kuchh yaden kuchh khoj

कभी भारत के लोक जनमास मे कोलकाता मिश्रित बंगाल को जादूगरनियों का देश कहा जाता था  ! ऐसा लोकमत था कि पति या पुत्र कलकत्ता मिश्रित बंगाल मे नौकरी करने जाता है तो फिर वह लौट कर देश नही आएगा क्योकि वहाँ की औरते लडकियाँ उनपर जादू करके अपने प्रेम जाल मे बाँध लेती है !
“ इस पहलू पर एक प्रबुद्ध वर्ग के चश्मे से गौर फरमाए तो बँगाल भारत का पहला ऐसा प्रान्त था जहाँ प्राचीन काल से स्त्री तस्करी, देह व्यापार, और बेटियो के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार चरम पर व्याप्त था ! स्त्री बेचने से लगायत अन्य हजार तरह के स्त्री शोषण से शुरू हुई यह परम्परा जब भारत के आम जनमानस तक पहुँची तो यह बडी सहजता से लोकजन के लोकजीवन, लोकगीत, लोकोक्ति, नोक - झोक, उलाहने मे प्रवेश करती चली गयी जो आगे चलकर कुछ इस रूप मे भी दिखा यथा :

“लागल झुलनिया के धक्का,बलम कलकत्ता निकल गए”

यू०पी० बिहार के गँवई परिवेश की एक पत्नी ने कभी अपने लिए अपने पति द्वारा नाक की नथनी न बनवा पाने पर गुस्सा होकर पति को ताना दे दिया, पत्नी का ताना पति को इतना चुभ गया की पति उसी समय घर छोडकर कलकत्ता कमाने चला गया ताकि वह कमा कर वापस जब लौटेगा तो पत्नी के नाक की झुलनी के साथ ही लौटेगा या नही कमा पाया झुलनी बनवाने भर का पैसा तो कभी लौटेगा ही नही ! अब एक बात जो हमारा ध्यान अपनी तरफ जबरन ले जाती है वह यह कि : पत्नी द्वारा झुलनी न बनवा पाने का ताना दिए जाने पर पति भारत के किसी और प्रान्त मे कमाने न जाकर कलकत्ता ही कमाने क्यो गया ? जैसा की माना जाता है गीत,साहितिय, सिनेमा, यह तीनो हमारे रोजमर्रा के जीवन मे होने वाली नित्य घटनाओँ के प्रतिबिम्ब होते है और इस प्रतिबिम्ब मे वही सब कुछ झलकता है, उसी का समावेस होता है जो हमारे जीवन के, समाज के, इर्द गीर्द व्याप्त होता है ” यथा :
आजादी के पूर्व से ही जूट, एवम कोल माइन का ( कोयले की फैक्ट्रियो का ) बंगाल प्रान्त बहुत बडा केन्द्र रहा है साथ ही समुद्र के किनारे बसे होने के कारण वैश्विक स्तर पर होने वाले आयात - निर्यात का भी बंगाल बहुत बडा केन्द्र रहा है अत: जूट की फैक्ट्री, कोलमाइन, एवम समुद्र पत्तन पर मजदूरी करने “लेबरगिरी करने” हेतु जो मानव श्रमिक लगते थे उनमे से 75 प्रतिशत श्रमिक हमारे बिहार एवम उत्तर प्रदेश लगायत उत्तर भारत से होते थे ऐसे मे इन प्रदेशोँ के अन्तर्गत आने वाले उनके लोक समाज मे जीने वाली उनकी पत्नियो के बीच इस तरह के बिरह बेदना पूर्ण गीतो का चलन अपने चरम पर था !
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
पत्रकार - प्रिंट मीडिया हाउस

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता