“हमारे हरि हारिल की लकरी ।
मन-क्रम-वचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी ।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह -कान्ह जकरी ।
सुनत जोग लागत है ऐसो, ज्यौं करूई ककरी ।
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी ।
यह तौ 'सूर' तिनहिं लै सौंपौ,जिनके मन चकरी ।।”
महाकवि सूरदास द्वारा रचित ‘सूरसागर’ के पाँचवें खण्ड से उद्धॄत यह पद आज मै अपने लड्डू कृष्ण को अर्पित करती हूँ ! कृष्ण तुम्हारे लिए यही भाव मेरे भी उर मे हो ऐसी कामना है !
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