sachin bhag 1

( 5 )
सचिन तेंदुलकर के महान क्रिकेटर बनने से लेकर भारत रत्न पाने तक मां रजनी तेंदुलकर का अहम योगदान :
=================================

कहते है भारत जैसे देश मे एक सामान्य परिवार की जिन्दगी बसर करना वह भी पूरे संयुक्त परिवार के साथ बहुत ही संघर्ष भरा एवम दुरुह कार्य होता है ! इस दुरूहता के इस दौर मे परिवार के सभी सदस्यों की सेहत,तरक्की, शिक्षा,एवम खुशी का विशेष ध्यान रखते हुए मजबूत स्तंभ मजबूत पिलर का काम केवल माँ ही कर सकती है वह भी कदम - कदम पर अपने सुख का त्याग करते हुए ।
ऐसी ही एक सच्ची कहानी है महान भारतीय क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर की  यथा : एक सामान्य भारतीय परिवार मे 24 अप्रैल 1973 को सचिन तेंदुलकर का जन्म हुआ था भाई बहनो मे सबसे छोटे एवम माँ के साथ - साथ सबके दिल के बेहद करीब सचिन का मन कभी पढ़ाई में नहीं लगता था ! मराठी स्कूल में शिक्षक एवम प्रसिद्ध मराठी उपन्यासकार पिता श्री रमेश तेंदुलकर के लिए यह चिन्ता की बात हो गयी थी, पर माँ रजनी इससे कभी विचलित नही होती और पति से हमेशा यही कहा करती “मेरा बेटा बहुत बडा नाम करेगा एक दिन! यह जरूरी नही की हर बच्चा टीचर बने या अधिकारी ही बने؛ बच्चे अपने भविष्य के लिए अलग - अलग दिशा मे भी प्रयास कर सकते है ! मेरे बेटे की रूचि को  समझकर उसे उस दिशा मे सहयोग करिए आप जिस दिशा मे जाने का उसका मन है माँ के द्वारा कहे गए इन्ही शब्दो के साथ पिता सहित घर के अन्य सदस्य सचिन तेंदुलकर के पसंद एवं शौक को नोटिस करने लगे !
मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम पर 16 नवंबर 2013 का दिन इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज है। दुनिया भर के क्रिकेट फैन्स ने इस दिन एक युग को खत्म होते देखा और वह शब्द भी सुना जो 24 साल के लंबे अंतरराष्ट्रीय करियर के बाद सचिन तेंदुलकर ने अपने होम ग्राउंड मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में क्रिकेट के सभी फॉर्मेट्स को अलविदा कहते हुए उस दिन अपनी मां से कहा था :
“ मेरी मां, मुझे नहीं पता कि मेरे जैसे शैतान बच्चे को आपने कैसे संभाला है। मैंने जब से क्रिकेट शुरू किया है, तब से आपने सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए, मेरी जीत के लिए प्रार्थना किया है, ब्रत किया है। 11 साल की उम्र मे जब मै रमाकान्त आचरेकर सर के स्कूटर पर सवार होकर एक दिन मे दो - दो मैच खेलने एक स्टेडियम से दूसरे स्टेडियम मे जाया करता था ऐसे मे मेरी माँ आप मेरी सेहत, मेरे खान - पान का जिस तरह ख्याल रखती थी वह केवल आप ही कर सकती थी कोई और नही, माँ आपका वह रूप सदैव मुझे भावुक करता है आपके प्रति ! ”
क्रमश: अगले रविवार माँ रजनी तेन्दुलकर के त्याग पर आधारित इस  सच्ची कहानी के शेष भाग के साथ !
=================================
कलम से :
बाल कानून विशेषज्ञ विभांशु जोशी
@Vibhanshu Joshi SmileyLive
@ Bhardwaj Archita ( पत्रकार )
संयुक्त रूप से कलमबद्ध किया गया है यह लेख !!
14/07/2019  

Comments

Popular posts from this blog

“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता