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पुण्यतिथि विशेष : 

ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का जन्म गुलाम भारत मे 15 अक्टूबर सन 1931 मे रामेश्मवरम की पुण्य पवित्र भूमि पर एक मुस्लिम परिवार मे मछुआरे पिता जैनुलाब्दीन एवम माता आशियम्मा के घर बेहद अभाव मे हुआ था ! परिवार कहने को मुस्लिम था पर घर मे बच्चो के बीच राम रहीम सबके किस्से सबके चरित्र का गान होता था ! माँ की सुबह शिव के भजन और साँझ   कुअरान की आयते गुनगुनाते हुए गुजरती थी जिसका अनुकरण नन्हा बालक कलाम भी कर रहा था ! माँ को लोकभाषा के वह गीत जो शास्त्रीय सँगीत की धुन मे रचे बसे होते थे गाने का बहुत सौक थामाँ से हस्तान्तरित यह सौक बेटे कलाम मे भी जीवन पर्ययन्त बना रहा ! चूकी कलाम के बचपन से किशोराअवस्था के होने तक भारत की पहचान अँग्रेजी हूकुमत के झण्डे तले एक गुलाम देश की थी अत: देश की गुलामी का दर्द एवम गुलामी के दर्द से देश को मुक्ति दिलाने का सपना कलाम के साथ साथ उनके परिवार की आँखो मे भी तैर रहा था ! यही वजह थी की कलाम बचपन मे पढ़यी के साथ साथ अखबार बाँटने का काम भी किया करते थे जिससे अधिक से अधिक लोगो तक आजादी की खबरे पहुँच सके ! कलाम यह काम ऐसे हालात मे कर रहे थे जब अँग्रेजो ने रामेश्वरम मे रेल सेवा का स्टापेज समाप्त कर दिया था और कुछ लोगो के सहयोग से चलती ट्रेन की खिडकी से अखबार के बण्डल बाहर फेँके जाते थे उन्ही बण्डलो को बालक कलाम अपने गाँव मे घर घर पहुँचाते थे जिसमे माँ आशियम्मा और पिता भी सहयोगी की भूमिका निभाते थे 

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता