दुर्गा भाभी
लेखक की कलम से भूमिका :
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हमारे स्माइली लाइव परिवार की परम पूजनीय मां स्व० श्रीमती विमला जोशी पत्नी स्व० श्री सुरेश चन्द्र जोशी जी को समर्पित बैनर “स्माइली लाइव क्रिएशन्स” के तहत मातृशक्ति एवम महिला सशक्तिकरण के मानक पर सौ प्रतिशत खरा उतरने वाले एक सच्चे, प्रेरक भारतीय ऐतिहासिक महिला चरित्र “दुर्गावती देवी वोहरा उर्फ दुर्गा भाभी” ( 1920 मे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रान्तिकारी दल की सशक्त युवा महिला नेतृत्व ) पर लेखक विभांशु जोशी, एवम लेखक भारद्वाज अर्चिता को दिनांक 15 सितम्बर 2019 को संयुक्त रूप से किताब लिखने का न्योता मिला !
स्माइली लाइव क्रिएशन्स परिवार यह सौभाग्य प्राप्त करके अपार खुश है की दुर्गा भाभी के रूप में सन 1920 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम क्रान्तिकारी दल की एक सशक्त महिला युवा नेतृत्व पर किताब लिखकर हम अपने देश, समाज, परिवार, की बेटियो के सामने देश सेवा, राष्ट्र समर्पण एवम निडर चरित्र निर्माण हेतु एक
प्रेरक अध्याय रखने जा रहे हैं जिसे पढ़ते हुए हमारी बेटियाँ निश्चय ही प्रेरित होँगी !
यथा :
दुर्गावती भट्ट, दुर्गावती देवी वोहरा, दुर्गा भाभी, समय ने यह तीन उपनाम दिए उस एक सशक्त महिला क्रान्ति अलख को, जिसने पूरी ईमानदारी के साथ देश की खातिर आखिरी साँस तक अपना योगदान दिया !
पर सार्थकता उसके जिस उपनाम को मिली वह रहा दुर्गा भाभी के निडर साहसी किरदार मे रचा - बसा उसका देश समर्पित उपनाम “दुर्गा भाभी ”!
यह वह नाम है जिसे स्वयम दुर्गावती भट्ट से दुर्गावती देवी वोहरा बनने के बाद अपने क्रान्तिकारी पति भगवती चरण वोहरा के साथ मिलकर सन 1928 मे सरदार भगत सिंह की क्रान्ति सहयोगी बनते हुए दुर्गावती देवी वोहरा ने लिखा था और दुर्गा भाभी के निडर चरित्र मे अपने आपको अवतरित किया था !
यह वही दुर्गा भाभी थी जिन्होने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्रान्तिकारियों की प्रमुख सहयोगी के रूप मे खुद की भागीदारी खुद ही तय की थीं और भेष बदल - बदल कर राजस्थान, कानपुर, लाहौर, मुंबई की यात्रा अकेले किया करती थी वह भी क्रान्तिकारी दलों तक हथियार पहुँचाने के लिए ।
18 दिसम्बर 1928 को भगत सिंह ने इन्ही दुर्गा भाभी के साथ भेष बदल कर कलकत्ता - मेल से यात्रा की थी।
उस दौर मे किसी भारतीय महिला द्वारा की गई यह सबसे साहसिक यात्रा थी, क्योकि इस यात्रा मे दुर्गा वोहरा को भगत सिंह की व्याहता पत्नी बनकर, सज - धज कर बेटे सहित कलकत्ता मेल से यात्रा करनी थी !
विपरित दौर के उस परिवेश मे एक स्त्री का गैर पुरूष के साथ सज - धज कर यात्रा करना सम्भवत: आसान कदम नही था, पर निडर दुर्गा भाभी ने इसे सम्भव कर दिखाया था !
पाठकों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि : दुर्गा भाभी उस महान क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा की धर्मपत्नी थीं जो क्रान्तिदल के लिए बम बनाते थे !
और एक दिन बम बनाते वक्त ही विष्फोट होने से इनकी मौत हो गयी थी !
दुर्गावती भट्ट के रूप मे दुर्गा भाभी का जन्म 07 अक्टूबर 1902 को शहजादपुर ग्राम के कौशाम्बी वर्तमान प्रयागराज जिला में पंडित बांके बिहारी भट्ट के यहां हुआ था।
इनके पिता इलाहाबाद कलेक्ट्रेट में कार्यरत थे, बाबा महेश प्रसाद भट्ट जालौन जिला में थानेदार के पद पर तैनात थे।, इनके दादा पंडित शिवशंकर भट्ट शहजादपुर में जमींदार थे !
दुर्गावती भट्ट बचपन से ही दादा पंडित शिवशंकर भट्ट की लाडली थी ! जिन्होंने बचपन से ही पोती दुर्गा के सभी बातों को पूरी करने मे कोई कसर नही छोडा था।
दादा शिवशंकर भट्ट ने लाड प्यार के चलते दस वर्ष की अल्प आयु में ही पोती दुर्गावती भट्ट का विवाह लाहौर के भगवती चरण बोहरा के साथ कर दिया था !
जो कि राय शिवचरण जी के सुपुत्र थे ! राय शिवचरण जी उस समय रेलवे में ऊंचे पद पर तैनात थे।
अंग्रेजी सरपरस्ती के चलते अंग्रेजी सरकार ने उन्हें राय साहब का खिताब दिया था।
दुर्गावती भट्ट जब दुर्गावती वोहरा बनकर लाहौर आई तो कुल उम्र 11 वर्ष थी वह देश की आजादी के गीत गाती देश की आजादी के सपने देखती जो की उनके पति कम दोस्त भगवती चरण वोहरा को बहुत आकर्षित करते थे क्योकि स्वयम पति भगवती चरण बोहरा, राय शिवचरण साहब के पुत्र होने के बावजूद अंग्रेजों की दासता से देश को मुक्त कराना चाहते थे। इसलिए घर मे बागी घोषित थे ! पिता के लाख अँग्रेज परस्ती के बावजूद भी वह समर्पित देशभक्त थे एवम उस दौर के क्रांतिकारी संगठन के प्रचार सचिव भी बनाए गए थे।
वर्ष 1920 में पिता राय शिवचरण जी की मृत्यु के पश्चात भगवती चरण वोहरा जब खुलकर क्रांति में आ गए तो पहला समर्थन उन्हे उनकी 18 वर्षीय युवा पत्नी दुर्गावती वोहरा का ही मिला ! यही से दुर्गावती बोहरा ने एक स्त्री होने के बावजूद पति की क्रांतिकारी गतिविधि एवम क्रांतिकारी विचारो की राह मे हमराही बनते हुए कदम - कदम पर सहयोग करना शुरू कर दिया।
दुर्गावती वोहरा की शिक्षा पर पति भगवती चरण वोहरा का रहा बडा योगदान ! सन् 1923 में भगवती चरण वोहरा ने जब नेशनल कालेज से बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की उसी वर्ष उनकी पत्नी दुर्गावती वोहरा ने भी प्रभाकर की डिग्री हासिल की।
दुर्गा भाभी का मायका व ससुराल दोनों पक्ष बेहद संपन्न थे। आजादी की लडाई से इस परिवार का कोई बहुत लेना देना नही था ! दोनों परिवार मे कई सदस्य उच्च सरकारी पद पर नियुक्त थे !
धन की इतनी अधिकता थी दोनों परिवार मे की ससुर शिवचरण जी ने बहू दुर्गावती वोहरा को 40 हजार रूपए उपहार स्वरूप दिए थे ! एवम दुर्गावती के पिता श्री बांके बिहारी ने भी पांच हजार रुपये बेटी को दिए थे ! दुर्गावती वोहरा ने पिता एवम ससुर से मिले इन 45 हजार रूपयों की जानकारी पति को देते हुए इन रूपयो से देश सेवा मे लगे क्रांतिकारी साथियों का सहयोग करने हेतु पति से आग्रह किया था।
मार्च 1926 में भगवती चरण वोहरा व भगत सिंह ने संयुक्त रूप से नौजवान भारत सभा का प्रारूप तैयार किया और रामचंद्र कपूर के साथ मिलकर इसकी स्थापना की। सैकड़ों नौजवानों ने देश को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों का बलिदान राष्ट्र वेदी पर चढ़ाने की शपथ ली जिसकी प्रमुख सदस्या 24 वर्षीय दुर्गा भाभी भी रही ! इस सदस्यता अभियान के तहत भगत सिंह, भगवती चरण वोहरा, दुर्गा भाभी सहित सैकडोँ सदस्यों ने अपने रक्त से प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर किए।
28 मई 1930 को रावी नदी के तट पर साथियों के साथ बम बनाने के बाद परीक्षण करते समय भगवती चरण वोहरा शहीद हो गए। उनके शहीद होने के बावजूद दुर्गा भाभी साथी क्रांतिकारियों के साथ आजादी की क्रान्ति मुहिम मे सक्रिय रहीं।
सन 1857 झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई के 70 वर्ष बाद भारतीय इतिहास मे यह पहली घटना थी जब 9 अक्टूबर 1930 को दुर्गावती वोहरा के रूप मे किसी भारतीय महिला ने पूरे स्वाभिमान के साथ किसी अंग्रेज गवर्नर पर सामने से गोली चलाया था ।
जिस वक्त दुर्गा भाभी ने गवर्नर हैली पर गोली चलाया था उस वक्त वह केवल अकेले गवर्नर के सामने खडी थी ! दुर्गावती वोहरा का दूर्भाग्य यह रहा की उनके हाथ मे पिस्तौल देखकर गवर्नर हैली खुद को तेजी से जमीन पर गिरा लिया ! निशाना चूक जाने के कारण गवर्नर हैली तो बच गया लेकिन उसके साथ का सैनिक अधिकारी टेलर दुर्गा भाभी के पिस्तौल से निकली गोली से घायल हो गया था।
मुंबई का वह पुलिस कमिश्नर जिसने मिशन आजादी मे रत क्रान्तिकारियों के नाक मे दम कर रखा था को भी दुर्गा भाभी ने गोली मारी थी, परिणाम स्वरूप यही से
अंग्रेज पुलिस दुर्गा भाभी के पीछे पड़ गई। और एक दिन मुंबई मे ही दुर्गा भाभी व साथी यशपाल को गिरफ्तार भी कर लिया गया किन्तु सबूत के अभाव मे इन्हे रिहा करना अंग्रेज हूकूमत की विवसता बन गयी थी !
पति भगवती चरण वोहरा की शहादत के बाद दुर्गा भाभी ने क्रांतिकारी दल मे अपने लिए जो जिम्मेदारी स्वीकार किया वह थी साथी क्रांतिकारियों के लिए राजस्थान से पिस्तौल लाना व ले जाना था।
चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों से लड़ते वक्त जिस पिस्तौल से खुद को गोली मारी थी उसे भी दुर्गा भाभी ने ही लाकर उनको दिया था ! और जिस वक्त चन्द्रशेखर शहीद हुए उस समय भी दुर्गा भाभी उनके साथ ही थीं पर वह विवश निहत्थी दूर खडी थी क्योकि उनके पास दूसरी पिस्तौल नही थी !
सन 1920 मे दुर्गा भाभी ने स्वयम पिस्तौल चलाने की ट्रेनिंग लाहौर मे अपने पति भगवती चरण वोहरा से लिया था व पति की मौत के कुछ वर्ष बाद जब भगत सिंह, राजगुरू सहित अन्य साथियो को सजा हो गयी तब दुर्गा भाभी का सम्पर्क कानपुर में चंद्रशेखर आजाद से हुआ और चंद्रशेखर आजाद से भी इन्होने पिस्तौल चलाने की दूबारा ट्रेनिंग ली थी।
भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त जब केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने जाने लगे तो वह दुर्गा भाभी ही थी जिन्होने अपनी बांह काट कर अपने रक्त से दोनों लोगों को तिलक लगाते हुए मिशन के लिए विदा किया था।
असेंबली में बम फेंकने के बाद जब भगत सिह, सहित अन्य क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया तथा फांसी दे दी गई, तब साथी क्रांतिकारियों के शहीद हो जाने के बाद दुर्गा भाभी एकदम अकेली पड़ गई। लेकिन वह हिम्मत नही हारी, और डटकर हालात का सामना किया !
पति की मौत के बाद खुद देश सेवा करने बावजूद एक सजग माँ के रूप मे “ बेटे शचींद्र वोहरा” के प्रति भी वह वफादार रही ।
अपने पांच वर्षीय पुत्र शचींद्र को शिक्षा दिलाने की व्यवस्था करने के उद्देश्य से भेष बदल कर वह साहस के साथ दिल्ली चली आई। जहां पर पुलिस उन्हें बराबर तलाशा करती रही जिससे बचने के लिए कुछ वक्त बाद दुर्गा भाभी दिल्ली से लाहौर चली गई,
किन्तु लाहौर पहुँचने पर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और तीन वर्ष तक नजरबंद रखा।
दुर्गा भाभी के भेष बदलने, भूमिगत होने, गिरफ्तार होने, व रिहा होने का यह सिलसिला 1931 से 1935 तक अनवरत चला चलता रहा। अंत में उन्हे लाहौर से जिलाबदर कर दिया गया ! सन 1935 में वह गाजियाबाद में प्यारेलाल कन्या विद्यालय में अध्यापिका की नौकरी करने लगी ! कुछ समय बाद पुन: दिल्ली गई कांग्रेस में काम करने लगीं।
पर विचारो मे क्रान्ति की अलख होने की वजह से उस वक्त का कांग्रेसी जीवन एवम कांग्रेसी वातावरण उन्हे रास नही आया जिसके चलते उन्होंने 1937 में कांग्रेस छोड़ दिया।
1939 में इन्होंने मद्रास जाकर मारिया मांटेसरी से मांटेसरी पद्धति का प्रशिक्षण लिया तथा 1940 में लखनऊ में कैंट रोड के नजीराबाद मे स्थित एक निजी मकान में सिर्फ पांच बच्चों के साथ मांटेसरी विद्यालय की नीव रखा ! जिसे आज “मांटेसरी इंटर कालेज लखनऊ” के नाम से जाना जाता है।
14 अक्टूबर 1999 को गाजियाबाद में बेटे सचिन्द्र वोहरा के परिवार के साथ रहते हुए उन्होंने इस दुनिया से अलविदा कहा !
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कलम से :
लेखक विभांशु जोशी
लेखक भारद्वाज अर्चिता
क्रमश: दुर्गा भाभी का चरित्र विस्तार से :
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