योग से जोग की तरफ ले जाने वाली साधना के तौर पर लेना होगा योग को न की केवल परंपरा निर्वहन हेतु One Day Wanders टाईप के ढोंग मेन्टेन करने की जद्दोजहद करने तक ही योग को सिमित कर देना है !

जिस देश में शिक्षा का स्तर इतना अद्भुत हो कि धर्म के नाम पर आसानी से, फिर चाहे वो हिन्दू हो या मुसलमान, एक-दूसरे को जान से मारा जा सकता हो, जहाँ अभिभावक इतने समझदार हों कि अपने ही बच्चों के स्कूल के सामने, बड़ी-बड़ी गाड़ियों में सवार, एक-दूसरे पर ज़ोर-ज़ोर से हॉर्न मारते-फेंकते हों, इस बात से बेपरवाह कि उनका अपना बच्चा भी इस शोर से उपजे प्रदूषण का शिकार हो रहा है, जिस देश के घरों में ख़ुद के रहने की जगह भले ही न बची हो लेकिन सदियों पुराना, बड़े से बड़ा कबाड़ भी लोग दिल से चिपका कर रखते हों, जहाँ सड़कों पर ख़ुद के चलने की जगह भले ही न बची हो लेकिन तमाम कंडम-कूड़ा गाड़ियाँ आस-पास मुँह-चिढ़ाती, जगह घेरे खड़ी नज़र आ जाती हों, जिस देश में कोई ख़ुद से एक भी पौधा न लगाता हो लेकिन बड़ी शान के साथ अपनी अलग-अलग क़िस्म की, ढेरों धुआँ उगलती गाड़ियों में बैठकर, बड़े अधिकार के साथ वातावरण को अशांत और प्रदूषित करने की भरपूर सामर्थ्य रखता हो, जिस देश में एक हज़ार का एक पिज़्ज़ा खा जाने वाले लोग भी घर में काम करने वाले की तनख़्वाह और रिक्शे वाले, सब्ज़ी वाले के साथ एक-एक पैसे की हुज्जत से बाज़ न आते हों, जहाँ आज भी दूरदर्शन वालों को सिखाना पड़ता हो कि हाथों को साबुन से धोना कितना ज़रूरी है, जहाँ राह चलते साफ-सुथरी सड़क पर चाट के पत्तल को हवा में उड़ा देना लोग अपनी शान समझते हों, जिस देश में नदियों का पानी, जिस पानी के बिना आप जीवित नहीं रह सकते, वह पानी स्वयं आपके अत्यधिक कूड़े-कचरे से भयभीय अपने ख़ुद के जीवन की भीख माँगता फिरता हो, जिस देश में अमीर-ग़रीब के बीच की खाई ऐसी हो कि अमीर 'अ से आसमान' पर रहता हो और ग़रीब 'ग से गर्त' में.... एक राजा जैसा और दूसरा उस राजा के लिए सुविधाएँ उत्पन्न करने वाली एक मशीन या साधन जैसा, जिस देश में सड़कों और यातायात का हाल ऐसा हो कि लोग बीमारी से ज़्यादा एक्सीडेंट्स में मरने लगें, जिस देश में बेहतर मेडिकल सुविधाओं का लगभग अकाल-अभाव हो, जिस देश में बेकारी, बेरोज़गारी इतनी हो कि लोग खाली बैठे केवल विध्वंसात्मक गतिविधियों का ही ताना-बाना बुनते हों, जहाँ घर के बूढ़े-बुज़ुर्गों के आशीर्वाद से ज़्यादा लोगों की आस्था बाबाओं के ढोंग और चमत्कारों में हो, जिस देश में बढ़ती आबादी का आलम उसके ज़र्रे- ज़र्रे को लील जाने को बेताब दिखता हो, जिस देश के लोग शारीरिक से ज़्यादा मानसिक बीमारियों के शिकार हों, जिस देश में एक लड़की को छेड़ना, उसका बलात्कार कर देना सबसे बड़ा मनोरंजन हो, जहाँ न्याय व्यवस्था सिरे से चरमरा चुकी हो, जहाँ सुरक्षा करने वाली पुलिस से लोग ख़ुद को सबसे ज़्यादा असुरक्षित महसूस करने लगे हों, जिस देश की आबादी के लगभग अस्सी प्रतिशत ने, जो कि किसान और मज़दूर हैं, दिन भर की मज़दूरी और उससे मिलने वाली दिहाड़ी के अलावा कभी कोई दूसरा सपना पालने की हिम्मत तक ना की हो, जिस देश का मीडिया इंसान मात्र के कष्ट-दुखों से ज़्यादा हर दिन, एक बिकने वाली ख़बर की तलाश में रहता हो और जिस देश की राजनीति हर मुद्दे में सिर्फ़ और सिर्फ़, राजनीति तलाशती हो,
ऐसे में, इस देश का और यहाँ के लोगों का, कोई 'योग' बिचारा भला क्या बना या उखाड़ लेगा......
योग-दिवस पर आज इतना ही..🙏

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता