chitthi

आओ चलो अर्ची गोलोकवासी आदरणीय अटल जी को देश की तरफ से कुछ इस आग्रह के साथ एक चिट्ठी लिखते है यथा :
सेवा मे :
हमारे परम पूज्य, हमारे परम सम्मानित जन सादर चरण स्पर्श ! आदरणीय आपको सूचित करना है कि : आपको खोकर उपजे उस रिक्त स्थान की भरपायी हम सब अब तक नही कर पाए है भारत की धरती पर की आपने तो स्वर्ग मे भी भाजपा कार्यालय स्थापित कर लिया और अपने समय के अपने सभी प्रिय, समर्पित, बेहद करीबी, भाजपा के महानायकोँ को एक के बाद एक बुला - बुला कर भाजपा की सदस्यता भी दिलवाना शुरू कर दिया ! आदरणीय आपके जाने के बाद अच्छे स्वस्थ विचारोँ वाले भाजपा के नेताओँ का द्रूत गति से गोलोकवासी होना मन को बहुत द्रवित कर रहा है ! एक एक करके अनेक शून्यता व्यापती जा रही है जिसकी भरपाई हो पाना कभी सम्भव नही है ! अत: आपसे आपके इहलोकवासी भारत की बेटी का आग्रह है श्रीमान जी स्वर्ग के अपने भाजपा कार्यालय पर ताला लगा कर पुन: नया रूप धर कर अपनी पूर्व की कर्मभूमि भारत की माटी मे लौट आइए असमय स्वर्ग के भाजपा कार्यालय की सदस्यता लेने स्वर्ग आपके पास जाते सदस्योँ को धरती पर अभी बने रहने दीजिए ! हम युवाओ के उज्ज्वल भविष्य निर्माण मे मार्गदर्शन हेतु धरती पर उनकी उपस्थिति स्वर्ग वाले कार्यालय की सदस्यता लेने से कहीँ अधिक जरूरी है !
आशा करती हूँ मेरे पत्र को गम्भीरता से लेते हुए आप त्वरित सक्रिय होंगे और आज की तारीख से कुछ ऐसी अनहोनी नही होगी जिसमे कोई भाजपा कार्यकर्ता असमय काल कवलित होने को विवश होगा !
थोडा लिख रही हूँ आप ज्यादे से ज्यादा समझने का प्रयास करिएगा ! अपनी उपरोक्त व्यक्त भावना के साथ ही अब चिट्ठी लिखना बंद करती हूँ !
आपके श्री चरणोँ मे देश की इस बेटी का कोटि - कोटि विनयवत प्रणाम मेरे परम श्रद्धेय !!
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##WishForJaitley#RecoverSoon##
कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
स्तम्भकार,पत्रकार, लेखिका,
समीक्षक, स्वतंत्र टिप्पणीकार,
10/08/2019

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता