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ऑफ़साइड में दमदार शॉट लगाना और काफी ऊंचाई से शॉट लगाकर बॉल को बाउंड्री लाइन के बाहर भेजना यह सौरव गांगुली के खेल की ऐसी विशेषता थी जो किसी को भी अपनी तरफ आकर्षित करके अपना मुरीद बनाने की ताकत रखती थी ! =====================================08 जुलाई जन्ममदिन विशेष : 

सौरव गांगुली भारतीय क्रिकेट की दुनिया का एक ऐसा कामयाब नाम जो क्रिकेटर होने के साथ ही उम्दा फुटबॉल प्लेयर भी रहा है ! खेलों में क्रिकेट के लिए मशहूर हमारे भारत में कई ऐसे क्रिकेटर हुए हैं, जो अपनी विशिष्ट खेल प्रतिभा और कई उपलब्धियों के कारण आज भी याद किए जाते हैं ! ऐसे ही खिलाड़ियों में से एक हैं मेरे all time favourite क्रिकेट प्लेयर सौरव गांगुली ! क्रिकेट की दुनिया में दादा के नाम से मशहूर सौरव गांगुली को भारतीय क्रिकेट टीम के सफलतम कप्तानों में एक माना जाता है ! वर्ष 1996 मे मेरे दौर के वह सभी स्कूली छात्र - छात्राएँ जिनकी उस दौर के क्रिकेट मे गहरी रूचि रही है उन्हे यह पता होगा की सौरव बाएं हाथ के एक सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज रहे हैं ! टेस्ट, वन डे मैच, और आईपीएल मैचों में उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया हैं, और देश के नाम कई रिकॉर्ड भी बनाए हैं ! एक समय मुझे तो सौरव दादा के सारे उपनाम नाम रट गए थे जैसे : दादा, प्रिन्स आफ कोलकाता, बंगाल टाइगर और महाराजा ! आज मै क्रिकेटर सौरव गांगुली के जीवन से जुडे बहुत सारे छुए -अनछुए पहलू अपने  देश के उन  किशोर  वय युवाओ के साथ साझा करना चाहती हूँ जो क्रिकेट मे रूचि रखते है और अपने करियर के रूप मे क्रिकेट को  ही चुनना चाहते है  ! यथा : सौरव गांगुली का पूरा नाम सौरव चंडीदास गांगुली है ! इनका जन्म 8 जुलाई 1972 को कोलकाता के एक संभ्रांत बंगाली परिवार में हुआ था ! सौरव के पिता चंडीदास गांगुली की गिनती कोलकाता के रईस लोगों में होती थी ! ऐसे में स्वाभाविक है कि सौरव का बचपन ऐशो-आराम से भरपूर रहा था ! फिर भी उनपर इस रूतबे का कभी बेजा घमण्ड नही रहा उनकी जीवन शैली ऐसी थी कि लोग उन्हें रईस के रूप मे नही बल्कि आम जन मानस के दिलो पर राज करने वाले ‘महाराजा’ के नाम से बुलाते थे ! यह शान्त चित्त व्ययवहार और सौम्ययता सौरव दादा के भीतर अचानक नही आया बल्कि बचपन मे उनकी माँ के कुशल परवरिस से आया था ! स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के लिए सौरव को कोलकाता के प्रसिद्ध सेंट जेवियर स्कूल में दाखिल कराया गया ! इस दौरान उन्होंने फुटबॉल के खेल में रुचि लेना शुरू कर दिया था ! जैसा कि गौरतलब है कि बंगाल में स्कूल कालेज मे युवाओ के बीच, छात्रो के बीच फुटबाल का खेल काफी लोकप्रिय है संभवत: इसी का असर सौरव पर भी पड़ा और वह अपने College time मे फुटबॉल खेलने के प्रति आकर्षित हुए ! परन्तु बाद में बड़े भाई स्नेहाशीष गांगुली एवम माँ निरूपा गांगुली की सलाह पर सौरव ने फुटबाल का मोह छोडकर क्रिकेट खेलना शुरू किया और अपनी प्रतिभा और लगन का उन्होंने ऐसा तालमेल बैठाया कि भारतीय क्रिकेट के चमकते सितारों की श्रेणी में शुमार हो गए ! सौरव ने स्कूल के दिनों से ही अपने बल्ले की ताकत दिखाना शुरू कर दिया था ! इस दौरान उन्होंने बंगाल की अंडर 15 टीम की ओर से उड़ीसा के खिलाफ खेलते हुए अपना पहला सतक जमाया था ! इस टीम के साथ खेलते हुए सौरव के बारे मे एक घटना काफी मसहूर है एक बार उन्हें इस टीम में 12वें खिलाड़ी के तौर पर रखा गया, और एक मैच के दौरान पिच पर खेल रहे खिलाड़ी को पानी पिलाने को कहा गया तो उन्होंने इस काम के लिए स्पष्ट मना कर दिया था । हालाँकि उस समय इस बर्ताव के लिए उनकी काफी आलोचना हुई थी, परन्तु इसके बावजूद उनके बर्ताव में उनके पूरे क्रिकेट जीवन के दौरान कोई बदलाव नहीं आया । बहरहाल, घरेलू क्रिकेट टूर्नामेंट जैसे, रणजी ट्राफी, दीलीप ट्राफी आदि में बेहतर प्रदर्शन को देखते हुए सौरव गांगुली को वर्ष 1992 में वेस्टइंडीज दौरे के लिए भारतीय क्रिकेट टीम में शामिल किया गया ! इस दौरे में 11 जनवरी 1992 को उन्होंने गाबा में वेस्टइंडीज के खिलाफ अपना पहला अन्तराष्ट्रीय एकदिवसीय मैच खेला ! इस दौरे में उन्हें केवल एक ही मैच में खेलने का मौका मिला और उन्होंने केवल तीन रन बनाए ! कैरियर के लिहाज से यह दौरा उनके लिए फ्लॉप साबित हुआ और दौरे के दौरान उनके ख़राब बर्ताव के लिए उनकी काफी आलोचना भी हुई थी ! इस दौरे के बाद चार साल तक उन्हें राष्ट्रीय टीम में नहीं लिया गया । फिर वर्ष 1996 में सौरव गांगुली का चयन इंग्लैंड दौरे के लिए किया गया । इस दौरे में सौरव ने टेस्ट और वन डे मैच दोनों खेले । तीन वन डे मैच में से सौरव को सिर्फ एक वन डे मैच में खेलने का मौका मिला और उन्होंने इस मैच में 46 रन बनाए । फिर इनके लिए असल चुनौती टेस्ट मैच में इन्हे साबित करने की थी । 20 जून 1996 को सौरव गांगुली ने इंग्लैंड के ऐतिहासिक लॉर्ड्स के मैदान पर अपने टेस्ट कैरियर का    ऐतिहासिक आगाज किया। इस मैच में सौरव ने 131 रनों की शानदार पारी खेली, इतना ही नहीं, अगले मैच में भी शतकीय पारी खेलकर उन्होंने अपनी योग्यता को साबित किया और आलोचकों को करारा जबाव भी दिया ! इसी दौरे में उन्होंने एक वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बना डाला और अपने पहले दो टेस्ट मैचों में दो सेंचुरी बनाने वाले वह दुनिया के तीसरे बल्लेबाज बन गए ! स्वाभाविक था, इस दौरे के बाद सौरव का भारतीय क्रिकेट टीम में स्थान तय हुआ ! सौरव गांगुली के खेल में जोश और जूनून का अनोखा संगम था ! ऑफ साइड में दमदार शॉट लगाना और काफी ऊँचाई से शॉट लगाकर बॉल को बाउंड्री लाइन से बाहर भेजना सौरव के खेल की विशेषता थी ! वर्ष 1997 में कनाडा के टोरंटो में खेले गए सहारा कप में पाकिस्तान के विरुद्ध उन्होंने शानदार पारी खेली ! इस मैच में सौरव ने 75 गेंदों में 75 रन तो बनाया ही और साथ ही मात्र 16 रन देकर उन्होंने 5 विकेट भी झटके थे ! परिणाम स्वरूप इस टूर्नामेंट में सौरव को चार बार ‘मैन ऑफ़ दी मैच’ से नवाज़ा गया साथ ही वह मैन ऑफ़ दी सीरीज’ भी चुने गए ! यह वही वर्ष था जब उन्हें वन डे मैचों में सर्वाधिक रन बनाने के कारण वर्ष का सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज घोषित किया गया था !वर्ष 1999 के क्रिकेट वर्ल्ड कप में सौरव गांगुली को सचिन तेंदुलकर के साथ ओपनिंग खिलाड़ी के तौर पर उतारा गया था इस टूर्नामेंट में श्रीलंका के विरुद्ध खेलते हुए सौरव ने 183 रन की शानदार पारी खेली और पूर्व भारतीय कप्तान और ऑलराउंडर कपिलदेव का वन डे का 175 रन का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया ! मेरे हिसाब से तो उस समय यह किसी भी भारतीय खिलाड़ी द्वारा वन डे मैच में बनाया गया सर्वाधिक स्कोर रहा होगा ! वन डे मैच में सौरव गांगुली की सचिन तेंदुलकर के साथ खेली गई 252 रन की रिकॉर्ड साझेदारी थी, जिसे उन्होंने आगे जाकर राहुल द्रविड़ के साथ खेलते हुए 318 रन की साझेदारी करते हुए स्वयं ही तोड़ा था ! यह साझेदारी अब तक की वन डे क्रिकेट की दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी साझेदारी है ! वर्ष 1999 सौरव गांगुली के क्रिकेट कैरियर का सबसे शानदार वर्ष रहा !  इस वर्ष उन्होंने न्यूजीलैंड के विरुद्ध खेले गए पांच वन डे मैचों की श्रृंखला और पेप्सी कप दोनों में ‘मैन ऑफ़ दी सीरीज’ का ख़िताब जीता था ! वर्ष 2000 जैसे विवादित दौर मे जब भारतीय टीम पर मैच फिक्सिंग का साया मंडराने लगा था ! बदनामी के मुहाने पर खड़े भारतीय टीम का नेतृत्व करने से सचिन तेंदुलकर जैसे खिलाड़ी भी पीछे हट गए थे ! नेतृत्व संकट की इस घड़ी में सौरव गांगुली ही वह प्लेयर थे जो पूरी निडरता से आगे आए, और टीम की कप्तानी का भार संभाला इसके बाद वह लंबे समय तक भारतीय टीम का नेतृत्व करते रहे ! सौरव के नेतृत्व में ही वर्ष 2004 के क्रिकेट वर्ल्ड कप में भारतीय टीम फाइनल तक पहुंची थी ! सौरव गांगुली के नेतृत्व मे भारतीय क्रिकेट टीम के कई युवा खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिला था ! उनकी टीम में जहीर खान, हरभजन सिंह, युवराज सिंह, राहुल द्रविड़ और लक्ष्मण जैसे युवा खिलाड़ी तो थे ही, सचिन तेंदुलकर जैसे अनुभवी खिलाड़ियों का भी उन्हें लाभ मिलता रहा ! सौरव को भारतीय क्रिकेट टीम में जोश और जीत के प्रति जज्बा भरने के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा ! क्रिकेट में शानदार योगदान के लिए सौरव गांगुली को भारत सरकार ने वर्ष 2004 में पद्म श्री सम्मान से सम्मानित किया था ! सौरव गांगुली भारतीय टेस्ट क्रिकेट टीम के एक ऐसे सफल कप्तान रहे हैं जिन्होंने 49 टेस्ट मैच में भारत का नेतृत्व किया और उनमें से 21 मैच में टीम को विजय मिली थी ! वह 10,000 रन बनाने वाले भारत के दूसरे बल्लेबाज हैं ! वर्ष 2014 में बंगाल क्रिकेट संघ ने इन्हें खेल प्रशासक के रूप में नियुक्त किया था ! इसके अलावा सौरव अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैचों में टीवी पर हिंदी में कमेंट्री भी करते हैं ! 

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कलम से : 

भारद्वाज अर्चिता 

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता