Dr APJ abdul kalam sahab full story

भारत के मिसाइल मैन एवम पूर्व भारतीय राष्ट्रपति
डा० ए०पी०जे०अब्दुल कलाम की सफलता मे उनकी माँ आशियम्मा का योगदान !
****************************************
ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का जन्म गुलाम भारत मे 15 अक्टूबर सन 1931 मे रामेश्मवरम की पुण्य पवित्र भूमि पर एक मुस्लिम परिवार मे मछुआरे पिता जैनुलाब्दीन एवम माता आशियम्मा के घर बेहद अभाव मे हुआ था ! परिवार कहने को मुस्लिम था पर घर मे बच्चो के बीच राम रहीम सबके किस्से सबके चरित्र का गान होता था ! माँ की सुबह शिव के भजन और साँझ   कुअरान की आयते गुनगुनाते हुए गुजरती थी जिसका अनुकरण नन्हा बालक कलाम भी कर रहा था ! माँ को लोकभाषा के वह गीत जो शास्त्रीय सँगीत की धुन मे रचे बसे होते थे गाने का बहुत सौक थामाँ से हस्तान्तरित यह सौक बेटे कलाम मे भी जीवन पर्ययन्त बना रहा ! चूकी कलाम के बचपन से किशोराअवस्था के होने तक भारत की पहचान अँग्रेजी हूकुमत के झण्डे तले एक गुलाम देश की थी अत: देश की गुलामी का दर्द एवम गुलामी के दर्द से देश को मुक्ति दिलाने का सपना कलाम के साथ साथ उनके परिवार की आँखो मे भी तैर रहा था ! यही वजह थी की कलाम बचपन मे पढ़यी के साथ साथ अखबार बाँटने का काम भी किया करते थे जिससे अधिक से अधिक लोगो तक आजादी की खबरे पहुँच सके ! कलाम यह काम ऐसे हालात मे कर रहे थे जब अँग्रेजो ने रामेश्वरम मे रेल सेवा का स्टापेज समाप्त कर दिया था और कुछ लोगो के सहयोग से चलती ट्रेन की खिडकी से अखबार के बण्डल बाहर फेँके जाते थे उन्ही बण्डलो को बालक कलाम अपने गाँव मे घर घर पहुँचाते थे जिसमे माँ आशियम्मा और पिता भी सहयोगी की भूमिका निभाते थे ! भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के बचपन मे शुरू हुए संघर्ष से रूबरू होते हुए उनके मिसाइलमैन बनने तक की सफलता के सच्चे एवम अनुकरणीय किस्सों पर अगर प्ररकाश डाले तो एक बात साफ तौर पर दिखायी देती है वह यह कि : कलाम साहब के जीवन मे उनकी माँ आशियम्मा के त्याग, सहयोग, एवम समर्पण का बहुत बडा योगदान रहा है स्वयम एपीजे अब्दुल कलाम साहब ने अपनी किताब “My Journey” “मेरी जीवन-यात्रा' में अपनी जिंदगी के तमाम उन पहलुओ को कलमबद्ध करते हुए अपनी माँ के त्याग एवम योगदान के लिए कई जगह लिखा है !
कलाम की माँ आशियम्मा जो कि एक गृहिणी थीं पर बेहद मजबूत इरादो वाली दूरदर्शी महिला थी कलाम एवम माँ के बीच बहुत मजबूत Bonding थी उस Bonding पर प्रकाश डालते हुए दशकों बाद अपनी किताब “ My Journey ” मे कलाम साहब ने लिखा है यथा “मेरे चार मुझसे बड़े भाई - बहन और भी थे ! हम सबकी परवरिस मां बडे सुनियोजित तरीके से कर रही थी यहाँ तक कि हम बच्चों को माँ बडे प्यार से अपने हिस्से का भी खाना खिला देती थी और खुद भूखी रह जाया करती थी” !कलाम साहब बचपन मे माँ के इर्द गीर्द ज्यादा रहते थे  चूँकि बचपन से ही कलाम एक अच्छे छात्र थे इसलिए हमेशा अपनी माँ से सवाल पर सवाल करते रहते, नयी- नयी जानकारी लेने के लिए सदैव उत्सुक रहते थे यथा: यह कैसे हुवा ? यह क्यो हुआ? यह क्यो होता है ? बेटा कलाम के दस साल की उम्र के होने तक सहज स्वभाव वाली उनकी माँ आशियम्मा यह जान चुकी थी कि उनका बेटा विलक्षण प्रतिभा का धनी है इसलिए उन्होने एक दिन पति से कहा हमारे बेटे के लिए हमे हर हाल मे उचित शिक्षा एवम उचित शिक्षण सस्थान मे इसके दाखिले की व्यवस्था करनी होगी । अभाव की चिन्ता किए बिना एक माँ द्वारा अपने बेटे के लिए देखे गए सपनो की पिता अवहेलना न कर सके ! इस प्रकार माँ के त्याग मिश्रित सहयोग से कलाम Schwartz Higher Secondary School में पढ़ाई करने गए ! और फिर यहाँ से बालक कलाम की जो यात्रा शुरू हुई वह वाया मिसाइल मैन की उपाधि धारण करते हुए 25 जुलाई वर्ष 2002 मे भारतीय गणतन्त्र के 11वे राष्ट्रपति बनने से लेकर भारतरत्न सम्मान प्राप्त करने तक अनवरत चलती रही ! कलाम साहब ने रामेश्वरम से लेकर अपने दिल्ली तक की यात्रा का जिक्र करते हुए कई बार बताया था कि “ मेरी इस यात्रा के दौरान मेरी जिंदगी में कई ऐसे मोड़ आए जब मुझे लगा कि अब यह यात्रा आगे नहीं बढ़ पाएगी तभी माँ का चेहरा सामने से गुजर गया यह कहते हुए कि : 
“My son Nothing is impossible in this world”
एपीजे अब्दुल कलाम साहब का रिश्ता जितना विज्ञान के साथ मजबूत रहा, उतना ही साहित्य, राष्ट्र एवम अपने समाज के साथ भी, इसी वजह से कलाम केवल वैज्ञानिक ही नहीं रहे बल्कि उनके पास आधुनिक भारत को लेकर एक बडा सुंदर विजन भी रहा जो उन्हें अन्य भारतीय वैज्ञानिकों से अलग करते हुए जमीन से जोडे रखता है तभी तो कलाम साहब ने जितना बेहतर प्रयोग देश को मिसाइल शक्ति से समपन्न बनाने  के लिए किया लगभग उतना ही बेहतर योगदान देश के आखिरी ब्ययक्ति को देश की मुख्यधारा से जोडने के लिए भी किया आप सबको अटल जी के वह शब्द याद होगे जब उन्होने जय जवान, जय किसान, के साथ जय विज्ञान को जोडा था, जब जिस वक्त जय विज्ञान जोडा गया निश्चित रूप से हमारे देश मे वह समय हमारे मिसाइलमैन कलाम साहब का था ! कलाम साहब अपने जीवन मे जितने इमानदार रहे उतना इमानदार होना वह भी वहाँ से उठकर जहाँ से जिस जमीन से वह उठे थे और कमयाबी की ऊँचाई पर जहाँ तक वह पहुँचे थे की यात्रा को  देखकर बिल्कुल महसूस ही नहीं होता कि कोई व्यक्ति अपनी जिन्दगी मे इतना भी महान हो सकता है जो महानता के सामने कभी भी अपनी अपनी सहजता का दामन न छोडे ? जब हम लोगो ने ( Vibhanshu जोशी और अर्चिता ) ने हमारे मिसाइल मैन पर काफी खोज-बीन की तो एक सच का पता चला वह यह की कलाम साहब को इमानदारी और सहजता के यह गुण अपनी माँ से विरासत मे मिले थे, यथा: कलाम साहब के पिता और उनका परिवार ( बाप / दादा /पूर्वज ) देश की गुलामी के दौर मे भी काफी अमीर व्यापारी हुआ करते थे पर कुछ बुरे हालात के चलते उनका व्यापार चौपट हो गया और उन्हे अभाव के दिन देखने पडे ! कलाम साहब की माँ आशियम्मा परिवार की अमीरी एवम गरीबी दोनो दौर की गवाह थी यही वजह थी कि अमीरी के बाद आए गरीबी के बुरे वक्त मे भी उन्होने बहुत सहजता के साथ हालात का सामना किया ! ना स्वयम बिखरी ना अपने परिवार को ही बिखरने दिया ! बुरे हालात मे भी बच्चो के अच्छे खान - पान की एवम शिक्षा की उचित व्यस्वथा करती रही भले खुद भूखे पेट रहती रही ! कहना गलत न होगा की अगर एपीजी कलाम का जीवन दुनिया भर के युवाओ को कामयाबी के सपने देखने एवम उन सपनो को पूरा करने के लिए अपनी पूरी ताकत अपनी पूरी इच्छा झोँक देने की प्रेरणा देता है तो उस कलाम के इस प्रेरणादायी व्यक्तित्व एवम चरित्र निर्माण के पीछे आजीवन उनकी माँ स्वयम कलाम साहब की प्रेरणा बन कर खडी रही है ! चाहे बचपन के दौर की गरीबी मे कलाम साहब सहित 5 भाई बहनो के आदर्श परवरिस की बात हो या फिर अपने मछुआरे पति के लचरते व्यवसाय को बैलेँस करने मे सहयोग करने की दुरूह घडी या अपने बच्चो को उनकी इच्छा अनुसार शिक्षा देने की व्यवस्था करने या फिर बच्चो का अपनी पसन्द के करियर के चुनाव की बात रही हो घोर अभाव मे भी माँ आशियम्मा ने खुद को सकारात्मक बनाए रखा और सबकी तलाश पूरी होने तक अपना अथक योगदान देती रही ! 27 जुलाई वर्ष 2015 को जब देश का यह मिसाइल मैन आखिरी साँस ले रहा था तब भी देश के लिए देश के युवाओ के बीच अपनी सेवा दे रहा था और उसके इस सेवा के पीछे माँ के वह शब्द प्रेरणा बनकर खडे थे कि : यह जीवन नश्वर है नश्वर जीवन का सँचय केवल अमरता के द्वारा ही तय किया जा सकता है, और यह अमरता त्याग की राह पर चलकर किए गए हमारे अथक, नि:स्वार्थ कर्म से आती है ! वह कर्म जो हमारे राष्ट्र एवम समाज के उज्ज्वल भविष्य का आधार बनता है !
*****************************************
कलम से :
विभांशु जोशी बाल कानून विशेषज्ञ
@Vibhanshu Joshi SmileyLive
एवम पत्रकार भारद्वाज अर्चिता

Comments

Popular posts from this blog

“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता