jis din hum nahi honge
जिस दिन हम नहीं होंगे : उस दिन
हमे सबसे ज्यादा याद वही लोग करेंगे
जिन्हें आज हमारी सूरत, सीरत, एवं शब्दों से
बेतहाशा नफरत है,
कवि की तो नियति ही यही है अर्ची कि :
उसकी मौत के बाद ही
उसके रचना संसार के शब्द
लोगों की मरी हुई भावनाओं को
झकझोरते हैं,
करूणा के धरातल पर लाकर
उसमें संवेदना की साँस फूंकते हैं,
स्वार्थ का आवरण हटाकर
शून्य पर खडे विराट के
निष्कलुष रूप का दर्शन कराते हैं,
तभी तो :
अनन्त - चीर - मौन साध कर भी
कवि लोगो की आँखो मे छलकता है :
आशा बनकर,
प्रायश्चित बनकर,
जीवन बनकर,
कविता बनकर,
खुद का तर्पण - अर्पण कर
त्याग की मटी में
माटी बनकर !!
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
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