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लता मंगेशकर: परिस्थितियों से लड़ कर बनीं ‘सुरों की मल्लिका’

Dhiraj Jha

22 Jan 2018

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https://roar.media/hindi/miscellaneous/lata-mangeshkar-the-nightingale-of-india/

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जब भी किसी इंसान ने किसी विशेष क्षेत्र में अपना नाम कमाया, तो उसके लिए सबसे पहले उसे असफलताओं का सामना करना पड़ा. इसके पीछे वजह यह मानी जाती है कि सफलता आपको जांचती – परखती है.

इसके बाद अगर आप उसके लायक होते हैं, तभी वह आपके पास रहना पसंद करती है.

कुछ विशेष व्यक्तियों ने इसको समझते हुए अपनी असफलताओं का सम्मान किया. उसे एक परीक्षा की तरह माना और अपनी हर असफलता के बाद उसमें से कमियां खोज कर फिर से अपने आप को सफलता के योग्य बनाने का प्रयास किया.

यह प्रक्रिया लगातार दोहरायी गयी और अंत में उन चंद लोगों ने अपने अपने क्षेत्र में वो कर दिखाया, जिसकी उनसे पहले किसी ने कल्पना भी नहीं की थी.

लता मंगेशकर एक ऐसा ही नाम हैं, जिन्हें असफलताओं ने कहा कि वह अपनी राह बदल लें, लेकिन उन्होंने राह नहीं बदली.

बस सफलता को पाने के लिए अपने प्रयासों में सुधार लाती रहीं.

अंत में उन्होंने खुद को उस मुकाम तक पंहुचा दिया, जहाँ पहुंचने का हुनर हाल-फिलहाल तो किसी के पास दिखाई नहीं देता.

तो आईए जानने की कोशिश करते हैं कि कैसे लता अवरोधों को पार करते हुए सुरों की मलिका बन गईं–

लता जी का असली नाम यह नहीं था…

लता मंगेशकर का जन्म 28 सितम्बर 1929 को मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में पंडित दीनानाथ मंगेशकर के घर हुआ. वह अपने पिता की दूसरी पत्नी शेवंती की संतान थीं. पंडित दीनानाथ मंगेशकर एक प्रतिष्ठित शास्त्रीय संगीतकार और मंच कलाकार थे. घर में ही संगीत का माहौल मिल जाने की वजह से लता जी को अपनी अद्भुत प्रतिभा को निखारने कहीं बाहर नहीं जाना पड़ा. उनके पिता उनको पांच वर्ष की आयु से संगीत सिखाने लगे थे.

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लगभग इसी उम्र में उन्होंने अपने पिता के नाटक में पहली बार किरदार निभाया. कम लोग ही जानते होंगे कि लता जी का असली नाम हेमा था, किन्तु उनके पिता जी द्वारा निर्देशित एक नाटक में उनका अभिनय सबको इतना पसंद आया कि उनके द्वारा अभिनीत पात्र के नाम से ही उनका नाम लता रख दिया गया.

शुरुआत में सब ठीक-ठाक था, किन्तु साल 1942 उनके लिए दु:खों का पहाड़ लेकर आया. हृदयघात के कारण उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर अचानक चल बसे.

वह खुद तो इस संसार से चले गए, किन्तु अपने पीछे पूरा परिवार छोड़ गए. चूंकि लता अपने परिवार में सबसे बड़ी थीं, इसलिए पिता के बाद घर की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई. इस समय लता महज 13 साल की थीं.

Lata Ji in Film Chimukla Sansar (Pic : Lataonline)

कई बार रिजेक्ट की गई आवाज!

विडम्बना देखिए कि जिस आवाज़ ने करोड़ों दिलों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी उसी आवाज़ को ना जाने कितनी बार नकार दिया गया. इसका एक बड़ा कारण यह भी था कि लता जी ने 1940 में जब हिंदी सिनेमा में कदम रखा, तब सिनेमा पर नूरजहाँ और शमशाद बेग़म जैसी भारी आवाज़ वाली गायिकाओं का दबदबा बना हुआ था. इसके चलते कई जगहों से उन्हें यह कह कर नकार दिया गया कि उनकी आवाज़ बहुत पतली है.

1942 में पिता के देहांत के बाद फिल्म जगत में काम करना लता जी का शौक नहीं, अपितु मजबूरी बन गयी. छोटे भाई-बहनों सहित पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी उनके नाज़ुक कन्धों पर आ गयी. 1942 से 48 तक उन्होंने धनोपार्जन हेतु 8 से अधिक हिंदी और मराठी फिल्मों में अभिनय किया. सन 1942 में एक मराठी फिल्म कित्ती हसल में लता जी को प्लेबैक सिंगर के रूप में पहला अवसर प्राप्त हुआ, लेकिन दुर्भाग्यवश फिल्म की फाइनल एडिटिंग के समय उनके गीत को फिल्म से हटा दिया गया.

Lata Ji with Kishore Kumar, RD Burman and Asha Bhosle (Pic : Thequint)

दुनिया को साबित किया ‘गलत’

असफलताएं मिलती रहीं, आगे बढ़ने की राह और अधिक कठिन होने लगी, किन्तु लता जी का जन्म तो मानो इतिहास बदलने के लिए ही हुआ था. उन्हें भला कामयाब होने से कौन रोक सकता था. आखिरकार, 1948 में उन्हें फिल्म मजबूर में गाने का मौका मिला.

यह उनकी कामयाबी की पहली शुरुआत थी.

इसी के साथ ही 1949 में उन्हें क्रमशः चार फिल्मों महल, दुलारी, बरसात और अंदाज़ में अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने का मौका मिला. इन फिल्मों में लता जी द्वारा गाये गए सभी गीत इतने पसंद किए गए कि उनकी अब तक छुपी हुई लोकप्रियता अब खुल कर सामने आने लगी.

शुरुआत में उन्हें जिस ऊँचे स्वर और पतली आवाज़ की कमी के कारण दरकिनार कर दिया गया था, उसी आवाज को बाद में लोगों ने खुले दिल से स्वीकार किया.

देखते ही देखते मात्र एक वर्ष के भीतर ही लता जी ने प्लेबैक सिंगिंग का चेहरा बदल कर रख दिया.

Lata Mangeshkar (Pic : Lataonline)

मोहम्मद रफ़ी को सुनाई ‘खरी-खरी’

वैसे तो गायन के क्षेत्र में एक से बढ़ कर एक नाम आते हैं, लेकिन जब बात पुराने गानों की होती है तो आंख बंद करते ही दिमाग में दो ही अवाज़ें गूंजती हैं, एक लता जी की और दूसरी रफ़ी साहब की. जब-जब लता जी और रफ़ी साहब ने साथ गाया तब-तब श्रोता उनकी आवाज़ पर दिल हार गए.

किन्तु, शायद ये बात बहुत कम लोगों को मालूम हो कि रफ़ी साहब और लता जी के बीच साढ़े तीन साल तक बोलचाल बंद रही थी.

एक साक्षात्कार में लता जी ने इसका खुलासा खुद किया था. उन्होंने कहा था कि 60 के दशक में उन्होंने अपने गानों की रॉयलिटी लेनी शुरू कर दी थी, लेकिन उनका मन था कि सभी गायकों को उनका ये हक़ मिले. बस फिर क्या था लता जी, मुकेश साहब और तलत महमूद साहब ने मिल कर एक एसोसिएशन बनाई तथा रिकॉर्डिंग कंपनी एचएमवी तथा प्रोड्यूसरों के समक्ष गायकों को गाने के बदले रॉयलिटी देने की मांग रख दी.

पर अफसोस उनकी मांगों पर किसी भी तरह की कोई सुनवाई नहीं हुई.

परिणाम स्वरूप लता जी सहित बाकी गायकों ने भी रिकार्डिंग करने से मना कर दिया. मगर रफ़ी साहब सीधे इंसान थे, निर्माताओं और रिकार्डिंग कंपनी के मनाने पर बिना रॉयलिटी गाना गाने के लिए मान गए. उनके इस कदम से लता जी और बाक़ी गायकों की मुहिम को धक्का लगा. मुकेश जी के कहने पर लता जी ने आखिरी बार रफ़ी साहब को समझाने के लिए उन्हें बुलाया. मगर रफ़ी साहब मानने वाले नहीं थे.

बाद में कुछ और लोगों ने रफ़ी साहब को समझाने लगे तो वह गुस्सा गए. उन्होंने लता जी की तरफ इशारा करते हुए गुस्से में कहा कि ‘मुझे क्या समझा रहे हो, ये सामने जो सामने महारानी बैठी हैं, इसी से बात करो’.

इस पर लता जी ने भी पलट कर जवाब दे दिया ‘आपने मुझे सही समझा… मैं महारानी ही हूँ.’ इस जवाब से ख़फा होकर रफ़ी साहब ने कह दिया ‘मैं अब से तुम्हारे साथ गाने नहीं गाऊंगा’. लता जी ने फिर पलटते हुए कहा ‘आप इतनी तकलीफ़ क्यों करते हैं, मैं खुद आपके साथ नहीं गाऊंगी.’

इस तरह से उनके बीच तक़रीबन साढ़े तीन साल तक झगड़ा चला.

Lata ji With Late Rafi Sahab (Pic : Newsin)

बहन के साथ रही ‘अनबन’

घर की परिस्थितियों को सँभालते-सँभालते लता जी की आधी ज़िन्दगी कैसे बीत गयी, पता ही नहीं चला. इस सफर में उनके जीवन में कई ऐसे मोड़ आए,  जब उनके अपनों से ही उनकी अनबन हो गयी. जिस तरह से उन्होंने अनेक संघर्षों से होते हुए सूझबूझ के साथ अपने बिखरते हुए घर को संभाला, वो वैसी ही अपेक्षा अपनी छोटी बहन आशा जी से भी करती थीं, किन्तु छोटी बहन उनके स्वभाव के विपरीत थीं.

कथित तौर पर उन्हें नियमों को तोड़ना पसंद था, उनके जीने का तरीका लता जी से अलग था.

यही कारण था कि वह मात्र 16 वर्ष की आयु में अपने से दुगने उम्र के गणपत राव के साथ प्यार में पड़ गयीं. आशा जी ने गणपत राव के साथ शादी करने तक का मन बना लिया था, किन्तु लता जी को यह मंज़ूर नहीं था. परिणामस्वरूप आशा जी ने घर छोड़ दिया और लता जी की मर्ज़ी के विरुद्ध जाकर शादी कर ली. हालाँकि, गणपत राव के साथ उनकी शादी अधिक समय तक निभ न सकी और दोनों अलग हो गए.

इस क्रम में आशा जी अब तक तीन बच्चों की माँ बन चुकी थीं. उन्हें अपने बच्चों के साथ वापिस लता जी के पास आना पड़ा. दोनों बहनों के कार्यक्षेत्र एक होने की वजह से भी दोनों में मतभेद रहे. लता जी उन दिनों कामयाबी की बुलंदियों पर थीं, ऐसे में आशा जी का आगे बढ़ना बेहद कठिन हो गया था.

उन्हें इसके लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा और जब आशा जी ने इस क्षेत्र में अपनी पहचान बना ली तब दोनों बहनों में बेहतर कौन है इस बात पर बहस होने लगी.

Lata Ji with Asha Bhosle (Pic : Fansshare)

विवादों से भी रहा नाता

सन 1974 में गिनीज़ वर्ल्ड रिकार्ड द्वारा इतिहास में सबसे अधिक गाने रिकॉर्ड करने के लिए लता जी का नाम चुना गया. उन्होंने 1948 से 1974 के बीच 20 भाषाओं में 25,000गाने रिकॉर्ड किए थे. किन्तु, यह कीर्तिमान उनके नाम दर्ज हो पता, इससे पहले रफ़ी साहब ने ये दावा कर दिया कि उनके द्वारा गए गानों की संख्या लता जी से अधिक है.

वह बात और है कि रफ़ी साहब के देहांत के बाद गिनीज़ ने यह रिकॉर्ड लता जी के नाम ही दर्ज करने की घोषणा की, किन्तु इसके लिए लता जी को अपने रिकॉर्ड गानों का साक्ष्य दिखाना अनिवार्य था, जोकि उनके पास नहीं था. उन्हें यह तक नहीं पता था कि उन्होंने कितने गाने गए हैं. परिणामस्वरूप 1991 में गिनीज़ ने लता जी और रफ़ी साहब दोनों का नाम इस सूची से हटा दिया.

साथ ही 2011 में यह सम्मान लता जी की छोटी बहन आशा जी को दिया गया.

‘भारत रत्न’ के साथ सम्मान

लता जी ने अपने जीवन में हर तरह के हर भाषा में अनेकों गाने गाए. उनके गायन में वह क्षमता थी कि, उनका हर गीत श्रोताओं के मन पर लिख जाता था. आज भी उनके गीतों को उतना ही पसंद किया जाता है, जितना उन दिनों किया जाता था. गायन क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए उन्हें अनेकों बार सम्मानित किया गया. उन्हें मिले सम्मानों की बात करें तो उनमें ये कुछ प्रमुख रहे–

पद्म भूषण (1969), दादा साहब फाल्के पुरस्कार (1989), पद्म विभूषण (1999), महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार (1997), एनटीआर राष्ट्रीय पुरस्कार (1999), एएनआर नेशनल अवॉर्ड (2009), 3 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (1972, 1974, 1990) और 12 बंगाल फिल्म पत्रकार एसोसिएशन पुरस्कार, चार बार सर्वश्रेष्ठ महिला प्लेबैक सिंगर के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड एवं 1993 में फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड.

इसी कड़ी में सन 2001 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान के रूप में ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया.

Lata ji Receiving Award (Pic : Images99)

किस तरह से जीवन में संघर्षों से लड़ते हुए आगे बढ़ते हुए सफलता की ऊँचाइयों को छू लिया जाता है, लता जी इस बात का जीवित उदाहरण हैं.

इस महान सुर-साम्राज्ञी के बारे में अगर चंद शब्द कहना हो तो आप क्या कहेंगे?

Web Title: Lata Mangeshkar The Nightingale Of India, Hindi Article

Feature Image Credit: ViralCrab

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