महात्मा गाँधी एवम नाथूराम गोडसे
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नाथू राम जैसे चरित्र की मै धूर विरोधी हूँ अर्ची और पूरी तरह निषेध मानती हूं ऐसे लोगो को एक सभ्य समाज एवम उदार लोकतन्त्र के लिए ! पर कुछ यक्ष प्रश्न आज पूरी दुनिया के सामने रखना चाहती हूँ यथा :
१: आखिर क्यों होता है किसी समाज में नाथूराम गोडसे जैसे चरित्र का जन्म ?
२: 90 साल के अथक प्रयास एवम विभिन्न मानक पर लाखो बलिदान के बाद मिली आजादी के आखिर दो टुकडे क्यों हुए ??
३ : किस सत्ता लोभी की शातिर चाल ने छीन लिए हमारे महामानव बापू के हाथो से उनके सत्य अहिंसा के अचूक हथियार ?
४: 1917 मे चम्पारन के निलहा साहबो के बिरूद्ध जो मोहन दास करम चन्द गाँधी नही डिगे सत्याग्रह करने से वह गँधी क्यो भिष्म पितामह की तरह तब मौन साध लिए जब लोकतन्त्र अभिमन्यु की तरह छलित व्यूह रचना मे घेर कर मार दिया गया और देश के सीने पर खीच दी गयी एक ऐसी रेखा जिसने विश्व भर की मानवता को शर्मसार कर दिया ???
५: इस देश मे जब 23 साल, 25 साल, 19 साल, 17 साल, के हमारे निर्दोष क्रान्तिकारियो पर केस चलाकर उन्हे फाँसी दी गयी, 1947 मे 90 वर्ष की आजादी की चरम लडाई एवम लाखो शहीदो के बलिदान के बाद अखण्ड भारत के सीने पर जो रेखा खींच कर 2 लाख से 10 लाख के बीच मे निर्दोश आम जन मानस पर बरपाई गई हिंसा मे आम जन मानस की हत्या हुई, एवम जो 1.2 करोड़ लोग विस्थापित होने पर मजबूर हुए इन लोगो की दूर्दशा पर क्यो रह गए थे हमारे बापू गाँधी मौन ??
गाँधी का योगदान इतना बडा है कि कोई नाथूराम गोडसे उन्हे मार कर कभी देश भक्त नही कहला सकता लेकिन यह भी सत्य है कि जब दुनिया को राह दिखाने वाला व्यक्ति विशेष भी किसी व्यक्ति विशेष के आगे अपने न्याय का हथियार डालकर हतास खडा हो जाता है तब उसके विरूद्ध जन्म लेती है उग्रता और इस उग्रता का ही प्रतिफल होता है इस विश्व मे किसी भी नाथूराम गोडसे का चरित्र, हम सब इतना सच तो समझ ही सकते है कि : नाथू राम गोडसे कोई एक व्यक्ति विशेष का चेहरा मात्र नही है बल्कि गुलामी की लम्बी दासता के बाद मिली विजय के अन्तिम पल मे किसी सत्ता लोलुप व्यक्ति विशेष के हाथो अपने सत्य अहिंसा का हथियार सौप देने वाले किसी गाँधी की कोख से ही जन्मे चरम असन्तोष, चरम रूष्टता का जन्म है, उद्दाहरण है, पैदाईस है !
नैतिकता के साध्य और साधन के मायने तब गौड हो जाते है जब 16 वर्ष के अकेले निहत्थे अभिमन्यु को छलित व्यूह रचना मे तब घेर कर हता जाता है जब भिष्म पितामह और गुरु द्रोणाचार्य की नीतियाँ भी मूँक हो कौरव के साथ खडी गवाह बन जाती है किसी निर्दोष अभिमन्यु की हत्या का, भारत - पाकिस्तान के बटवारे का और 2 लाख से 10 लाख के बीच निर्दोष जनमानस के अकारण कत्लेआम का !
कहना गलत न होगा की 1947 के बाद कुछ एक लोगो द्वारा भिष्म पितामह, गुरू द्रोणाचार्य, का ही प्रतिरूप बना दिए गए थे हमारे बापू ! आजादी के अन्तिम चरण मे सत्य - अहिंसा के दम पर विश्वविजयी हमारे गाँधी बापू स्वार्थी सत्तालोलुप कुछ एक लोगो के आगे हार गए थे !
बापू मेरे लिए आज भी वह दर्पण है जिसमे मै तब-तब झाँकती हूँ अर्ची जब-जब थकने लगती हूँ जीवन की आपा-धापी से ! मन कहता है “पार्थ धैर्य रखिए हर युग मे कौरव हारेंगे साथ ही पाप पर मौन साध लेने वाले आजीवन महाधर्म ध्वज के वाहक भिष्म पितामह एवम गुरू द्रोणाचार्य जैसे चरित्र भी न्याय पर मौन साध लेने हेतु “सर” से बिध कर “सरसय्या” पर पडने को बाध्य होंगे !
युग कोई भी हो ! रूप भले ही बदल जाए !, पर ईश के न्याय का डण्डा सबके लिए समान होता है !
: स्त्री के चरित्र का हरण होते हुए,
: निर्दोष जनता का वध होते हुए,
: माँ की कोख को बँटते हुए,
: राष्ट्र के निर्माण पर विनाश की कालिमा लगते हुए,
देख कर भी जो वीर पुरूष, जो योगी, जो धर्म वाहक, मौन साध लेता है उसके सारे धर्म स्वयम ही नष्ट हो जाते है, चाहे वह भिष्म पितामह हो, चाहे गुरूद्रोण, चाहे कोई अन्य उनका अनुयायी, ईश्वर ऐसे चरित्र को कभी अपनी
शरण नही देता ! गीता मे भी ऐसा ही श्री हरि द्वारा कहा गया है और हमे इसी सन्देश का वाहक भी बनना है दुनिया मे !
आखिर मे यही कह कर अपनी बात समाप्त करती हूँ कि : चाहे महात्मा गाँधी हों अथवा अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन दोनों के कार्य इतने महान हैं की उन्हे मारने वाले उनके हत्यारे John wilkes booth “जॉन विल्क्स बूथ” राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का हत्यारा,
नाथू राम गोडसे : महात्मा गाँधी का हत्यारा,
दोनों कभी किसी भी सूरत में देश भक्त नहीं हो सकते, ना ही मानवता के पक्षधर ही हो सकते है ! पर इस बात से इन्कार भी नही किया जा सकता कि हिंसा के प्रतीक
यह दोनों चरित्र नाथूराम गोडसे एवम John wilkes booth कहीं न कहीं उस महान अहिंसावादी सोच मे आई तत्कालिक सत्ता लोभ की मिलावट की कोख में पले एवं जन्मे असंतोष के प्रतीक है ! जब जब कोई गाँधी कोई लिंकन किसी सत्तालोलुप की साजिश का शिकार होगा तब तब ऐसे असामाजिक चरित्र उसकी कोंख से जन्म लेते रहेंगे और मानवता पर यक्ष प्रश्न खडा करते रहेंगे !
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
स्तम्भकार/पत्रकार/लेखिका/
समीक्षक/स्वतंत्र टिप्पणीकार
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