माँ संयोगिता चावला द्वारा परिवार - परिवेश के विरूद्ध जाकर किए गए स्वस्थ सहयोग से ही तय हो सका था छोटी - सी मोंटो का कल्पना चावला के रूप मे तारों के बीच अंतरिक्ष तक पहुँचने का सफ़र !
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1 फ़रवरी 2003 को, टेक्सस में स्पेस शटल कोलंबिया एसटीएस -107 पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते ही दुर्घटनाग्रस्त हो गया जिसके चलते इस यान पर गए सभी सात अन्तरिक्ष यात्रियों की मौत हो गयी थी।
इन सात अन्तरिक्ष यात्रियों में से ही एक थीं भारत की साहसी बेटी कल्पना चावला ! कल्पना चावला यानी की अन्तरिक्ष में जाने वाली पहली भारतीय महिला। आज उसी साहसी बेटी कल्पना चावला की सच्ची कहानी साझा कर रहे है अपने पाठकों से बान 

विश्व भर की लड़कियों के लिए आदर्श कल्पना चावला की आदर्श सदैव उनकी माँ संयोगिता चावला रही ! भारत के मध्यम वर्गीय परिवार की लडकियों की तरह ही कल्पना चावला भी हरियाणा में करनाल के एक साधारण से मध्सम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती थीं। हम सब परिचित है इस पहलू से कि छोटे से शहर करनाल मे कल्पना के ऊंचे सपनों और अतुलनीय साहस ने उन्हें अन्तरिक्ष तक पहुंचाया जरूर पर जब कल्पना के पिता ने उनसे डाक्टर बनने या फिर टीचर बनने की बात करते हुए अन्तरिक्ष मे जाने की बात को खारिज कर दिया ऐसे मे कल्पना का कहना था की  पिता के पुरजोर विरोध के बावजूद मेरी माँ के साहस ने कदम - कदम पर मुझे सहयोग किया मेरी अन्तरिक्ष यात्रा तय करने की राह मे मेरी प्रथम सहयोगी बनी !
आईए आज आप सब भी रूबरू होईए भारत की बेटी कल्पना चावला की ज़िन्दगी के उन कुछ अनछुए पहलू से जिसे बनाने का श्रेय केवल उनकी माँ संयोगिता चावला को जाता है ! यथा :
कल्पना के माता - पिता पश्चिमी पंजाब के मुल्तान जिले (अब पाकिस्तान मे है ) से ताल्लुक रखते थे, पर देश के बंटवारे के समय वे भारत में आकर हरियाणा के करनाल में बस गये। कल्पना के पिता बनारसी लाल चावला ने अपना घर परिवार चलाने के लिए छोटी -  मोटी नौकरी की। और बाद में उन्होंने टायर बनाने का अपना काम शुरू किया पर इन सबके पीछे उनकी पत्नी संयोगिता का बडा सहयोग था ! वह घर सम्भालने के  साथ - साथ पति के व्यवसाय एवम बेटियो की पढ़ाई के प्रति भी जागरूक सहयोगी थीं।
17 मार्च 1962 को जन्मीं कल्पना बचपन से ही ऐसे माहौल में पली-बढीं, जहाँ परिश्रम को सबसे महवपूर्ण माना जाता था। चार भाइ-बहनों में सबसे छोटी कल्पना सबको बहुत प्यारी थी। पर कल्पना के सपनो को साकार करने हेतु जो बचपन से उन्हे  पँख देने का कार्य कर रहा था वह थी उनकी माँ  !
कल्पना की माँ ने  कल्पना को हर एक चीज़ के लिए बढ़ावा दियासहयोग किया, अन्तरिक्ष मे जाने से पूर्व कल्पना ने मीडिया से अपनी बातचीत मे यह स्वीकारा था कि :
उस समय में जब  करनाल मे लड़कियों की पढ़ाई पर कोई ध्यान नहीं देता था, तब मेरी माँ यह सुनिश्चित करती थीं कि उनकी सभी बेटियाँ वक़्त पर स्कूल जाएँ  !
क बार गणित की क्लास में कल्पना के टीचर अलजेब्रा के नल-सेट (खाली सेट) के बारे में पढ़ा रहे थे और उन्होंने कहा कि भारतीय महिला अंतरिक्ष यात्रियों का एक समूह इसका अच्छा उदहारण होगा, क्योंकि आज तक कोई भी भारतीय महिला अन्तरिक्ष में नहीं गयी है। इसे सुनकर कल्पना ने बहुत ही दृढ़ता से कहा कि किसे पता है मैडम, एक दिन यह सेट खाली न रहे! इसे सुनकर सब दंग थे। पर उस वक़्त कोई नहीं जानता था कि एक दिन इस बात को कहने वाली लड़की ही इस नल-सेट को भरने के लिए अन्तरिक्ष जायेगी।

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माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

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