यहाँ तक की बचपन में 'आइंस्टीन' को डॉक्टर भी कहते थे मानसिक तौर पर विकलांग बच्चा !
अल्बर्ट आइंस्टीन फादर ऑफ मॉडर्न फिजिक्स कहे जाते हैं, लेकिन कभी ऐसा समय भी था जब आइंस्टीन को डॉक्टर ने मानसिक तौर पर विकलांग घोषित कर दिया था।
सामान्य से बड़ा दिमाग अल्बर्ट आइंस्टीन जब 5 साल के थे तो वह ठीक से बोल भी नहीं पाते थे, साथ ही उनका दिमाग आम बच्चों की तुलना में ज्यादा बड़ा था। डॉक्टर्स ने उन्हें मानसिक तौर पर विकलांग घोषित कर दिया था। कंपास ने बदल दी जिंदगी एक बार पांच से छह वर्ष की उम्र में वह बीमार पडे तो उनकी माँ ने उन्हें एक कंपास लाकर दिया, जिसने अल्बर्ट की जिंदगी बदल दी।
स्कूल के शुरूआती दिनो मे आइंस्टीन पढ़ाई में बेहद कमज़ोर थे यहाँ तक कि स्कूल लाइफ में आइंस्टीन को बेवकूफ बच्चों में गिना जाता था। खासकर आइंस्टीन के टीचर उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं करते थे क्योंकि वह गणित और विज्ञान के अलावा हर विषय में फेल हो जाया करते थे ! और टीचर की डांट का भी उन पर कोई असर नहीं पड़ता था। आइंस्टीन के शिक्षकों की राय उनके बारे में बहुत अच्छी न थी। नौबत यह हो गयी थी कि आइंस्टीन को उनके एक टीचर ने स्कूल छोड़ने तक की सलाह दे दी थी क्योंकि उनका मानना था कि आइंस्टीन की कमजोरियों से स्कूल के दूसरे छात्र प्रभावित होते हैं । लंबे समय तक वह अच्छी अंग्रेजी नहीं लिख पाए। उनकी लेखनी में वर्तनी और भाषा की कई खामियां निकलती थीं। उपरोक्त खामियो के चलते आइंस्टीन को परिवार स्कूल और पडोस मे बिल्कुल पसन्द नही किया जाता था सब उन पर ताने कसते थे पर आइंस्टीन की माँ अपने बेटे की हौसलाअफजाई करतीं थी इस विश्वास के साथ की एक दिन उनका बेटा कामयाबी की वह इबारत लिखेगा जिसके सामने दुनिया का हर सम्मान छोटा पड जाएगा और यह सच है जिस बच्चे के चरित्र भविष्य एवम सफलता मे किसी माँ ने पूर्ण विश्वास के साथ कदमताल करते हुए सहयोग किया उस बच्चे ने सदैव वैश्विक कीर्तिमान स्थापित किया है
आइंस्टीन के साथ भी यही हुआ ।

Comments

Popular posts from this blog

“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता