बाबुल
अब के बरस भेज भैया को बाबुल
सावन में लीजो बुलाये रे
लौटेंगी जब मेरी बचपन की सखियां
दीजो संदेशा भिजाये रे
भारतीय समाज की पद्दति में निश्चित रूप से स्त्रियों के त्याग को नमन है। .. एक पुरुष कल्पना नही कर सकता कि वह, 20-25 साल जिस घर मे पला, एक दिन अचानक उस घर के लिये पराया हो, एक अनजाने घर मे, अनजाने लोगो मे पहुँच जाएगा। ... गर्मियों में जेठ के महीने से सावन तक , भारतीय विवाहित महिलाओ की मायके जाने के परंपरा काफी पुरानी है। ..वह जमाना, जब न फोन थे, न ईमेल, .. मायके की याद में जलती स्त्रियों को, एक आस रहती थी, की उनका भाई उन्हें कुछ समय ले लिये ले जाने के लिये आएगा, जिधर वो फिर से अपने बाबुल के लाड़ में फिर से , मायके आयी अपनी बाकी सहेलियों से भी मिल सकेंगी। .. सखियों संग झूला झूलेंगी। .. मायके जाने का मोह, आज भी महिलाओ में उतना ही है।
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मैं जब भी, सन 1963 में बिमल रॉय द्वारा निर्देशित, #बंदिनी फ़िल्म का यह गाना सुनती हूँ, महिलाओ की पीड़ा को बहुत मन से महसूस करती हूँ। इस गीत की एक एक पंक्ति, दिल को चीर देती है। 😢
#बंदिनी #बिमल_रॉय #आशा_भौंसले_जी #शैलेन्द्र
😍
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