2009 से स्कूटी के सहसवार होने का मुझे भी सौभाग्य हासिल है ! दो वर्ष सकुशल अखबार की नौकरी पूरी होने पर अपनी तनख्वाह से बचत किए गए 53 हजार रूपए ( आर०टी०ओ०चार्ज सहित ) से मैने अपनी पहली स्कूटी खरीदा साथ मे हेलमेट मिला फ्री ! अपनी मनपसन्द होण्डा कम्पनी की स्कूटी हाथ लगी तो परम सुख की अनुभूति हुई मुझे हर वह व्यक्ति शायद इस परम सुख की अनुभूति का अनुभव कर सकता है मेरा  सँस्मरण पढ़ते हुए जिसने खुद की कमाई से अपनी गाडी खरीदा है !
गाडी पर खर्च हुए कूल रूपए 53 हजार लेकिन गाडी लेकर अगली सुबह office पहुचने पर office ने ट्रीट लेकर अच्छा भला चूना लगाया क्योकि केवल 3000 हजार के लड्डू 1000 रूपए के समोसे की पार्टी मेरे लिए मेरी खुशी को कम कर देने वाली थी !
11 वर्ष, दो स्कूटी, 8 हेलमेट, यह भी एक अजीब दुखद हादसा है मेरे साथ वजह कोई भी हेलमेट पूरे ज्यादे दिन नही टिकता मेरे पास हमेसा हेलमेट चोरी की प्रताडना से गुजरना पडता है ! इस बार दो हेलमेट ले रखा है सोचती हूँ क्या पता कब कौन कहाँ चुरा ले हेलमेट तो तुरन्त हेलमेट की व्यवस्था हो जाएगी ! आजकल हेलमेट की चोरी कुछ ज्यादे होने लगी है क्योकि सरकार ने नया रूल लाकर जुर्माने की व्यवस्था सख्ती से कर दी है !
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Archita

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता