इतिहास के पन्नो मे रची बसी विश्व की वह 11 माएँ जिन्होने परिवेश - परिस्थिति के विरूद्ध जा कर अपने पुत्रो को पुत्रियो को सदी का महान चरित्र बना दिया ! 

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पुत्र जन्म के साथ ही पति द्वारा त्यागी गयी वह महान माँ जीजाबाई : जिन्होने अपने पुत्र छत्रपति शिवाजी महाराज को बचपन मे हाथो की अंगुलियां पकड़कर चलना सिखाया और समय आने पर उन्ही हाथो मे तलवार पकडा कर तलवार बाजी मे पारँगत किया, एवम गोरिल्ला/छपेमार युद्ध के गुर बता कर सदी का महान अजेय योद्धा बना दिया ! 

जी हां मै बात कर रही हूँ छत्रपति शिवाजी महाराज की महान मां जीजाबाई की इतिहास के पन्नो मे झाँकने पर पता चलता हैं कि माता जीजाबाई शिवाजी के लिए केवल माता ही नहीं बल्कि उनकी सच्ची मित्र शुभचिन्तक और मार्गदर्शक भी थीं ! माता जीजाबाई का सारा जीवन केवल साहस और त्याग से भरा हुआ है ! उन्होंने जीवन भर कठिनाइयों और विपरीत परिस्थितियों का सामना किया, किन्तु कभी धैर्य और आत्म शक्ति नही खोया सदैव ‘पुत्र ‘शिवाजी’ को राष्ट्र, समाज, जन कल्याण, के प्रति उदार बने रहने की सीख देते हुए युग नायक एवम महान योद्धा बनाने मे लगी रही ! 

जीजाबाई का जन्म 12 जनवरी 1598 में बुलढाणा के जिले सिंदखेद के निकट ‘ हुआ था ! बहुत कम उम्र मे उनका विवाह ‘शहाजी भोसले’ के साथ कर दिया गया ! माता जीजाबाई के आठ बच्चों थे जिनमें से 6 बेटियां और 2 बेटे थे जिनमे से एक पुत्र शिवाजी महाराज भी थे ! माता जीजीबाई देखने में जितनी सुंदर थीं… उतनी ही बुद्धिमान भी थी तलवार बाजी, घुणसवारी, एवम छापामार युद्ध मे महारत प्राप्त थी उन्हे ! माता जीजाबाई के जीवन की सबसे बडी त्रायदी यह हुई की बालक शिवाजी के जन्म के साथ ही पति शहाजी भोसले ने उन्हें त्याग दिया था ! वजह तुकाबाई के साथ शहाजी भोसले का दूसरा विवाह कर लेना था ! पर इस परिस्थिति मे भी माता ने हिम्मत से काम लिया अपनी दूरदर्शी सूझ बूझ का परिचय देते हुए वह शिवाजी के लिए बनीं प्रेरणा, एक सफल माता के साथ साथ वह एक सक्षम योद्धा और प्रशासक के रूप में जानी जाती थीं शौर्यता उनके रगों में भरी हुई थी एक माँ के रूप मे वह शिवाजी को हमेशा दुनिया भर के तमाम नायको की वीरता के किस्से सुनाकर उन्हें आदर्श नायक बनने हेतु प्रेरित करती रहती थीं ! एक गुरू के रूप मे उन्होने युद्ध की हर विधा मे बेटे शिवा को निपुण बनाया ! जब भी शिवाजी मुश्किल में आते, माता  जीजाबाई उनकी हर तरह की मदद के लिए खड़ी नज़र आती । पिता के बिना पुत्र को ( बच्चो को ) बेहतर परवरिस देकर बड़ा करना एक माँ के लिए जितना मुश्किल काम आज की माँ के लिए है उससे कही मुश्किल काम था उस दौर मे । अपने लिए खडी इस बड़ी चुनौती का डँटकर सामना करते हुए माता जीजाबाई ने बखूबी अपना दायित्व निभाया ! समर्थ गुरु रामदास के साथ मिलकर शिवाजी के पालन-पोषण में खुद को पूरी तरह झोंक दिया था ! शिवाजी को शौर्यता का पाठ पढ़ाते वक्त जीजाबाई का एक किस्सा खासा मशहूर है ! जब शिवाजी एक योद्धा के रुप में लय पकड रहे थे, आकार ले रहे थे, तब जीजाबाई ने एक दिन उन्हें अपने पास बुलाया और कहा, बेटा तुम्हें सिंहगढ़ के ऊपर फहराते हुए विदेशी झंडे को किसी भी तरह से उतार फेंकना होगा माता यहीं नहीं रूकीं… आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कि अगर तुम ऐसा करने में सफल नहीं रहे तुम तो मै तुम्हे अपना बेटा नहीं समझूंगीं ! माँ की बात सुनकर शिवाजी ने कहा, मां एक तो मुगलों की सेना काफी बड़ी है दूसरे हम अभी मजबूत स्थिति में नहीं आ पाए हैं ऐसे में उन पर इस समय विजय पाना अत्यंत कठिन कार्य है ! शिवाजी के यह शब्द माता को बाण के समान आहत किए ! नाराज होकर उन्होंने क्रोध भरे सुर में कहा शिवा तुम अपने दोनो हाथों में चूडियां पहन कर घर पर ही रहो ! मैं खुद ही सिंहगढ पर आक्रमण करूंगी और उस विदेशी झंडे को उतार कर फेंक दूंगी ! मां का यह जवाब शिवाजी को हैरान कर देने वाला था, शिवा जी अत्यन्त लज्जीत हो चुके थे उन्होंने माफी मांगते हुए मां की भावनाओं का सम्मान किया और तत्काल नानाजी को बुलवा कर आक्रमण की तैयारी आरम्भ करने को कहा और योजनाबद्ध तरीके से सिंहगढ़ पर आक्रमण कर शिवाजी ने अपने साथ साथ अपने मराठा कुल के नाम बड़ी जीत दर्ज किया ! 

कहना सही होगा की इस दुनिया मे कोई भी बच्चा वही बनता है जो उसकी माँ उसे बनाना चाहती है ! विज्ञान मे वर्णित अनुवंशिकी का नियम भी इसे सत्ययापित करताहै अनुवंशिकी गुणो के आधार पर प्राकृतिक रूप से माँ के 75 प्रतिशत गुण बच्चे को मिल जाते है ! 

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता