Mothers day series 1 start
"माँ तेरा आँचल जो हमेशा साथ रहता है"
(मातृ दिवस 12 मई 2019)
मदर्स डे मां को समर्पित एक ऐसा दिन जिसकी स्थापना के लिए एक अमेरिकी बेटी ने 9 मई 1914 को अमेरिकी प्रेसिडेंट वुड्रो विल्सन को भी बाध्य कर दिया था :
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आधुनिक दौर में मां को बेशुमार प्यार व सम्मान देने वाले इस एक विशेष दिन की शुरुआत अमेरिका से हुई थी। माना जाता है कि अमेरिकी एक्टिविस्ट एना जार्विस ने मदर्स डे मनाए जाने का ट्रेंड शुरू करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाया था ! अमेरिकन एक्टिविस्ट एना मैरी जार्विस अपनी मां से बहुत प्यार करती थीं। उन्होंने न कभी शादी की और न ही उनका अपना कोई बच्चा ही था। वह हमेशा अपनी मां के साथ रहीं।
एना जार्विस ही संयुक्त राज्य अमेरिका में मातृ दिवस (Mothers Day) छुट्टी की संस्थापक मानी जाती है। इस छुट्टी के आरम्भ होने पीछे की जो मुख्य वजह थी वह यह कि एना मैरी जार्विस से उनकी माँ ने अक्सर यह कामना की थी कि : पूरे वर्ष भर मे कोई एक ऐसा दिन तय हो जब दुनिया भर की माताओ के सम्मान मे विशेष आयोजन किए जाएँ और बच्चे अपनी माँ को इस एक दिन अच्छा महसूस करवाएँ । ऐसे एक विशेष दिन की कामना करते हुए बेटी से इस विशेष दिन की स्थापना करवाने की इच्छा व्यक्त करते हुए एना की बुजुर्ग माँ एक दिन इस दुनिया से चल बसी ! अपनी माँ की मृत्यु के बाद एना को बहुत अपराधबोध हुआ की वह अपनी माँ की इच्छा माँ के जीते जी पूरी नही कर पायी ! एक दिन उन्होने तय किया की उस एक विशेष दिन की शुरूआत के लिए सरकार से माँग करते हुए वह माँ के स्मरणोत्सव (Anniversary) के लिए कोई एक दिन तय करवाएँगी पर उनका यह निर्णय सरकार के सामने काम न आ सका सरकार की उदासिनता के चलते आखिरकार एना ने आंदोलन करने का निर्णय लिया और आंदोलन का नेतृत्व किया आंदोलन का असर हुआ एना का प्रयास सफल हुआ उनकी माँ की आखिरी इच्छा का सम्मान करते हुए 9 मई 1914 को अमेरिकी प्रेसिडेंट वुड्रो विल्सन ने एक लॉ पास किया था जिसमें लिखा था कि मई महीने के हर दूसरे रविवार को मदर्ड डे मनाया जाएगा। अमेरिका में इस लॉ के पास होने के बाद भारत और कई अन्य देशों में भी मई महीने के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाए जाने की शुरूआत हुई ।
नमन उस बेटी एना वर्जिस को अपनी माँ के प्रति जिसके अथाह प्यार ने दुनिया को मदर्स डे के रूप मे मई माह का दूसरा सण्डे ( रविवार ) सौपा !
तो आईए इस वर्ष रविवार 12 मई 2019 को हम सब अपना पूरा एक दिन अपनी माँ के नाम करे और कुछ ऐसा काम करे जिससे कि हमारी माँ धरा से लेकर अनन्त ब्रहमाण्ड तक जहाँ कही भी हो हमारे कार्यो पर उन्हे सम्मान एवम सन्तुष्टि की अनुभूति प्राप्त हो !
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बाल कानून विशेषज्ञ @Vibhanshu Joshi SmileyLive एवम पत्रकार भारद्वाज अर्चिता द्वारा धरती की शक्तिशाली माँ पर लेख श्रृंखला के अन्तर्गत इतिहास के पन्नों मे रची बसी विश्व की वह माएँ जिन्होने परिवेश-परिस्थिति के विरूद्ध जा कर अपने बच्चों को सदी का महान चरित्र बना दिया यथा :
( 1 ) माता जीजाबाई और पुत्र महाराज शिवाजी :
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पुत्र जन्म के साथ ही पति द्वारा त्यागी गयी वह महान माँ जीजाबाई : जिन्होने अपने पुत्र छत्रपति शिवाजी महाराज को बचपन मे हाथो की अंगुलियां पकड़कर चलना सिखाया और समय आने पर उन्ही हाथो मे तलवार पकडा कर तलवार बाजी मे पारँगत किया, एवम गोरिल्ला/छपेमार युद्ध के गुर बता कर सदी का महान अजेय योद्धा बना दिया ! जी हां हम बात कर रहे है छत्रपति शिवाजी महाराज की महान मां जीजाबाई की महानता की !
इतिहास के पन्नो मे झाँकने पर पता चलता हैं कि माता जीजाबाई शिवाजी के लिए केवल माता ही नहीं बल्कि उनकी सच्ची मित्र शुभचिन्तक और मार्गदर्शक भी थीं ! माता जीजाबाई का सारा जीवन केवल साहस और त्याग से भरा हुआ है ! उन्होंने जीवन भर कठिनाइयों और विपरीत परिस्थितियों का सामना किया, किन्तु कभी धैर्य और आत्म शक्ति नही खोया सदैव ‘पुत्र ‘शिवाजी’ को राष्ट्र, समाज, जन कल्याण, के प्रति उदार बने रहने की सीख देते हुए युग नायक एवम महान योद्धा बनाने मे लगी रही ! जीजाबाई का जन्म 12 जनवरी 1598 में बुलढाणा के जिले सिंदखेद के निकट ‘ हुआ था ! बहुत कम उम्र मे उनका विवाह ‘शहाजी भोसले’ के साथ कर दिया गया ! माता जीजाबाई के आठ बच्चों थे जिनमें से 6 बेटियां और 2 बेटे थे जिनमे से एक पुत्र शिवाजी महाराज भी थे ! माता जीजीबाई देखने में जितनी सुंदर थीं… उतनी ही बुद्धिमान भी थी तलवार बाजी, घुणसवारी, एवम छापामार युद्ध मे महारत प्राप्त थी उन्हे ! माता जीजाबाई के जीवन की सबसे बडी त्रायदी यह हुई की बालक शिवाजी के जन्म के साथ ही पति शहाजी भोसले ने उन्हें त्याग दिया था ! वजह तुकाबाई के साथ शहाजी भोसले का दूसरा विवाह कर लेना था ! पर इस परिस्थिति मे भी माता ने हिम्मत से काम लिया अपनी दूरदर्शी सूझ बूझ का परिचय देते हुए वह शिवाजी के लिए बनीं प्रेरणा, एक सफल माता के साथ साथ वह एक सक्षम योद्धा और प्रशासक के रूप में जानी जाती थीं शौर्यता उनके रगों में भरी हुई थी एक माँ के रूप मे वह शिवाजी को हमेशा दुनिया भर के तमाम नायको की वीरता के किस्से सुनाकर उन्हें आदर्श नायक बनने हेतु प्रेरित करती रहती थीं ! एक गुरू के रूप मे उन्होने युद्ध की हर विधा मे बेटे शिवा को निपुण बनाया ! जब भी शिवाजी मुश्किल में आते, माता जीजाबाई उनकी हर तरह की मदद के लिए खड़ी नज़र आती । पिता के बिना पुत्र को ( बच्चो को ) बेहतर परवरिस देकर बड़ा करना एक माँ के लिए जितना मुश्किल काम आज की माँ के लिए है उससे कही मुश्किल काम था उस दौर मे । अपने लिए खडी इस बड़ी चुनौती का डँटकर सामना करते हुए माता जीजाबाई ने बखूबी अपना दायित्व निभाया ! समर्थ गुरु रामदास के साथ मिलकर शिवाजी के पालन-पोषण में खुद को पूरी तरह झोंक दिया था ! शिवाजी को शौर्यता का पाठ पढ़ाते वक्त जीजाबाई का एक किस्सा खासा मशहूर है ! जब शिवाजी एक योद्धा के रुप में लय पकड रहे थे, आकार ले रहे थे, तब जीजाबाई ने एक दिन उन्हें अपने पास बुलाया और कहा, बेटा तुम्हें सिंहगढ़ के ऊपर फहराते हुए विदेशी झंडे को किसी भी तरह से उतार फेंकना होगा माता यहीं नहीं रूकीं… आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कि अगर तुम ऐसा करने में सफल नहीं रहे तुम तो मै तुम्हे अपना बेटा नहीं समझूंगीं ! माँ की बात सुनकर शिवाजी ने कहा, मां एक तो मुगलों की सेना काफी बड़ी है दूसरे हम अभी मजबूत स्थिति में नहीं आ पाए हैं ऐसे में उन पर इस समय विजय पाना अत्यंत कठिन कार्य है ! शिवाजी के यह शब्द माता को बाण के समान आहत किए ! नाराज होकर उन्होंने क्रोध भरे सुर में कहा शिवा तुम अपने दोनो हाथों में चूडियां पहन कर घर पर ही रहो ! मैं खुद ही सिंहगढ पर आक्रमण करूंगी और उस विदेशी झंडे को उतार कर फेंक दूंगी ! मां का यह जवाब शिवाजी को हैरान कर देने वाला था, शिवा जी अत्यन्त लज्जीत हो चुके थे उन्होंने माफी मांगते हुए मां की भावनाओं का सम्मान किया और तत्काल नानाजी को बुलवा कर आक्रमण की तैयारी आरम्भ करने को कहा और योजनाबद्ध तरीके से सिंहगढ़ पर आक्रमण कर शिवाजी ने अपने साथ साथ अपने मराठा कुल के नाम बड़ी जीत दर्ज किया !
कहना सही होगा की इस दुनिया मे कोई भी बच्चा वही बनता है जो उसकी माँ उसे बनाना चाहती है ! विज्ञान मे वर्णित अनुवंशिकी का नियम भी इसे सत्ययापित करता है ! अनुवंशिकी गुणो के आधार पर प्राकृतिक रूप से माँ के 75 प्रतिशत गुण बच्चे को मिल जाते है !
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( 2 ) माता भुवनेश्वरी देवी एवम स्वामी विवेकानन्द :
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“ उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत”
जैसे जीवन मन्त्र का दर्शन दुनिया को समझाने वाले विवेकानंद जी के स्वयम के जीवन मे इस मन्त्र का रोपण तब हुआ था जब बचपन मे माँ भुवनेश्वरी देवी सुबह - सुबह बालक नरेन्द्र को नीद से जगाते हुए इस मन्त्र का लगातार जाप करती जाती थी !
विवेकानन्द ने स्वयम स्वीकारा है कि मेरे धार्मिक, सात्विक, स्वभाव हेतु मेरी माँ ही मेरी प्रथम ध्यात्मिक गुरु रही ! बचपन मे मिला उनका संदेश सौहार्द, शांति और सद्भावना से भरा हुआ होता था ! मेरे सन्यासी पितामह दुर्गादास की बाते माँ मुझे बताया करती थी और रामायण, गीता के महान चरित्रो का मुझसे वर्णन करती थी !”
माना जाता है बालक नरेंद्र बचपन मे बहुत शैतान थे, कई बार उनकी माँ भुवनेश्वरी देवी के लिए उन्हें सम्भालना मुश्किल हो जाता था, ऐसे में माँ उन पर ठंडा पानी डालती थी और भगवान शिव का जाप करती थी, जिससे वो तुरंत शांत हो जाते थे जब वह शान्त हो जाते उनसे माँ कहती थी कि यदि अब भी तुम शैतानी करने से बाज नहीं आए तो शिव तुमसे नाराज हो जाएंगे और तुम्हे कैलाश में प्रवेश नहीं करने देंगे । इस तरह स्वामी जी के व्यक्तित्व के प्रारम्भिक विकास में माँ का महत्वपूर्ण योगदान रहा । एक बार स्कूल में किसी बात पर अपने पुत्र द्वारा अन्याय होते देखकर माँ ने बालक नरेन्द्र से कहा था “ नरेन्द्र यह बहुत महत्वपूर्ण हैं कि “तुम सही और सत्य की राह पर चलो, कई बार तुम्हे सत्य की राह पर चलते हुए कडवे अनुभव भी हो सकते हैं और दुख भी मिल सकते है लेकिन तुम्हे किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं होना हैं ! स्वामी विवेकानन्द ने अपने कई भाषण में यह स्वीकार भी किया था की मैं अपनी माँ की शिक्षा का आभारी हूँ क्योकि मेरी माता के सहयोग से ही मैने ईश्वर चन्द्र विद्यासागर मेट्रोपोलिटन इंस्टिट्यूट से पश्चिमी शिक्षा हासिल की थी, और पश्चिमी और पूर्वी दर्शनशास्त्र में मेरी गहन रूचि पैदा हुई । कॉलेज की शिक्षा प्रेजिडेंसी कॉलेज से पूरी करते हुए थी. और कॉलेज पूरा करने के साथ ही मै खेल, जिम्नास्टिक, रेसलिंग और बॉडी बिल्डिंग में भी एक्सपर्ट बन चुका था इसके पीछे भी माँ का ही योगदान था बचपन मे माँ मुझसे कहा करती थी बच्चो को नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए और शरीर को मजबूती प्ररदान करने वाले खेल भी खेलने चाहिए ।
पुत्र नरेन्द्र के स्वामी विवेकानंद बनने की राह मे उनकी माँ का त्यागपूर्ण योगदान कम नही था ! 1884 में जब विवेकानन्द के पिता का देहांत हो गया,और उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ती चली गई घर-परिवार की सारी जिम्मेदारी युवा नरेंद्र पर आ गयी स्थित यह यहाँ तक आ गयी की कई कई बार परिवार को भूखे भी रहना पडा ! इस दौरान भी माता भुवनेश्वरी देवी ने उनको कमजोर नही पडने दिया !
स्वामी विवेकानंद के मन मे सन्यास लेने से पूर्व घर की परिस्थिति को लेकर काफी उथल - पुथल थी जो वह माँ से कह नही पा रहे थे पर सब कुछ भाँपते हुए माँ ने कहा था “ नरेन्द्र पहले इंसान बनो फिर देखो मानवता कैसे प्रगति करती हैं ! साथ ही खुद पर भी विश्वास करो जब तक तुम खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक तुम भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते कोई भी तुम्हे अन्दर से बाहर की तरफ कैसे विकसित होना है यह पढ़ा नहीं सकता, कोई तुम्हे आध्यात्मिक नहीं बना सकता, तुम्हारी आत्मा के अलावा कोई तुम्हे सही रास्ता नही दिखा सकता इस लिए केवल आत्मा की सुनो तुम्हारी आत्मा की आवाज के साथ मै सदैव खडी हूँ ।
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( 3 ) माँ Nancy Matthews Elliott और महान वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडिसन :
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एक महान मां Nancy Matthews Elliott के सफल मार्गदर्श, अटूट विश्वास, पूर्ण समर्पण, ने बौद्धिक स्तर पर काफी कमजोर अपने बच्चे को जब बना दिया दुनिया का महान वैज्ञानिक, यथा :
थॉमस अल्वा एडिसन प्राइमरी स्कूल में पढ़ते थे। एक दिन स्कूल में टीचर ने एडिसन को एक मुड़ा हुआ कागज दिया और कहा कि यह ले जाकर अपनी मां Nancy Matthews Elliott को दे देना। एडिसन घर आए और अपनी मां को वह कागज देते हुए कहा,‘टीचर ने यह आपको देने को कहा है।’ मां ने वह कागज हाथ में लिया और पढ़ने लगी। पढ़ते-पढ़ते उनकी आंखों से आंसू बहने लगे। एडिसन ने मां से पूछा, ‘इसमें क्या लिखा है मां? यह पढ़कर तुम रो क्यों रही हो?’ आंसू पोंछते हुए मां ने कहा, ‘इसमें लिखा है कि आपका बेटा बहुत होशियार है और हमारा स्कूल नीचे स्तर का है। यहां अध्यापक भी बहुत शिक्षित नहीं हैं। इसलिए हम इसे नहीं पढ़ा सकते। इसे अब आप स्वयं शिक्षा दें।’उस दिन के बाद से मां खुद उन्हें पढ़ाने लगीं और मां के ही मार्गदर्शन में एडिसन पढ़ते रहे, सीखते रहे। कई वर्षों बाद मां गुजर गई। मगर तब तक एडिसन प्रसिद्ध वैज्ञानिक बन चुके थे और उन्होंने फोनोग्राफ और इलेक्ट्रिक बल्ब जैसे कई महान अविष्कार कर लिए थे। एक दिन फुर्सत के क्षणों में वह अपने पुरानी यादगार वस्तुओं को देख रहे थे। तभी उन्होंने आलमारी के एक कोने में एक पुराना खत देखा और उत्सुकतावश उसे खोलकर पढ़ने लगे। यह वही खत था जो बचपन में एडिसन के शिक्षक ने उन्हें दिया था। उन्हें याद था कि कैसे स्कूल में ही उन्हें अत्यधिक होशियार घोषित कर दिया गया था। मगर पत्र पढ़ कर एडिसन अचंभे में पड़ गए। उस पत्र में लिखा था : “आपका बच्चा बौद्धिक तौर पर काफी कमजोर है। इसलिए उसे अब स्कूल ना भेजें।” अचानक एडिसन की आंखों से आंसू झरने लगे। वह घंटों रोते रहे और फिर अपनी डायरी में लिखा, ‘एक महान मां ने बौद्धिक तौर पर काफी कमजोर बच्चे को सदी का महान वैज्ञानिक बना दिया।’
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शेष जीवनियां कल के अंक में :
( 4 ) सचिन तेंदुलकर के महान क्रिकेटर बनने से लेकर भारत रत्न पाने तक मां रजनी तेंदुलकर की रही अहम भूमिका :
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कहते है भारत जैसे देश मे एक सामान्य परिवार की जिन्दगी बसर करना वह भी पूरे संयुक्त परिवार के साथ बहुत ही संघर्ष भरा एवम दुरुह होता है और इस दुरूहता मे सबकी सेहत, सबकी तरक्की, सबकी शिक्षा, सबकी खुशी का ध्यान रखते हुए मजबूत स्तंभ का काम केवल माँ ही कर सकती है वह भी कदम - कदम पर अपने सुख का त्याग करते हुए ।
ऐसे ही एक सामान्य परिवार मे 24 अप्रैल 1973 को सचिन तेंदुलकर का जन्म हुआ था भाई बहनो मे सबसे छोटे एवम माँ के साथ - साथ सबके दिल के बेहद करीब सचिन का मन कभी पढ़ाई में नहीं लगता था ! मराठी स्कूल में शिक्षक एवम प्रसिद्ध मराठी उपन्यासकार पिता श्री रमेश तेंदुलकर के लिए यह चिन्ता की बात हो गयी थी, पर माँ रजनी इससे कभी विचलित नही होती और पति से हमेशा यही कहती
“मेरा बेटा बहुत बडा नाम करेगा एक दिन! यह जरूरी नही की हर बच्चा टीचर बने या अधिकारी ही बने؛ बच्चे अपने भविष्य के लिए अलग - अलग दिशा मे भी प्रयास कर सकते है ! मेरे बेटे की रूचि को समझकर उसे उस दिशा मे सहयोग करिए आप जिस दिशा मे जाने का उसका मन है माँ के द्वारा कहे गए इन्ही शब्दो के साथ पिता सहित घर के अन्य सदस्य सचिन तेंदुलकर के पसंद एवं शौक को नोटिस करने लगे !
मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम पर 16 नवंबर 2013 का दिन इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज है। दुनिया भर के क्रिकेट फैन्स ने इस दिन एक युग को खत्म होते देखा और वह शब्द भी सुना जो 24 साल के लंबे अंतरराष्ट्रीय करियर के बाद सचिन तेंदुलकर ने अपने होम ग्राउंड मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में क्रिकेट के सभी फॉर्मेट्स को अलविदा कहते हुए अपनी मां से उस दिन कहा था : “ मेरी मां, मुझे नहीं पता कि मेरे जैसे शैतान बच्चे को आपने कैसे संभाला है। मैंने जब से क्रिकेट शुरू किया है, तब से आपने सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए मेरी जीत के लिए प्रार्थना किया है ब्रत किया है। 11 साल की उम्र मे जब मै रमाकान्त आचरेकर सर के स्कूटर पर सवार होकर एक दिन मे दो - दो मैच खेलने एक स्टेडियम से दूसरे स्टेडियम मे जाया करता था ऐसे मे मेरी माँ आप मेरी सेहत, मेरे खान पान का जिस तरह ख्याल रखती थी वह केवल आप ही कर सकती थी कोई और नही, माँ आपका वह रूप सदैव मुझे भावुक करता है आपके प्रति !
भारत के महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर की हर जीत के पीछे खडी होती थी उनकी मां रजनी तेंदुलकर के ब्रत - उपवास की शक्ति ! बेटे सचिन तेंदुलकर की जीत तय करने के लिए मां रजनी तेंदुलकर कभी स्टेडियम जाकर उनका मैच नही देखती थीं बल्कि हर उस दिन सचिन की जीत के लिए ब्रत - उपवास रखती थीं जिस दिन सचिन क्रिकेट खेलने के लिए स्टेडियम की पिच पर उतरते थे !
वर्ष 2014 पूरी दुनिया देख रही थी सचिन की माँ रजनी तेन्दुलकर को जब ह्वील चेयर पर बैठी वह अपने महान बल्लेबाज बेटे को मिले सम्मान भारत रत्न से अभिभूत होते हुए अतीत की यादों में खोते हुए बता रही थी कि जब भी सचिन मैच खेलता था मै उसकी जीत तय करने के लिए उपवास रखती थी और भगवान से प्रार्थना करती थी कि सचिन अच्छा प्रदर्शन करे उन्होने यहाँ कहा था कि सचिन ने जिस तरह अपने आखिरी टेस्ट मैच मे बल्लेबाजी किया है उसे देखते हुए मै कह सकती हूँ वह अभी एक साल और खेल सकता था क्रिकेट पिच पर।” हम सब उस दिन टी०वी पर देख पा रहे थे कि : पुरस्कार समारोह से पहले सचिन ने प्रेसीडेंट बॉक्स में आकर अपनी मां को गले से लगा लिया था यह कहते हुए कि “माँ यह सब खत्म हो जाने के बाद अब मै हर रात हर दिन आपके पास रह पाऊँगा ।'”
दुनिया मे किसी बेटे द्वारा अपनी माँ के त्याग को सम्मानित करता हुआ इससे सुंदर कोई दूसरा शब्द नही हो सकता !
सचिन तेंदुलकर जब अपने 200वें और आखिरी टेस्ट मैच के तीसरे दिन वानखेड़े स्टेडियम मे खेल रहे थे उनकी माँ रजनी जो कभी भी सचिन का मैच देखने स्टेडियम इस वजह से नही गयी क्योकि वह सचिन की जीत के लिए उस दिन उपवास रखती थी ! किन्तु उस दिन वानखेड़े स्टेडियम मे वह मौजूद थीं और जब कैमरा उनकी तरफ घूँमा हम सबने देखा था वह मनोरम
दृश्य जब एक माँ पिच पर खेल रहे अपने बेटे के लिए आँख बन्द करके प्रार्थना कर रही थी और वानखेड़े स्टेडियम मे मौजूद दर्शक एक माँ के इस रूप को देखकर उसके स्वागत मे खड़े होकर ताली बजा रहे थे ! निश्चित रूप से पूरी दुनिया के लिए वह एक बहुत ही भावुक पल था !
वह पल भी बहुत महान पल था दुनिया की हर एक माँ और उसके बेटे के लिए जब सचिन तेंदुलकर ने समर्पित किया था अपना भारत रत्न सम्मान अपनी मां रजनी तेंदुलकर को !
उस दिन टी०वी० पर जब हम सब तो देख रहे थे भारत रत्न लेते हुए सचिन तेंदुलकर को, लेकिन सचिन तेंदुलकर की नजर जिसे देख रही थी वह उनकी माँ रजनी तेंदुलकर थी, जो प्रेसीडेंट बॉक्स मे ह्वील चेयर पर बैठी डबडबाई आँखो से केवल बेटे को देखे जा रही थी इस विश्वास के साथ की बेटा सचिन के लिए किया गया उनका एक - एक त्याग समर्पण सही दिशा मे था और सही समय पर फलिभूत भी हुआ !
सचिन भारत रत्न से नवाजे जाने वाले भारत के पहले खिलाड़ी है ! जितने उम्दा खिलाडी उतने ही आदर्श बेटे शायद इसीलिए सचिन तेंदुलकर ने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न मिलने के बाद यह सम्मान अपनी मां रजनी तेंदुलकर को समर्पित कर दिया था !
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( 5 ) बचपन से लेकर नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने तक अल्बर्ट आइंस्टीन के जीवन मे माँ पौलिन कोच आइंस्टीन का योगदान !!
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बचपन मे 5 वर्ष तक एक भी शब्द बोल सकने मे कमजोर, प्रारम्भिक स्कूली शिक्षा से वंचित हो चुके बेटे को माँ पौलिन कोच आइंस्टीन ने अपने अटूट विश्वास एवम सतत प्रयास से बना दिया विश्व का सबसे तेज दिमाग भौतिक शास्त्री एवम नोबेल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक ! सच ही कहा है किसी ने “ऐ माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी ?” माँ वहाँ भी अपने बच्चो की ढाल अथवा रक्षा कवच बन कर खडी हो जाती है जहाँ ईश्ववर भी असहाय हो जाता है ! जी हाँ माँ किसी वस्तू का नाम नही बल्कि शक्ति के उस पुन्ज का नाम है जिसके आगे अखण्ड ब्रहमाण्ड भी नतमस्तक हो जाता है ! अल्बर्ट आइंस्टीन के जीवन मे उनकी माँ पौलीन कोच आइंस्टीन का योगदान भी कुछ ऐसा ही रहा है यथा अल्बर्ट आइंस्टीन (Albert Einstein ) का जन्म 14 मार्च 1879 को उल्म, वुर्ट्टनबर्ग, जर्मन साम्राज्य मे हुआ था ! जर्मन नागरिक आइंस्टीन बचपन मे नार्मल बच्चा नही थे लगभग 6 वर्ष की उम्र तक आइंस्टीन ने एक भी शब्द नही बोला,जिसकी वजह से घर मे सब बेहद निरास थे ! यहाँ तक की बचपन में 'आइंस्टीन' को डॉक्टर ने भी मानसिक तौर पर विकलांग बच्चा घोषित कर दिया था ! वह अल्बर्ट आइंस्टीन जो दुनिया मे आज फादर ऑफ मॉडर्न फिजिक्स कहे जाते हैं, जब 5 साल के थे तो ठीक से एक शब्द भी नहीं बोल पाते थे, साथ ही उनका दिमाग आम बच्चों की तुलना में ज्यादा बड़ा था। पर माँ के एक अनोखे प्रयोग एवम प्रयास ने बदल दी बालक आइंस्टीन की जिंदगी ! एक बार पांच से छह वर्ष की उम्र के बीच में वह जब बीमार पडे तो उनकी माँ ने उन्हें एक कंपास लाकर दिया, जिसने अल्बर्ट की जिंदगी ही बदल दी और यही पर उनकी माँ पौलिन ने नोटिस किया कि उनके बच्चे मे कुछ तो खास है जो अन्य बच्चो मे सम्भव नही है ! वह अपने आप से ही बुदबुदा रही थी my son Albert is special, my son Albert is special, yes my son Albert is special.
जबकि इसी समय स्कूल के शुरूआती दिनो मे आइंस्टीन पढ़ाई में बेहद कमज़ोर साबित हो रहे थे यहाँ तक कि स्कूल लाइफ में आइंस्टीन को बेवकूफ बच्चों में गिना जाने लगा था। खासकर आइंस्टीन के टीचर उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं करते थे क्योंकि वह गणित और विज्ञान के अलावा हर विषय में फेल हो जाया करते थे ! और टीचर की डांट का भी उन पर कोई असर नहीं पड़ता था। आइंस्टीन के शिक्षकों की राय उनके बारे में बहुत अच्छी न थी। नौबत यह हो गयी थी कि आइंस्टीन के माता पिता को बुलाकर उनके एक टीचर ने स्कूल छोड़ने तक की सलाह दे दी थी क्योंकि उनका मानना था कि आइंस्टीन की कमजोरियों से स्कूल के दूसरे छात्र प्रभावित हो रहे हैं । लंबे समय तक वह अच्छी अंग्रेजी नहीं लिख पाए। उनकी लेखनी में वर्तनी और भाषा की कई खामियां निकलती थीं। उपरोक्त खामियो के चलते आइंस्टीन को परिवार स्कूल और पडोस मे बिल्कुल पसन्द नही किया जाता था सब उन पर ताने कसते थे पर आइंस्टीन की माँ ने कभी हार नही माना वह सदैव अपने बेटे की हौसलाअफजाई करतीं थी इस विश्वास के साथ की एक दिन उनका बेटा कामयाबी की वह इबारत लिखेगा जिसके सामने दुनिया का हर सम्मान छोटा पड जाएगा जो मै अपने बेटे मे देख पा रही हूँ शायद और कोई उसे नही देख पा रहा है ! यह सच है दोस्तो जिस बच्चे के चरित्र, भविष्य, एवम सफलता, मे किसी माँ ने पूर्ण विश्वास के साथ कदमताल करते हुए सहयोग कर दिया हो फिर उस बच्चे को वैश्विक कीर्तिमान स्थापित करने से दुनिया की कोई भी ताकत रोक नही सकती आइंस्टीन के साथ भी यही हुआ ! जटिल परिस्थिति मे जब सबने हार मान लिया था आइंस्टीन की माँ पौलिन कोच आइंस्टीन ने न हार मानी थी, ना ही उम्मीद ही खोई वह हर प्रयास करती रही जिससे बेटा अल्बर्ट नॉर्मल बच्चों की तरह बातचीत कर सके स्कूल जा सके पढ़ लिख सके । सापेक्षता और विशिष्ट आपेक्षिकता पर जो कार्य आइंस्टीन ने किया वह आज तक किसी और ने नही किया भौतिकी के क्षेत्र में किए गए कार्य के लिए जब उन्हे भौतिकी का नोबेल पुरस्कार वर्ष 1921 मे मिला तो आइंस्टीन ने उसे अपनी माँ पौलिन कोच के त्याग का परिणाम कहा था ! हम सबने अपनी 9th 10th की क्लास मे पढ़ चुके हैं कि आइंस्टीन ने सामान्य आपेक्षिकता 1905, और सामान्य आपेक्षिकता के सिद्धांत 1916, सहित भौतिकी के क्षेत्र मे कई योगदान दिया है ! उनके अन्य योगदानों में सापेक्ष ब्रह्मांड, केशिकीय गति, आदि प्ररमुख है ! एक वैश्विक सर्वेक्षण के अनुसार आइंस्टीन विश्व के सार्वकालिक महानतम वैज्ञानिक माने गए है। आइंस्टीन ने 300 से अधिक वैज्ञानिक शोध-पत्रों का प्रकाशन किया ! आइंस्टीन की बौद्धिक उपलब्धियों और अपूर्वता ने "आइंस्टीन" शब्द को ही विश्व मे "बुद्धिमानता" का पर्याय बना दिया ! यह सब केवल उनकी माँ पौलिन कोच के अटूट विश्वास से ही सम्भव हो सका था !
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"माँ तेरा आँचल जो हमेशा साथ रहता है"
मातृदिवस श्रखंला के अंतर्गत माँ को समर्पित लेख ।
द्वारा : @Vibhanshu Joshi SmileyLive एवम पत्रकार भारद्वाज अर्चिता !
क्रमश:
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