लेनिन V/S शहीद भगत सिंह
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अरे भईए शांत रहो भगत सिंह के नाम के साथ लेनिन के नाम की पट्टी चिपकाना एक मिथ्या दुस्प्रचार भर है और कुछ नही, कल से बहुत हल्ला - गुल्ला मचा रहे हो आप सब शांत होओ पहले, एकदम शांत होओ ,
ऊं शांति: शांति: शांति: शांति: ऊं शांति:
हां तो अब आईए पाठकों चलते भगत दा के चरित्र को नापने भारतीयता और राष्ट्रीयता के मानक पर :क्या आप सबको पता है : 
"भगत सिंह का परिवार आर्य समाजी था भगत सिंह अपने पितामह से प्रभावित थे उन्होनें अपने आपको जिस पत्र में नास्तिक कहा वह पत्र भारतीय वैदिककाल की "अहं राष्ट्री" वाली राष्ट्र सर्वोपरि समाजवादी व्यवस्था का एक सुंदर काल्पनिक आईना है । भगत सिंह ने विश्व के एक हजार विचारों विचारधारा एवम क्रांतिकारी नायको को पढ़ा था उनका किसी ने कहीं उल्लेख नही किया । फांसी से पहले पठ्ठे के हाथ में लेनिन की जीवनी की किताब क्या आ गई नेहरु की टुकड़ी ने तो उसे लेनिन का चेला ही घोषित कर दिया । आप लोग सिरदर्दी ना पालें भगत दा हां अपने पहले केसरिया प्यार भगत दा पर भारद्वाज अर्चिता एक किताब लेकर बहुत जल्द आ रही है मेरी किताब बताएगी 23 साल का वह छबिला, बांका, मां भारती का लाल भगत सिंह सच में कौन था किसका फालोअर था ....????
4 साल की उम्र से 23 साल की उम्र तक किसने उसमें क्रान्ति बोई .......दो टुकड़ों में बंटी उस वक़्त की कांग्रेस में गरम दल के मुखिया लाला लाजपत राय की फिरंगियों द्वारा लाठियों से पीट कर की गई हत्या का क्या रोल था भगत सिंह को शहीद भगत सिंह बनाने मे ....???
लेनिन का दूर - दूर तक भगत सिंह पर कोई असर  नही था साम्यवाद ( communism' )कहता है राष्ट्रवादी समाजवाद लाने के लिए विरोध, धरना, अनसन करो आखिरी आदमी को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए सड़क पर उतरो हक की बात करो पर अपने हाथ में हथियार उठा कर युद्ध को दावत कभी मत दो ना ही युद्ध का समर्थन अथवा सहयोग करो क्योंकि साम्यवाद ( communism') युद्ध का विरोधी है ......,
वहीं दूसरी तरफ जब हम भगत सिंह के जीवन पर प्रकाश डालते हैं तो पाते हैं की : 4 साल का भगत सिंह खेत में बंदूक बो रहा है, किशोर वय भगत सिंह साॅण्डर्स को अपनी पिस्तौल से भुन रहा है , 22 साल का भगत सिंह एसेम्बली पर बम फेक रहा हैं बहरी हो चुकी ब्रीतानी हुकुमत का कान खोलने के लिए, 36 कोटी देवी - देवताओं का अपनी एक राष्ट्रमाता की भक्ति करने के लिए वहिस्कार कर रहा है जिस वंदेमातरम गाए जाने पर आधा भारत आज विरोध में खड़ा होता है ....उसी वंदे मातरम का अपने मुक्त कण्ठ से गान करते हुए वह 23 साल का आत्मास्तर पर गेरुआ आर्य समाजी फांसी का फंदा चूमता है ऐसे आर्य समाजी राष्ट्रयोगी को आप लेनिन का चेला माने बैठे हो । नही कभी  नही "भगत तो भारत माता का था, और भारत माता के लिए हथियार उठाया था , कर्म योगी कृष्ण का वर्तमान प्रतिमूर्ति था वह । "
हथियार / युद्ध विरोधी लेनिन का वह अनुयायी नही है .....क्योंकि भगत सिंह लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेता है बंदूक के दम पर और  थूकता है कांग्रेस के उस नरम दल के मुंह पर जिनको गोरों की सरपरस्ती प्राप्त हुई थी ।
आप कभी यह मत भूलना अंग्रेजों से हमने भारत को जितकर प्राप्त नहीं किया था, ना ही उन्हें देश से खदेड़ा था गोरों ने हमे हमारा देश हस्तांतरित किया था और शर्तिया हस्तांरित किया था याने-के - आने वाले 20 साल तक अगर भारतीयों को छींक भी आई तो गोरों की परमिशन के लेना होगा .......इस शर्त का असर हम सब उदाहरण स्वरूप आजादी के बाद चीन-भारत के युद्ध मे भारत की हार के रुप में देख सकते हैं ।
नरम दल वालों ने आजादी के बाद लाला लाजपत राय के एक चेले को लेनिन का चेला घोषित कर दिया और हम खामोश बैठे रहे । ब्रिटेन की फाईलों में हमारा भगता, हमारा सरफ़रोश आज भी उग्रवादी के नाम से दर्ज हुए बैठा है और हम खामोश बैठे हैं ....धिक्कार है .....धिक्कार है....
एक और बात किसी कम्युनिष्ट लेनिनवादी को फिरंगियों ने कभी उग्रवादी नाम नही दिया था । और भगत सिंह बाकायदा उग्रवादी नाम से उनकी फाईलों में दर्ज किए गए हैं । मै भगत सिंह पर जो किताब लेकर आ रही हूं वह हजार झूठ का ढोंग का पर्दाफ़ाश करेगी बस थोड़ा इंतज़ार करिए आप सब !!!

कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
०6/०3/2018

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माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

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