दुनिया-ए-गुलिस्तां होता है गुलज़ार कभी-कभी,
तब सदियों में एक बार जाकर कहीँ ...
चमन-ए-ग़ज़ल को मिलता है कोई गुलज़ार
कभी - कभी, ॥
तू ग़ज़ल का शहर है ! तू दुनिया-ए-ग़ज़ल है
हो उम्रदराज़ तू, कि तू :
नफ़रतों पर छाँव मोहब्बत के शजर का,
चट्टान-ए-दुश्वारियों पर जनमता है दरख्त ..
तेरे जैसा कोई कभी-कभी ....
दुनिया-ए-गुलिस्तां होता है गुलज़ार कभी-कभी
तब सदियों में एक बार जाकर कहीँ
चमन-ए-ग़ज़ल को मिलता है कोई गुलज़ार
कभी-कभी !!
मादर-ए-अंजुमन में उठता है बवंडर
जब भी खौफ का :
तेरी ग़ज़ल पैगाम-ए-भाई चारा बनकर
रूह तक उतर आती है,
तेरी सूरत में अक्श फरिश्तों का
झलकता है कभी-कभी,
दुनिया-ए-गुलिस्तां होता है गुलज़ार कभी-कभी
तब सदियों में एक बार जाकर कहीँ
चमन-ए-ग़ज़ल को मिलता है कोई गुलज़ार
कभी कभी॥
जादू सी लगती है तेरी रवायत-ए-लिखावट
तूँ रेत पर लिखी कोई इबारत सी लगे है हमें
तुझे मिटाने की जुगत में अवि ....
साजिशों की हजारों लहर रोज तुझपर से गुजरती है
फिर भी तमन्नाओं का शहर तू आबाद किए चलता है,
होती है कामयाब कहाँ शहरे तमन्ना में
लहर साजिशों की कभी.......
चमन-ए-ग़ज़ल को मिलता है .......॥
चले तेरी ग़ज़ल की चर्चा तो
गुलज़ार महफिल-ए-जिन्दगानी होती
गीत ग़ज़ल के बेताज बादशाह है दुआ आज
तेरी सरपरस्ती में कई सदी तक आबद
शान-ए-हिंदुस्तान की ग़ज़ल-ए-गुलिस्तां रहे,
सर-ज़मीन-ए-हिंद में पैदा होता है
तेरे जैसा कलम का फनकार कभी-कभी
दुनिया-ए-गुलिस्तां मे होता है गुलज़ार कभी-कभी
तब सदियों में एक बार जाकर कही
चमन-ए-ग़ज़ल को मिलता है कोई गुलज़ार
कभी-कभी ॥
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