राष्ट्रीयएवंवैश्विकपरिदृश्यमेंगांधीकारामराज्य

  राष्ट्रीय एवं वैश्विक परिदृश्य में गांधी का रामराज्य

राष्ट्र क्षितिज पर आजादी का सूरज नव विहान की अरुणिमा के साथ जब अंगड़ाई लेने की तरफ अग्रसर हो चुका था, तब महात्मा गांधी ने 20 मार्च सन 1930 को उस दौर की हिन्दी पत्रिका नवजीवन में स्वराज्य और रामराज्य शीर्षक से देश के नाम एक लेख लिखा था, और उस लेख मे आजादी मिल जाने के बाद कैसा हो देश का वैश्विक स्वरूप यह तथ्य पूरी दुनिया के साथ - साथ तात्कालिक भारत के आम और खास जनमानस तक सीधे तौर पर पहुँचाते हुए, सीधे तौर पर देश के युवक - युवती,  स्त्री - पुरुष, कारोबारी जन, राजे-रजवाड़े, बौद्धिक वर्ग से जुडते हुए रामराज्य पर अपनी अवधारणा, अपनी परिकल्पना, अपनी राय कुछ इस प्रकार स्पष्ट की थी :

“राजनीति से परे हटकर व्यक्ति के चरित्र निर्माण से तय हो राष्ट्र का निर्माण तब जाकर कही सार्थक होगा उस आजादी का सपना जिसको पाने की अभिलाषा लिए आज एक - एक व्यक्ति केवल शरीर ही नहीं बल्कि आत्मा के स्तर पर देश की आजादी से जुडा हुआ है !

बापू कहते थे “आजादी आए तो सामने के द्वार से उस सूरज की तरह आए जिसकी रौशनी मे मलीन अंधेरे का कोना - कोना नहा उठे, चारो तरफ विकास का प्रकाश हो केवल विकास का प्रकाश !

आजादी मिलने के बाद आजादी का दुरूपयोग न हो, निज स्वार्थ के संकीर्ण अर्थ को आश्रय न मिले, द्वेशपूर्ण नीति से समाज मे कुछ अकल्याणकारी स्थापित करने की अज्ञानतापूर्ण कोशिश न हो इसके लिए देश मे केवल रामराज्य की स्थापना होनी चाहिए ।

विश्व जब युद्ध पर युद्ध धोपते हुए अपने शक्ति प्रदर्शन मे लगा हुआ है ऐसे मे दुनिया के सामने केवल हमारे रामराज्य की अवधारणा ही एक मात्र वह विकल्प बचती है जो नाश पर कल्याण की स्थापना कर सके !”

आज हम जब दुनिया से कदमताल करते हुए विकास की तरफ बढ़ रहे तो हमें गांधी के सपनों के उस वास्तविक ‘रामराज्य’ के बारे मे एक बार फिर से समझने की जरूरत महसूस होती है जिस रामराज्य को आजादी के बाद केवल गांधी की कल्पना तक ही सिमित रहने दिया गया, सत्य के धरातल पर जो कभी मूर्त रूप नही ले पाया !

दांडी मार्च के दौरान जब गांधीजी के विचारों से देश के प्रबुद्ध वर्ग मे भ्रांतियाँ खडी होने लगी तब उन्होने इस वर्ग की भ्रांतियों के निवारण हेतु 20 मार्च सन 1930 को हिन्दी पत्रिका नवजीवन में स्वराज्य और रामराज्य शीर्षक से लेख के रूप मे अपना विचार लिखकर पूरे देश को बताया :

“स्वराज्य के कितने ही अर्थ क्यों न किए जाएं, तो भी मेरे नजदीक तो उसका त्रिकाल सत्य एक ही अर्थ है, और वह है रामराज्य ! यदि किसी को रामराज्य शब्द बुरा लगे तो मैं उसे धर्मराज्य कहूंगा !  रामराज्य शब्द का भावार्थ यह है कि उसमें गरीबों की संपूर्ण रक्षा होगी, सब कार्य धर्मपूर्वक किए जाएंगे और लोकमत का हमेशा आदर किया जाएगा.... सच्चा चिंतन तो वही है जिसमें रामराज्य के लिए योग्य साधन का ही उपयोग किया गया हो !  यह याद रहे कि रामराज्य स्थापित करने के लिए हमें पाण्डित्य की कोई आवश्यकता नहीं है, जिस गुण की आवश्यकता है, वह तो सभी वर्गों के लोगों - स्त्री, पुरुष, बालक और बूढ़ों - तथा सभी धर्मों के लोगों में आज भी मौजूद है, दुःख मात्र इतना ही है कि सब कोई अभी उस हस्ती को पहचानते ही नहीं हैं ! सत्य, अहिंसा, मर्यादा-पालन, वीरता, क्षमा, धैर्य आदि गुणों का हममें से हरेक व्यक्ति यदि वह चाहे तो क्या आज ही परिचय नहीं दे सकता ?
हम तो रामराज्य का अर्थ स्वराज्य, धर्मराज्य, लोकराज्य करते हैं ! वैसा राज्य तो तभी संभव है जब जनता धर्मनिष्ठ और वीर्यवान् बने..और....देश के युवक देश के प्रति सदाचारी, सदकर्मी बने॥” ....
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क्रमश: कल के अंक में “महात्मा गांधी के प्रैक्टिकल जीवन की अवधारणा” !
 
कलम से :
लेखक विभांशु जोशी एवम भारद्वाज अर्चिता
@कॉपीराइट स्माइली लाइव क्रिएशन्स !

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