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छोटे कपड़ों के मानक पर कामुकता,बालात्कार, एसिड अटैक, का बहाना؛ कितना सच कितना झूठ ?
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मनोरोगी, तुच्छ सोच रोगी, विक्षिप्त, कामुक, psycho,
पुरुष, रेपिस्ट,अगर छोटे कपड़ेे पहनने वाली लड़कियों को ही देखकर कामुकता का, वासना का शिकार होते हैं और लड़कियों का रेप करते हैं तो फिर सवाल यह उठता है कि :
बुर्के मे कैद ,
सिर से पांव तक साड़ी मे ढकी - तुपी,
घर की चहारदीवारी में दुबकी - छिपी,
आंगन मे झाडू लगाती,
घर की सिढी चढती,
किचेन में रोटी सेकती ,
बालकनी की रस्सी पर धुले कपड़े डालतीे-सुखाती,
सिनेमा हॉल में सिनेमा देखती,
पार्क में jogging ( जॉगिंग ) करती, टहलती,
कालेज यूनिफार्म पहनीे पीठ पर कालेज बैग लादी,
बस, गाड़ी, हवाई जहाज, मेट्रो में सफर करती,
माथ ढके मंदिर की देहरी पर पैर धरती ,
खेत - खलिहान में काम करती, मजदूरी करती गरीब बेटी,
कानून की मोटी - मोटी किताबें पढ़ कर न्यायालय में औरो को न्याय दिलाती न्याय की, फर्ज की प्रतीक काली कोट धारण करने वाली वकील, एवम जज,
दफ्तर मे बैठी क्लास एवन अधिकारी,
स्कूल कालेज मे सिविलाइज्ड इंडियन ड्रेस पहनकर पढाती रीडर / शिक्षिका, आदि को देखकर क्यों कामवासना जाग जाती है पुरुषो में ??
हर तरह से बडे कपडे मे ढकी - तुपी - छुपी इन उपरोक्त लड़कियों,महिलाओं,बेटियो का क्यो होता है बालात्कार ? क्यो कामुक प्रताड़ना का शिकार बनाया जाता है इन्हे .??
संकीर्ण विमार मानसिकता, भ्रष्ट सोच, चारित्रिक क्षय, एवम दरिन्दगी बरपाती कामुकता को छोटे कपड़ो की दुहाई देकर खुला छोड़ देना ही सबसे बड़ी लापरवाही है, जघन्य उदासिनता है !
मां के गर्भ से लगायत घर की देहरी, मंदिर - मस्जिद - मदरसा - मक़तब - विद्यालय, कदम-कदम पर हर तरफ एक लड़की का, एक महिला का, हमारी बेटियो का अस्तित्व आज अशुरक्षित है, उसका बालात् बालात्कार हो रहा है, उसपर एसिड अटैक किया जा रहा है, यहाँ तक की अब सोशल मीडिया के कुछ श्रोतों पर हमारी बहन बेटियों की फर्जी आई०डी जनरेट करके उनकी तस्वीर के साथ गलत प्रयोग भी किया जा रहा है जो कि अपने आप मे बालात्कार जितना ही जघन्य अपराध है !
मै पूछना चाहती हूँ आखिर इन बालात् बालात्कार का वास्तविक दोषी कौन है और उसको कानून का कोई भय क्यो नही है ???
पुरूष के परफ्यूम, सेविंग क्रीम, अण्डर गारमेंट्स, बाईक, साबुन, तेल, हेयर कलर, जूते मोजे तक के लिए बिकनी पहनी अर्धनग्न लडकियों माडलो को विज्ञापन में उतारना क्यों जरूरी होता है ??
पुरूषों की आम बात - चित में भी हमारी मां, बहन और बेटियों को सम्बोधित करके अपमान जनक गाली क्यों दी जाती है ?
क्यो इस्तेमाल की जाती है आधी आबादी के प्रति स्तरहीन बोल चाल की भाषा .????
मेरी सोच के हिसाब से तो अर्चिता किसी रेपिस्ट की, बेगुनाह बेटियो पर एसिड अटैक करने वालो की कोई जाति, कोई धर्म, कोई पार्टी, कोई रीति - नीति ही नही होती, एक रेपिस्ट؛ केवल रेपिस्ट होता है, एसिड अटैक करने वाला राक्षस चरित्र चेहरा केवल असामाजिक होता है ! अत: वह चाहे विश्व के किसी भी कोने से सम्बंधित हो किसी भी जाति - धर्म से हो उसकी सजा केवल फांसी ही होनी चाहिए इससे कमतर कोई और सजा होनी ही नही चाहिए उसके लिए वह भी बिना विलम्ब के !
जब तक ऐसा होगा नही भारत लगायत विश्व के किसी भी देश में बेगुनाह लड़कियों, बेगुनाह महिलाओं, बेगुनाह बेटियों की स्थायी सुरक्षा तय नही की जा सकती ।
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
स्तम्भकार/पत्रकार/लेखिका/
समीक्षक/स्वतंत्र टिप्पणीकार
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