मोहनदास गांधी से महात्मा गांधी बनने तक गांधी के जीवन मे माँ पुतलीबाई का योगदान ॥ ==============================  महात्मा गांधी की 150वीं जयंती विशेष के उपलक्ष में लेखक विभांशु जोशी एवम भारद्वाज अर्चिता की कलम से स्माइली लाइव क्रिएशन्स परिवार की प्रसतुति “मोहनदास गांधी से महात्मा बनने तक गांधी के जीवन मे माँ पुतलीबाई का योगदान” !  विश्व मदर्स डे 12 मई 2019 से वैश्विक स्तर पर विश्व भर की महान माताओं को समर्पित करके शुरू की गयी अपनी कहानी श्रृंखला “माँ तेरा आँचल जो हमेशा साथ रहता है” में आज हम लेकर आये हैं वैश्विक स्तर के महान चरित्र, सत्य अहिंसा के पुजारी, मानवता के पक्षधर, सहिष्णुता, समानता के संस्थापक मोहनदास करमचन्द गांधी के युग नायक बनने के मार्ग में उनकी मां पुतली बाई के योगदान की सच्ची कहानी !  हमारी कलम से लिखी गयी उपरोक्त सच्ची कहानी से अवगत होने के बाद यह स्वीकार करना हर माँ के लिए गौरव की बात होगी की मोहनदास करमचन्द गांधी वही बने जो उनकी माँ पुतलीबाई ने उनकी परवरिश के दौरान उनके आचरण मे रोपित किया था ।                          *****  कलम से :  लेखक विभांशु जोशी एवम भारद्वाज अर्चिता  इस कहानी श्रृंखला के तहत लिखी गयी हमारी सभी कहानियों का कॉपीराइट स्माइली लाइव क्रिएशन्स के तहत सुरक्षित है ॥

मोहनदासगांधीसेमहात्मागांधीबननेतकगांधीकेजीवनमेमाँपुतलीबाईकायोगदान ॥
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महात्मा गांधी की 150वीं जयंती विशेष के उपलक्ष में लेखक विभांशु जोशी एवम भारद्वाज अर्चिता की कलम से स्माइली लाइव क्रिएशन्स परिवार की प्रसतुति “मोहनदास गांधी से महात्मा बनने तक गांधी के जीवन मे माँ पुतलीबाई का योगदान” ! 

विश्व मदर्स डे 12 मई 2019 से वैश्विक स्तर पर विश्व भर की महान माताओं को समर्पित करके शुरू की गयी अपनी कहानी श्रृंखला “माँ तेरा आँचल जो हमेशा साथ रहता है” में आज हम लेकर आये हैं वैश्विक स्तर के महान चरित्र, सत्य अहिंसा के पुजारी, मानवता के पक्षधर, सहिष्णुता, समानता के संस्थापक मोहनदास करमचन्द गांधी के युग नायक बनने के मार्ग में उनकी मां पुतली बाई के योगदान की सच्ची कहानी ! 

हमारी कलम से लिखी गयी उपरोक्त सच्ची कहानी से अवगत होने के बाद यह स्वीकार करना हर माँ के लिए गौरव की बात होगी की मोहनदास करमचन्द गांधी वही बने जो उनकी माँ पुतलीबाई ने उनकी परवरिश के दौरान उनके आचरण मे रोपित किया था । 
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 कलम से : 
लेखक विभांशु जोशी एवम भारद्वाज अर्चिता 

इस कहानी श्रृंखला के तहत लिखी गयी हमारी सभी कहानियों का कॉपीराइट स्माइली लाइव क्रिएशन्स के तहत सुरक्षित है ॥

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता