उत्तर भारत की ज्योति बा फूले श्रीमती प्रियंवदा पाण्डेय : ==================== उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले के ग्राम जमनीपुर मे 5 जुलाई वर्ष 1925 को देश की आजादी के पूर्व अभाव की जमीन पर भेदभाव असमानता के जघन्य वातावरण मे उगी उम्मीद की फसल के रूप मे पिता - भानू प्रताप त्रिपाठी एवम माँ श्रीमती चन्द्रकली देवी के घर एक बेटी का जन्म होता है ! मा बाप प्यार से उसका नाम रखते है प्रियंवदा ! उसे भी वही परवरिस दी जाने की तैयारी थी जो वर्ष 1925 के भारतीय परिवारो के पारिवारिक वातावरण मे लडकियो के लिए तय की गयी थी पर कहते है ना कि बेटियाँ जूही चम्पा के फूलो की तरह होती है इन्हे हवा के झोके का जरा सा भी सहारा मिल जाए तो यह अपनी सुगन्ध से पूरा समाज महका देने की कूबत रखती है कुछ ऐसा ही हुआ प्रियंवदा के साथ भी 5 वर्ष की अल्पावस्था मे असमय माता पिता को खो देने के दर्द के साथ ही जिन्दगी मे एक नया परिवर्तन आया जब किसी के सहयोग ने शिक्षा की अलख जगा दी इस बच्ची के जीवन मे !
उत्तर भारत की ज्योति बा फूले श्रीमती प्रियंवदा पाण्डेय :
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उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले के ग्राम जमनीपुर मे 5 जुलाई वर्ष 1925 को देश की आजादी के पूर्व अभाव की जमीन पर भेदभाव असमानता के जघन्य वातावरण मे उगी उम्मीद की फसल के रूप मे पिता - भानू प्रताप त्रिपाठी एवम माँ श्रीमती चन्द्रकली देवी के घर एक बेटी का जन्म होता है ! मा बाप प्यार से उसका नाम रखते है प्रियंवदा ! उसे भी वही परवरिस दी जाने की तैयारी थी जो वर्ष 1925 के भारतीय परिवारो के पारिवारिक वातावरण मे लडकियो के लिए तय की गयी थी पर कहते है ना कि बेटियाँ जूही चम्पा के फूलो की तरह होती है इन्हे हवा के झोके का जरा सा भी सहारा मिल जाए तो यह अपनी सुगन्ध से पूरा समाज महका देने की कूबत रखती है कुछ ऐसा ही हुआ प्रियंवदा के साथ भी 5 वर्ष की अल्पावस्था मे असमय माता पिता को खो देने के दर्द के साथ ही जिन्दगी मे एक नया परिवर्तन आया जब किसी के सहयोग ने शिक्षा की अलख जगा दी इस बच्ची के जीवन मे !
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