बाबा
श्रद्धेय बाबू जी को विनयवत प्रणाम् करते हुए एक दो शब्द यथा :
Ashutosh Rana दद्दा : अपने बच्चो के लिए माँ प्रथम एवम पिता दूसरे नम्बर का गुरू होता है ! बच्चा अपने इन दो महान गुरूजन के सँगत मे ही सभ्यता, संस्कृति, संस्कार, का प्रथम अध्याय ग्रहण करता है ! बच्चे के जीवन का यह वह प्रथम अध्याय होता है जिसकी नीव पर ही दुनिया भर के School, College, Universities द्वारा भविष्य मे मिलने वाली हमारी सारी उपाधियाँ आधारित होती है ! यहाँ यह बात मायने नहीं रखती की हमारे माँ-बाबू जी के पास डिग्री कितनी बडी है, बल्कि हमारे यहाँ तो ईश्वर तक को याद करने के लिए उसकी पूजा अराधना करने के लिए जो रिवाज है उसमे ईश्वर की तुलना माता पिता से ही की गयी है और कहा गया है की तुम ईश्वर हो हमारे लिए यह बडी बात है पर तुम्हारा यह ईश्वरत्व जब हमपर प्रसन्न हो कर अनुराग बरसाता नजर आए तो किस किस रूप मे उसका वरद हमपर हो यथा :
त्वमेव माता च पिता त्वमेव !!
याने के ईश्वर का विराट रूप भी हमको हमारे माता पिता जितना ही स्वीकार है ! जिस बच्चे के माता पिता ने बचपन मे उसपर जीवन का प्राथमिक अध्याय नही लुटाया उस बच्चे को दुनिया के कोई स्कूल college, universities बडी उपाधि से नवाज कर भी व्यवहारिक रूप मे कभी समाज में जीने लायक नहीं बना पाए !
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