वाकई यह पढ़ने लायक है. 👇👇

सीबीएसई बोर्ड की बारहवीं की परीक्षा का रिजल्ट आया है। 2 दीदी  ने 500 में से 499 अंक हासिल किये हैं। दीदी लोग  बधाई के पात्र हैं। मौजूदा शिक्षा व्यवस्था रुलाई की पात्र है। पेपर सेट करने वाले दुहाई के पात्र हैं  और कॉपियाँ जाँचने वाले कुटाई के पात्र हैं।

जिस बोर्ड के अंतर्गत पढ़ रहे बच्चे (हम भी उसी बोर्ड से है)  500 में से 499 अंक ले आएं उस बोर्ड के मेम्बरान को साइकिल के नीचे कूद कर जान दे देनी चाहिए। जिस पेपर में बच्चों के 100 में से 100 अंक आएँ, उसकी पेपर सेटर समिति के हर सदस्य को मुँह खोलकर अंदर थोड़ा थोड़ा काला हिट स्प्रे करना चाहिए। चुल्लू भर पानी भी इनके लिए ज्यादा होगा। ये अंक बच्चों की प्रतिभा की निशानी कत्तई नहीं हैं, ये एक पूरी शिक्षा व्यवस्था की दिमागी रूप से दिवालिया हो जाने की निशानी है। और कॉपी जांचने वाले महानुभावों के कहने ही क्या? ये अंक कुबेर जन्म नहीं अवतार लेते हैं।

हिंदी के प्रश्नपत्र  में 4 काव्यांशों के काव्य सौन्दर्य पूछे गए थे। इन चार कवियों की तस्वीरों पर फिर से हार चढ़ा देना चाहिए और उनकी रचनाओं को सिलेबस से निकालकर बाहर कर देना चाहिए, कि भैया आपकी रचना की अंतिम समीक्षा आ चुकी है और उसके दस में से दस नंबर देकर अन्यतम होने की पुष्टि की जा चुकी है. आपकी रचना की ओवरहालिंग हो चुकी है, उससे नए विचार उठने की कोई संभावना अब बची नहीं है. आचार्य महोदय के बैठने के लिए नामवर सिंह जी की कुर्सी लाई जानी चाहिए. अंग्रेजी पेपर में एक लेटर टू द एडिटर लिखना था जिसमें महिलाओं की समसामयिक समस्याएँ और उसके सुधार पर अपने विचार लिखने थे. महिला आयोग की अध्यक्ष  को अपनी कुर्सी तुरंत उन अध्यापिका महोदया के लिए छोड़ देनी चाहिए जिन्होंने पूरे अंक देकर ये पुष्टि कर दी कि महिलाओं की सभी समस्याएं समझी जा चुकी हैं और उनकी स्थिति सुधार के अंतिम तरीके आ चुके हैं. साइंस/ मैथ में सैकड़ा मारने वाले छात्रों के दल को उनके शिक्षक महोदय और कापी जाँचने वाले अंगराज कर्ण के नेतृत्व में PISA (प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टूडेंट असेसमेंट) (अंतर्राष्ट्रीय छात्र मूल्यांकन कार्यक्रम) में भेज देना चाहिए, जहाँ से आखिरी भारतीय दस्ता 2009 में भाग आया था और वापस तबसे गया ही नहीं. भारत के ये शतकवीर पूरे विश्व में नीचे से दूसरे स्थान पे आए थे. पर दोष इन मासूमों का नहीं है, दोष इन कमबुद्धि अध्यापकों, रट्टोत्पादी आंकलन व्यवस्था का है.

इसी आंकलन व्यवस्था से निकले रट्टूबसंत कोचिंगो की लिफ्ट से आइआइटी/एम्स के माले पे जाएंगे. फिर सफलता की लिफ्ट चढ़कर मल्टीनेशनल कंपनियों में जाएंगे. और फिर विश्व की मल्टीनेशनल कंपनियां कहेंगी की भारतीय छात्रों की एम्प्लोयाबिलिटी ही नहीं है. हमें इनकी फिर से ट्रेनिंग करानी पड़ती है. अरे कैसे एम्प्लोयाबिलिटी नहीं है मियाँ? मंटूआ के प्रैक्टिकल में 30 में 30 नंबर आये थे इंटर में. गज़ब बात करते हैं आप भी। और जब एप्पल का कोफाउंडर कह देता है कि ‘भारत के छात्रों में रचनात्मकता नहीं है’ आप फनफना जाते हैं। आपका फनफनाना जायज है। कोई आपके गुल्लुओं को ऐसा कैसे कह सकता है?  तो आप मग्गूदाई  भारतीय शिक्षा व्यवस्था के दिए इन शतकधारी अण्डों को सेइये, दुलराइये, इनके साथ फोटो खिंचाईये। उनकी मार्कशीट को व्हाट्सएप्प का स्टेटस बनाइये।

सुना है 499 वाली एक दिदीया परेशान है कि उसका 1 नंबर इसलिए कम रह गया क्यूँकी वो सोशल मीडिया पर अपना समय देती थी। उसे पूरी तरह से एंटीसोशल ना बन पाने का दुःख है। मुझे उससे सहानुभूति है। उसके रिश्तेदारों को उसे तुरंत एक आइसक्रीम देनी चाहिए और सर पर हाथ फेरते हुवे कहना चाहिए, “बेटा सब ठीक हो जायेगा”। अंततः एक बार फिर से 12th के परिणामों की बहुत बहुत बधाई। मैं इन शतकवीरों पर गुलाब की पंखुड़ियाँ और सीबीएसई पर बाकी का गमला फेंकना चाहता हूँ।

Shashank Bhartiya जी की वाल से साभार।

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