जलियांवाला बाग के हत्याकांड ने 12 साल के बच्चे को बनाया क्रांतिकारी 9/28/2016 12:56:18 PM सहारनपुर: अंग्रेजी हुकूमत की जडों को अपने अदम्य साहस से झकझोर देने वाले शहीदे आजम भगत सिंह को जेल प्रशासन ने फांसी देने से पहले वाहे गुरू का ध्यान करने की सलाह दी तो उनके शब्द थे अब आखिरी वक्त भगवान को क्या याद करना, जिन्दगी भर तो मैं नास्तिक रहा, अब भगवान को याद करूंगा तो लोग कहेंगे मैं बुजदिल और बेईमान था और आखिरी वक्त मौत को सामने देखकर मेरे पैर लडख़ड़ाने लगे।  पाक के ग्राम चक में हुआ भगत सिंह का जन्म अंग्रेजों के चूल्हे हिला देने वाले शहीदे आजम भगत सिंह का जन्म पाकिस्तान के ग्राम चक 105 जिला लायलपुर में 28 सितम्बर 1907 को हुआ था। उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता विद्यावती था। सिर्फ 12 साल की उम्र में जलियांवाला बाग हत्याकांड के साक्षी रहे भगत सिंह की सोच पर ऐसा असर पड़ा कि उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भारत की आजादी के लिए ‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना कर डाली। भगत सिंह के भतीजे किरणजीत ने बातचीत में कहा कि शहीद की साहसी क्रांतिकारी व्यक्तित्व को एक तरफ रखकर देखें तो पता चलता है कि वे एक सरस, सजीव, मसखरे, सह्रदय, सन्तुलित और उदार मानव थे।  भगत सिंह नहीं पहुंचाते थे किसी को ठेस  उन्होंने बताया कि शहीदे आजम भगत सिंह (ताया जी) निश्चयों के प्रति उनमे ऐसी ही अटलता थी, जैसी धार्मिक ²ष्टि के मनुष्यों मे धर्म के प्रति होती है, जो निश्चय हो गया उसमे न वे ढील करते थे, न ढील सहते थे। कोई ढील करे, तो उन्हें गुस्सा आ जाता था। बहुत कुछ कहते-कहते सुनते थे। वे किसी को ठेस नही पहुंचाते थे। यदि उन्हें यह महसूस होता उनकी बात से किसी को ठेस लगी है, तो वह हंसी खुशी का वातावरण बना कर उसे प्रसन्न करने की कोशिश करते थे। इससे काम न चले तो, गले मे हाथ डालकर उसे प्रसन्न करने की कोशिश करते थे। जेल के अफसर उनकी देख रेख करते थे। लाहौर जेल के बडे जेलर खान बहादुर मुहम्मद अकबर कहा करते थे कि उन्होंने अपने समूचे जीवन में भगत सिंह जैसा श्रेष्ठ मनुष्य नहीं देखा। छत पर अकेले बैठे रोते रहते थे भगत सिंह  शहीदे आजम उदासी के दुश्मन थे उदासी उनके पास फटक ही नही पाती थी। साहस उनके स्वभाव का अभिन्न अंग था। 1925 मे शहीदे आजम दिल्ली के वीर अर्जुन में सम्पादन विभाग का काम भी करते थे। दीनानाथ सिद्धान्तालंकार के साथ एक चौबारे में रहते थे। उन्हीं के शब्दों मे वे मितभाषी और अध्ययन शील थे। खाली समय में और रात को प्राय: राजनीतिक, ऐतिहासिक, सामाजिक. और आर्थिक पुस्तकें पढते थे। समाचार तैयारी करने मे चुस्त थे। उनका जीवन अत्यन्त सादा और संयम पूर्ण था। दीनानाथ सिद्धान्तालंकार के ही शब्दो मे रात मे वे अक्सर चौबारे की छत पर अकेले बैठे रोते थे। जब मैने रोने का कारण पूछा, तो बहुत देर चुप रहने के बाद बोले, मातृभूमि की इस दुर्दशा को देखकर मेरा दिल छलनी हो रहा है। एक ओर विदेशियों के अत्याचार हैं, दूसरी और भाई-भाई का गला काटने को तैयार है। इस हालत में मातृभूमि के ये बन्धन केसे कटेंगे।   आजादी के इस मतवाले ने दिया काकोरी कांड को अंजाम  आजादी के इस मतवाले ने पहले लाहौर में ‘सांडर्स-वध’ और उसके बाद दिल्ली की सेंट्रल असेम्बली में चंद्रशेखर आजाद और पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ बम-विस्फोट कर ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलंदी दी। शहीद भगत सिंह ने इन सभी कार्यो के लिए वीर सावरकर के क्रांतिदल अभिनव भारत की भी सहायता ली और इसी दल से बम बनाने के गुर सीखे। वीर स्वतंत्रता सेनानी ने अपने दो अन्य साथियों सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर काकोरी कांड को अंजाम दिया, जिसने अंग्रेजों के दिल में भगत सिंह के नाम का खौफ पैदा कर दिया। 

जलियांवाला बाग के हत्याकांड ने 12 साल के बच्चे को बनाया क्रांतिकारी

9/28/2016 12:56:18 PM

सहारनपुर: अंग्रेजी हुकूमत की जडों को अपने अदम्य साहस से झकझोर देने वाले शहीदे आजम भगत सिंह को जेल प्रशासन ने फांसी देने से पहले वाहे गुरू का ध्यान करने की सलाह दी तो उनके शब्द थे अब आखिरी वक्त भगवान को क्या याद करना, जिन्दगी भर तो मैं नास्तिक रहा, अब भगवान को याद करूंगा तो लोग कहेंगे मैं बुजदिल और बेईमान था और आखिरी वक्त मौत को सामने देखकर मेरे पैर लडख़ड़ाने लगे। 

पाक के ग्राम चक में हुआ भगत सिंह का जन्म
अंग्रेजों के चूल्हे हिला देने वाले शहीदे आजम भगत सिंह का जन्म पाकिस्तान के ग्राम चक 105 जिला लायलपुर में 28 सितम्बर 1907 को हुआ था। उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता विद्यावती था। सिर्फ 12 साल की उम्र में जलियांवाला बाग हत्याकांड के साक्षी रहे भगत सिंह की सोच पर ऐसा असर पड़ा कि उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भारत की आजादी के लिए ‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना कर डाली। भगत सिंह के भतीजे किरणजीत ने बातचीत में कहा कि शहीद की साहसी क्रांतिकारी व्यक्तित्व को एक तरफ रखकर देखें तो पता चलता है कि वे एक सरस, सजीव, मसखरे, सह्रदय, सन्तुलित और उदार मानव थे। 

भगत सिंह नहीं पहुंचाते थे किसी को ठेस 
उन्होंने बताया कि शहीदे आजम भगत सिंह (ताया जी) निश्चयों के प्रति उनमे ऐसी ही अटलता थी, जैसी धार्मिक ²ष्टि के मनुष्यों मे धर्म के प्रति होती है, जो निश्चय हो गया उसमे न वे ढील करते थे, न ढील सहते थे। कोई ढील करे, तो उन्हें गुस्सा आ जाता था। बहुत कुछ कहते-कहते सुनते थे। वे किसी को ठेस नही पहुंचाते थे। यदि उन्हें यह महसूस होता उनकी बात से किसी को ठेस लगी है, तो वह हंसी खुशी का वातावरण बना कर उसे प्रसन्न करने की कोशिश करते थे। इससे काम न चले तो, गले मे हाथ डालकर उसे प्रसन्न करने की कोशिश करते थे। जेल के अफसर उनकी देख रेख करते थे। लाहौर जेल के बडे जेलर खान बहादुर मुहम्मद अकबर कहा करते थे कि उन्होंने अपने समूचे जीवन में भगत सिंह जैसा श्रेष्ठ मनुष्य नहीं देखा।

छत पर अकेले बैठे रोते रहते थे भगत सिंह
 शहीदे आजम उदासी के दुश्मन थे उदासी उनके पास फटक ही नही पाती थी। साहस उनके स्वभाव का अभिन्न अंग था। 1925 मे शहीदे आजम दिल्ली के वीर अर्जुन में सम्पादन विभाग का काम भी करते थे। दीनानाथ सिद्धान्तालंकार के साथ एक चौबारे में रहते थे। उन्हीं के शब्दों मे वे मितभाषी और अध्ययन शील थे। खाली समय में और रात को प्राय: राजनीतिक, ऐतिहासिक, सामाजिक. और आर्थिक पुस्तकें पढते थे। समाचार तैयारी करने मे चुस्त थे। उनका जीवन अत्यन्त सादा और संयम पूर्ण था। दीनानाथ सिद्धान्तालंकार के ही शब्दो मे रात मे वे अक्सर चौबारे की छत पर अकेले बैठे रोते थे। जब मैने रोने का कारण पूछा, तो बहुत देर चुप रहने के बाद बोले, मातृभूमि की इस दुर्दशा को देखकर मेरा दिल छलनी हो रहा है। एक ओर विदेशियों के अत्याचार हैं, दूसरी और भाई-भाई का गला काटने को तैयार है। इस हालत में मातृभूमि के ये बन्धन केसे कटेंगे।  

आजादी के इस मतवाले ने दिया काकोरी कांड को अंजाम 
आजादी के इस मतवाले ने पहले लाहौर में ‘सांडर्स-वध’ और उसके बाद दिल्ली की सेंट्रल असेम्बली में चंद्रशेखर आजाद और पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ बम-विस्फोट कर ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलंदी दी। शहीद भगत सिंह ने इन सभी कार्यो के लिए वीर सावरकर के क्रांतिदल अभिनव भारत की भी सहायता ली और इसी दल से बम बनाने के गुर सीखे। वीर स्वतंत्रता सेनानी ने अपने दो अन्य साथियों सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर काकोरी कांड को अंजाम दिया, जिसने अंग्रेजों के दिल में भगत सिंह के नाम का खौफ पैदा कर दिया। 

Comments

Popular posts from this blog

“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता