राम राज बैठे त्रैलोका। हरषित भए गए सब सोका।।बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई।।दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।।अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा।।नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना।।सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी। सब कृतग्य नहिं कपट सयानी।।राम राज नभगेस सुनु सचराचर जग माहिं।काल कर्म सुभाव गुन कृत दुख काहुहि नाहिं।।
विश्वामित्र एवम वशिष्ठ जी जैसे सन्त सिरोमणि जिनके राजनीतिक गुरू और मन्त्री रहे है उनके देश मे सन्त का राजनीति मे आना गलत कार्य कैसे हो सकता है
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