अमृता प्रीतम की वसीयत अपने पूरे होश-ओ-हवास में लिख रही हूँ आज... मैं वसीयत ..अपनी मेरे मरने के बाद खंगालना.. मेरा कमरा टटोलना.. हर एक चीज़ घर भर में ..बिन ताले के मेरा सामान.. बिखरा पड़ा है दे देना... मेरे खवाब उन तमाम.. स्त्रियों को जो किचेन से बेडरूम तक सिमट गयी ..अपनी दुनिया में गुम गयी हैं वे भूल चुकी हैं सालों पहले खवाब देखना बाँट देना.. मेरे ठहाके वृद्धाश्रम के.. उन बूढों में जिनके बच्चे अमरीका के जगमगाते शहरों में लापता हो गए हैं टेबल पर.. मेरे देखना कुछ रंग पड़े होंगे इस रंग से ..रंग देना उस बेवा की साड़ी जिसके आदमी के खून से बोर्डर... रंगा हुआ है तिरंगे में लिपटकर वो कल शाम सो गया है आंसू मेरे दे देना तमाम शायरों को हर बूँद से होगी ग़ज़ल पैदा मेरा वादा है मेरा मान , मेरी आबरु उस वैश्या के नाम है बेचती है जिस्म जो बेटी को पढ़ाने के लिए इस देश के एक-एक युवक को पकड़ के लगा देना इंजेक्शन मेरे आक्रोश का पड़ेगी इसकी ज़रुरत क्रांति के दिन उन्हें दीवानगी मेरी हिस्से में है उस सूफी के निकला है जो सब छोड़कर खुदा की तलाश में बस ! बाक़ी बची मेरी ईर्ष्या मेरा लालच मेरा क्रोध मेरा झूठ मेरा स्वार्थ तो ऐसा करना उन्हें मेरे संग ही जला देना... जन्मदिन मुबारक हो अमृता प्रीतम जी

अमृता प्रीतम की वसीयत

अपने पूरे होश-ओ-हवास में
लिख रही हूँ आज... मैं
वसीयत ..अपनी
मेरे मरने के बाद
खंगालना.. मेरा कमरा
टटोलना.. हर एक चीज़
घर भर में ..बिन ताले के
मेरा सामान.. बिखरा पड़ा है

दे देना... मेरे खवाब
उन तमाम.. स्त्रियों को
जो किचेन से बेडरूम
तक सिमट गयी ..अपनी दुनिया में
गुम गयी हैं
वे भूल चुकी हैं सालों पहले
खवाब देखना

बाँट देना.. मेरे ठहाके
वृद्धाश्रम के.. उन बूढों में
जिनके बच्चे
अमरीका के जगमगाते शहरों में
लापता हो गए हैं

टेबल पर.. मेरे देखना
कुछ रंग पड़े होंगे
इस रंग से ..रंग देना उस बेवा की साड़ी
जिसके आदमी के खून से
बोर्डर... रंगा हुआ है
तिरंगे में लिपटकर
वो कल शाम सो गया है

आंसू मेरे दे देना
तमाम शायरों को
हर बूँद से
होगी ग़ज़ल पैदा
मेरा वादा है

मेरा मान , मेरी आबरु
उस वैश्या के नाम है
बेचती है जिस्म जो
बेटी को पढ़ाने के लिए

इस देश के एक-एक युवक को
पकड़ के
लगा देना इंजेक्शन
मेरे आक्रोश का
पड़ेगी इसकी ज़रुरत
क्रांति के दिन उन्हें

दीवानगी मेरी
हिस्से में है
उस सूफी के
निकला है जो
सब छोड़कर
खुदा की तलाश में

बस !
बाक़ी बची
मेरी ईर्ष्या
मेरा लालच
मेरा क्रोध
मेरा झूठ
मेरा स्वार्थ
तो
ऐसा करना
उन्हें मेरे संग ही जला देना...

         जन्मदिन मुबारक हो अमृता प्रीतम जी

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता