चाँद को पानी मे उतारा जाए
मान उसका भी ना मिटे
ख्वाब हमारा भी सच हो जाये
चाँद की तरफ खलिश.......................!!१!!
आदमी जमीन का
आसमानी जरा कम ही हो पाता है,
क्यों ना आसमान को ज़मीन पर झुकाया जाए
प्यार के दरमिया क्षितिज मिलन का बनाया जाए
चाँद की तरफ खलिश................!!२!!
शहर मोहब्बत का ढूंढिये
सज़र मोहब्बत की ढूंढिये
आइए अब कौम-ए-दाग नफ़रतों की
मोहब्बत से मिटाया जाए
चाँद की तरफ खलिश ...................!!३!!
रहते तो है हम पडोस मे ही
पर जमाना हो गया अर्ची मिले हुए हमे एक-दूसरे से,
चलो बैठ कर आज आमने - सामने
मन की गिरह खोली जाए,
बढ गया है जो हमारे दरमियाँ सुबहा-ए-शक
वजह उनकी टटोली जाए,
चाँद की तरफ खलिश ...........................!!४!!
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कलम से :
लेखक विभांशु जोशी एवम भारद्वाज अर्चिता
संयुक्त रूप से लिखी गयी ग़ज़ल
लेखक विभांशु जोशी एवम भारद्वाज अर्चिता
संयुक्त रूप से लिखी गयी ग़ज़ल
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