यों बेकदर हुई है शख्सियत तुम्हारी अर्ची कि मुँह भर कोई बात तुमसे नही करता, खुदाया नेमत तो मै भी तुम्हारी ही हूँ फिर हर कोई मुझसे इतनी नफरत क्यों - कर करता ?? वक्त की तारीखी दर्ज करे न करे पर मैने तो तेरे नाम : खुद को दर्ज कर रखा है, फिर मेरे सजदे का कोई फूल तुझ तक क्यों नही पहुँचता ?? चार दिन का यह दुनिया-ए-तमाशा है चार दिन का ही खेल है सब फिर साथ अपने : नफरतों का एक पूरा शहर लेकर हर शय यहाँ क्यों चलता ?? मै ग़ज़ल की गंगा - जमुना वक्त की लहरों पर “मै” बिल्कुल पानी - पानी जैसी, फिर खोलकर पन्ने अदब से मेरी रूह तक मुझको कोई क्यों नहीं पढता ?? है पता मुझे की आने वाले कल की हूँ मै एक शानदार किस्सा अर्ची, मेरे बाद “मुझे”कहने-सुनने की बेइन्तहा जुस्तजूँ होगी, फिर आज मै “खुद” को “खुद ही” कह रही हूँ जब तो मुझे गौर से कोई क्यों नही सुनता ?? ======================== कलम से : भारद्वाज अर्चिता 19/08/2019
यों बेकदर हुई है शख्सियत तुम्हारी अर्ची
कि मुँह भर कोई बात तुमसे नही करता,
खुदाया नेमत तो मै भी तुम्हारी ही हूँ
फिर हर कोई मुझसे इतनी नफरत
क्यों - कर करता ??
वक्त की तारीखी दर्ज करे न करे
पर मैने तो तेरे नाम :
खुद को दर्ज कर रखा है,
फिर मेरे सजदे का कोई फूल
तुझ तक क्यों नही पहुँचता ??
चार दिन का यह दुनिया-ए-तमाशा है
चार दिन का ही खेल है सब
फिर साथ अपने :
नफरतों का एक पूरा शहर लेकर
हर शय यहाँ क्यों चलता ??
मै ग़ज़ल की गंगा - जमुना
वक्त की लहरों पर “मै”
बिल्कुल पानी - पानी जैसी,
फिर खोलकर पन्ने अदब से मेरी रूह तक
मुझको कोई क्यों नहीं पढता ??
है पता मुझे की आने वाले कल की
हूँ मै एक शानदार किस्सा अर्ची,
मेरे बाद “मुझे”कहने-सुनने की बेइन्तहा जुस्तजूँ होगी,
फिर आज मै “खुद” को “खुद ही” कह रही हूँ जब
तो मुझे गौर से कोई क्यों नही सुनता ??
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
19/08/2019
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