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#शिवताण्डवस्तोत्र

शिव ताण्डव स्तोत्र महान विद्वान एवं परम शिवभक्त लंकाधिपति रावण द्वारा विरचित भगवान शिव का स्तोत्र है और इसीलिए परंपरागत रूप से रावण को ही इसका रचयिता माना जाता है। इस स्तोत्र के नौवें और दसवें भाग में शिव को मृत्यु के विनाशक के रूप में बताया गया है। इसमें हिंदू भक्ति भाव का अनुष्ठान और आनुषंगिकता सशक्त सौंदर्य की लहरें पैदा करता है।

शिव तांडव स्तोत्र की कहानी-

ऋषि विश्रवा की दो संतान कुबेर व दशानन (रावण) थी। दोनों सौतेले भाई थे। सोने की लंका का राजा कुबेर था लेकिन किसी कारणवश ऋषि ने उन्हें लंका का त्याग कर हिमाचल चले जाने को कहा। इससे लंका पर दशानन ने राज कर लिया। लंका का राजा बनते ही वह इतना अहंकारी हो गया कि उसने अनेक प्रकार के अत्याचार करने शुरू कर दिए।
जब कुबेर ने उसे एक दूत के जरिये ये समझाना चाहा तो उसने उल्टा कुबेर पर ही आक्रमण कर दिया और अपनी सेना लेकर कुबेर की नगरी अलकापुरी को जीत लिया। अहंकार में उसने कुबेर पर भी प्रहार कर दिया लेकिन कुबेर भागकर नंदनवन पहुँच गए। दशानन ने कुबेर की नगरी व उसके पुष्पक विमान पर भी अपना अधिकार कर लिया ।
एक दिन पुष्पक विमान में सवार होकर जाते हुए एक पर्वत के पास पुष्पक विमान की गति स्वयं ही धीमी हो गई। पुष्पक विमान चालक की इच्छानुसार चलता था। दशानन की नजर जब नंदीश्वर पर पडी तो नंदीश्वर ने दशानन को बताया कि ये स्थान भगवान शंकर का क्रीड़ा स्थान है लेकिन अहंकारी दशानन ने कुछ न सुनते हुए अहंकार में पर्वत (कैलाश पर्वत)की नींव हिलाना चाहा।
शंकर भगवान ने विचलित होकर अपने पांव के अंगूठे से पर्वत को दबा दिया ताकि वह स्थिर हो जाए। ऐसा करने से रावण का हाथ उस पर्वत के नीचे दब गया।
क्रोध और पीडा के कारण दशानन ने भीषण चीत्कार करते हुए शिव के इस स्तोत्र की तुरंत रचना की और इसे जपना शुरू कर दिया। प्रसन्न होकर भगवान शिव ने दशानन को क्षमा करते हुए उससे मुक्त कर दिया और उसे एक नया नाम दिया "रावण" यानी ‘भीषण चीत्कार करने पर विवश शत्रु’ और तभी से दशानन को रावण कहा जाने लगा।

रावण द्वारा विरचित शिव स्त्रोत नीचे दे रहा हूं यदि आप इसे स्वर बद्ध सुनना चाहें तो यूट्यूब पर यह शंकर महादेवन की आवाज में मौजूद है। वहां से आप इसे सुन सकते हैं बाकी पढ़ने के लिए नीचे स्क्रॉल करें।

जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌। डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥

जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी । विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि । धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥

धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर- स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे । कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥

जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा- कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे । मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥

सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर- प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः । भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥

ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा- निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्‌ । सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥

कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल- द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके । धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक- प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥7॥

नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर- त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः । निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥

प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा- विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌। स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥
अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी- रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌ । स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥

#प्रशांत बलिया

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता