बचपन में मुझे बडा उत्साह रहता था मिट्टी के घरौंदे बनाने का ! आतिशबाजी का कोई शौक नही था क्योकि आतिशबाजियों से डर लगता था, आज भी लगता है ! पर मेरा मिट्टी का घरौंदा भावनाओ का अम्बार था मेरे लिए। समय ने तो बचपन कब का छिन लिया है लेकिन घरौंदों की यादें अभी भी मेरे भीतर गहरे तक बसी है ! सफाई, मिठाई, पकवान, घरौंदे, दिए, और पुरानी यादें कितने ही तो रूप हैं अर्ची दीपावाली के जिन्हे याद करके तुम आज भी खुश हो सकती हो ॥
बचपन में मुझे बडा उत्साह रहता था मिट्टी के घरौंदे बनाने का ! आतिशबाजी का कोई शौक नही था क्योकि आतिशबाजियों से डर लगता था, आज भी लगता है !
पर मेरा मिट्टी का घरौंदा भावनाओ का अम्बार था मेरे लिए। समय ने तो बचपन कब का छिन लिया है लेकिन घरौंदों की यादें अभी भी मेरे भीतर गहरे तक बसी है !
सफाई, मिठाई, पकवान, घरौंदे, दिए, और पुरानी यादें कितने ही तो रूप हैं अर्ची दीपावाली के जिन्हे याद करके तुम आज भी खुश हो सकती हो ॥
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