तीन तरह के दबाव के चलते बोर्ड Exam मे असफल विद्यार्थी आत्महत्या के लिए हो जाता है मजबूर !
विद्यार्थियों पर पड़ने वाला तीन तरह का दबाव उन्हें आत्महत्या की तरफ ले जा रहा है।
(१)अगर सफल नहीं हुए तो मित्र मंडली क्या कहेगी,
(२)अगर सफल अभिभावक क्या सोचेंगे और करियर तो बीच में ही रह गया। इस बात से पैदा होने वाला तनाव रोजाना औसतन 26 विद्यार्थियों की जान ले रहा है। अधिकांश राज्यों में ऐसे मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। साल 2016 की बात करें तो 365 दिन में 9,474 छात्र-छात्राओं ने आत्महत्या कर ली थी। उसके बाद भी यह संख्या कम नहीं हुई, बल्कि बढ़ती ही जा रही है। पिछले साल भी देश में करीब 10 हजार विद्यार्थी असहनीय दबाव और डिप्रेशन के चलते दुनिया को अलविदा कह गए।
16 से 18 साल वाले विद्यार्थी ज्यादा दबाव में
विभिन्न तरह के शोध और मनोचिकित्सकों की मानें तो तीन तरह का दबाव, जो उनके आसपास ही रहता है, उन्हें आत्महत्या के लिए मजबूर करता है। धीरे-धीरे यह दबाव डिप्रेशन में बदलता जाता है। इस तरह के लक्ष्ण ज्यादातर 16 से 18 वर्ष और उससे उपर की आयु वाले विद्यार्थियों में देखे गए हैं। इनमें स्कूल-कालेज के छात्र और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटे प्रतिभागी शामिल हैं। राजस्थान के कोटा में पीएमटी (मेडिकल परीक्षा) की तैयारी करने वाले कई छात्र-छात्राओं द्वारा कथित तौर से आत्महत्या किए जाने के पीछे बहुत हद तक ये तीन कारण देखने को मिले हैं।
इतने कठोर कदम उठाने की आखिर क्या है वजह
मित्र मंडली, करियर और अभिभावक, यह तीन तरह का दबाव, जो एक साथ चलता रहता है, हर किसी को नजर नहीं आता। इससे पीड़ित विद्यार्थी जब स्कूल-कालेज में होता है तो वह अंदर ही अंदर इस दबाव को बढ़ाता जाता है। इसके बाद अभिभावकों की बारी आती है। हालांकि सभी अभिभावक इस तरह का दबाव नहीं डालते हैं कि अगर बच्चा सफल नहीं हुआ तो सब खत्म हो जाएगा। वे अपने बच्चों को प्रोत्साहन देते हैं।
लेकिन कई बार बच्चों को किसी तरह से जैसे, पड़ोसी द्वारा, रिश्तेदार से या अपने किसी दोस्त के मां-बाप से बहुत कुछ पता चल जाता है। उसके मम्मी-पापा उसे लेकर क्या सोचते हैं। उसकी पढ़ाई लिखाई के लिए लोन लिया है या जमीन बेच दी है, जैसी बातें जब उसे मालूम पड़ती हैं तो वह दबाव में आ जाता है। इसके बाद वह पहले से कहीं ज्यादा मेहनत करने लगता है, लेकिन वही दबाव उसे घेरे रहता है। नतीजा, वह दबाव बाद में उसे आत्महत्या तक पहुँचा देता है। तीसरा, करियर में लक्षित सफलता नहीं मिलती है तो भी विद्यार्थी राह भटक जाते हैं।
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डिप्रेशन को कर दिया जाता है नजरअंदाज
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प्रतीकात्मक तस्वीर
डिप्रेशन का पहला पायदान, जिसे कर दिया जाता है नजरअंदाज
दिल्ली स्थित इबहास सेंटर के मनोचिकित्सक एवं असोसिएट प्रोफेसर ओमप्रकाश का कहना है कि विद्यार्थियों पर पड़ने वाले इस दबाव को सभी नजरअंदाज कर देते हैं। परिवार और स्कूल प्रबंधन भी इसकी भयावह स्थिति को नहीं समझ पाता। विद्यार्थी खुद को हार का चिह्न मानने लगता है। उसे खुद मालूम होता है, लेकिन वह इस धारणा के साथ आगे बढ़ता रहता है कि न तो उसे हार माननी है और न ही इलाज लेना है। इस बाबत वह खुद किसी को कुछ बताना भी नहीं चाहता। ये सभी स्थितियां धीरे धीरे उसे डिप्रेशन के उच्च स्तर तक ले जाती हैं।
सभी को अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा
डॉ. ओमप्रकाश के मुताबिक, विद्यार्थियों को इस स्थिति से बचाने के लिए सभी को अपने व्यवहार मे बदलाव लाना होगा। खासतौर पर मां-बाप को इस दिशा में गंभीरता से सोचना पड़ेगा। अभिभावक अपने बच्चो के लगातार संपर्क में रहें। उन्हें हर तरीके से प्रोत्साहन दें। दबाव या डिप्रेशन का कोई भी लक्ष्ण दिखे तो बिना कोई देरी किए डॉक्टर से संपर्क करें। ऐसे मामलों में काउंसलिंग बहुत काम आती है। अगर स्थिति बिगड़ गई है तो आसानी से दवाओं के द्वारा उसका इलाज किया जा सकता है। डॉ. ओमप्रकाश का मानना है कि ऐसे केस सामने आने का मतलब यह नहीं है किे अभिभावक अपने बच्चों को पूरी छूट दे दें, उनके साथ रोका टोकी न करें। ऐसा नहीं होना चाहिए। देखने में आया है कि बहुत से बच्चे मां-बाप की डांट फटकार के बिना गलत राह पर चले जाते हैं, इसलिए उन पर मां-बाप का सकारात्मक दबाव भी जरूरी है।
विद्यार्थियों की खुदकुशी के मामले में टॉप 10 राज्य
राज्यसाल 2014साल 2015साल 2016बिहार7962171छत्तीसगढ़416730633गुजरात367469556झारखंड142138233मध्यप्रदेश645625838महाराष्ट्र119112301350ओडिशा325330390राजस्थान200197221उत्तर प्रदेश252229263पश्चिम बंगाल7096761147
नोट: इसके अलावा तमिलनाडू में 2016 के दौरान ऐसे 981 मामल
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