जो मन पागा प्रेम रस हुआ वही श्री कृष्ण का =========================== हमारे हरि हारिल की लकरी । मन-क्रम-वचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी । जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह -कान्ह जकरी । सुनत जोग लागत है ऐसो, ज्यौं करूई ककरी । सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए , देखी सुनी न करी । यह तौ 'सूर' तिनहिं लै सौंपौ,जिनके मन चकरी ।। महाकवि सूरदास द्वारा रचित ‘सूरसागर’ के पाँचवें खण्ड से उद्धॄत इस पद में गोपियों ने उद्धव के योग-सन्देश के प्रति को प्रेम के मानक पर लाकर खारिज करते हुए कृष्ण के प्रति अपनी अनन्य भक्ति को प्रेम रस पागी करके व्यक्त किया है यथा : गोपियाँ कहती हैं कि हे उद्धव ! कृष्ण तो हमारे लिये हारिल पक्षी की लकड़ी की तरह हैं । जैसे हारिल पक्षी उड़ते वक्त अपने पैरों मे कोई लकड़ी या तिनका थामे रहता है और उसे विश्वास होता है कि यह लकड़ी उसे गिरने नहीं देगी , ठीक उसी प्रकार कृष्ण भी हमारे जीवन के आधार हैं । हमने मन कर्म और वचन से नन्द बाबा के पुत्र कृष्ण को अपना माना है । अब तो सोते - जागते या सपने में दिन - रात हमारा मन बस कृष्ण-कृष्ण का जाप करते रहता है । हे उद्धव ! हम कृष्ण की दीवानी गोपियों को तुम्हारा यह योग - सन्देश कड़वी ककड़ी के समान त्याज्य लग रहा है । हमें तो कृष्ण - प्रेम का रोग लग चुका है, अब हम तुम्हारे कहने पर योग का रोग नहीं लगा सकतीं क्योंकि हमने तो इसके बारे में न कभी सुना,न देखा और न कभी इसको भोगा ही है । हमारे लिये यह ज्ञान-मार्ग सर्वथा अनजान है । अत: आप ऎसे लोगों को इसका ज्ञान बाँटिए जिनका मन चंचल है अर्थात जो किसी एक के प्रति आस्थावान नहीं हैं। गोपियाँ मन ,कर्म और वचन से कृष्ण को अपना मान चुकी हैं ।उन्हें कृष्ण से अलग कुछ भी अच्छा नहीं लगता । सोते-जागते , दिन - रात यहाँ तक कि सपने में भी वे केवल कृष्ण के बारे में ही सोचते रहती हैं । कृष्ण की भक्ति ही अब उनके जीवन का अधार और उद्देश्य बन चुकी है । उन्होंने स्वयं को पूर्णत: कृष्ण की सेवा मे समर्पित कर दिया है । गोपियों ने कृष्ण की तुलना हारिल पक्षी की लकड़ी से किया है । जिस तरह हारिल पक्षी अपने पंजो में पकड़े हुए लकड़ी को नहीं छोड़ता ।वही उनके उड़ान का संबल या सहारा होता है ठीक उसी तरह गोपियाँ भी कृष्ण को नहीं छोड़ सकतीं । कृष्ण उनके जीवन केआधार हैं अत: उन्होंने भी कृष्ण भक्ति कोदृढ़ता से पकड़ रखा है। गोपियाँ कृष्ण की अनन्य भक्त हैं उनके लिए कृष्ण ही सर्वस्व हैं । उनको योग-साधना में कोई रूचि नहीं है। उनके अनुसार उद्धव की कठिन योग- साधना प्रेम का जगह नहीं ले सकती। उद्धव के योग-साधना के सन्देश ने उनकी विराहाग्नि को और बढ़ा दिया। उन्होंने योग-साधना को नीरस और बेकार माना। ================================
जो मन पागा प्रेम रस हुआ वही श्री कृष्ण का
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हमारे हरि हारिल की लकरी ।
मन-क्रम-वचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी ।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह -कान्ह जकरी ।
सुनत जोग लागत है ऐसो, ज्यौं करूई ककरी ।
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए , देखी सुनी न करी ।
यह तौ 'सूर' तिनहिं लै सौंपौ,जिनके मन चकरी ।।
महाकवि सूरदास द्वारा रचित ‘सूरसागर’ के पाँचवें खण्ड से उद्धॄत इस पद में गोपियों ने उद्धव के योग-सन्देश के प्रति को प्रेम के मानक पर लाकर खारिज करते हुए कृष्ण के प्रति अपनी अनन्य भक्ति को प्रेम रस पागी करके व्यक्त किया है यथा :
गोपियाँ कहती हैं कि हे उद्धव ! कृष्ण तो हमारे लिये हारिल पक्षी की लकड़ी की तरह हैं । जैसे हारिल पक्षी उड़ते वक्त अपने पैरों मे कोई लकड़ी या तिनका थामे रहता है और उसे विश्वास होता है कि यह लकड़ी उसे गिरने नहीं देगी , ठीक उसी प्रकार कृष्ण भी हमारे जीवन के आधार हैं । हमने मन कर्म और वचन से नन्द बाबा के पुत्र कृष्ण को अपना माना है । अब तो सोते - जागते या सपने में दिन - रात हमारा मन बस कृष्ण-कृष्ण का जाप करते रहता है । हे उद्धव ! हम कृष्ण की दीवानी गोपियों को तुम्हारा यह योग - सन्देश कड़वी ककड़ी के समान त्याज्य लग रहा है । हमें तो कृष्ण - प्रेम का रोग लग चुका है, अब हम तुम्हारे कहने पर योग का रोग नहीं लगा सकतीं क्योंकि हमने तो इसके बारे में न कभी सुना,न देखा और न कभी इसको भोगा ही है । हमारे लिये यह ज्ञान-मार्ग सर्वथा अनजान है । अत: आप ऎसे लोगों को इसका ज्ञान बाँटिए जिनका मन चंचल है अर्थात जो किसी एक के प्रति आस्थावान नहीं हैं।
गोपियाँ मन ,कर्म और वचन से कृष्ण को अपना मान चुकी हैं ।उन्हें कृष्ण से अलग कुछ भी अच्छा नहीं लगता । सोते-जागते , दिन - रात यहाँ तक कि सपने में भी वे केवल कृष्ण के बारे में ही सोचते रहती हैं । कृष्ण की भक्ति ही अब उनके जीवन का अधार और उद्देश्य बन चुकी है । उन्होंने स्वयं को पूर्णत: कृष्ण की सेवा मे समर्पित कर दिया है ।
गोपियों ने कृष्ण की तुलना हारिल पक्षी की लकड़ी से किया है । जिस तरह हारिल पक्षी अपने पंजो में पकड़े हुए लकड़ी को नहीं छोड़ता ।वही उनके उड़ान का संबल या सहारा होता है ठीक उसी तरह गोपियाँ भी कृष्ण को नहीं छोड़ सकतीं । कृष्ण उनके जीवन केआधार हैं अत: उन्होंने भी कृष्ण भक्ति कोदृढ़ता से पकड़ रखा है।
गोपियाँ कृष्ण की अनन्य भक्त हैं उनके लिए कृष्ण ही सर्वस्व हैं । उनको योग-साधना में कोई रूचि नहीं है। उनके अनुसार उद्धव की कठिन योग- साधना प्रेम का जगह नहीं ले सकती। उद्धव के योग-साधना के सन्देश ने उनकी विराहाग्नि को और बढ़ा दिया। उन्होंने योग-साधना को नीरस और बेकार माना।
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