अपनी शहादत के 87 साल बाद भी आज़ाद भारत मे आज़ाद नही हो सके शहीद-ए-दआजम भगत सिंह !
शहादत दिवस पर मेरी किताब के पन्नो के बीच से  क्रांतिकारी भगत सिंह पर मेरी कलम के कुछ शब्द
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“ क्रान्ति का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है,
मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आजाद है,
मुझ जैसे देशभक्‍तों को अक्‍सर लोग पागल ही समझते हैं, पर उन्हे क्या पता अपनी गुलाम मातृभूमि की आजादी के लिए पागल हो जाना हर किसी के बस की बात नही होती ! 
                      : भगत सिंह !

व्‍यक्तियों को कुचलकर भी आप उनके विचार नहीं मार सकते हैं' यह कहना था शहीद-ए-आजम भगत सिंह का। शहीद-ए-आजम भगत सिंह की आज 23 मार्च  2019 को 87वीं पुण्यतिथि है। देश के सबसे बड़े क्रांतिकारी और अंग्रेजी हुकूमत की जड़ों को अपने साहस से झकझोर कर रख देने वाले शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह को 23 मार्च वर्ष 1931 को लाहौर पंजाब मे फांसी दी गयी थी ! 1947 मे हमारा देश आजाद हुआ पर 1947 से आज तक ऐसा लगता है सरदार भगत सिंह के बलिदान के साथ न्याय नही हो सका ! फांसी के 87 साल बाद भी भगत सिंह के बलिदान को आज़ादी नही मिल सकी !
जिक्र करना चाहती हूँ : महात्‍मा गांधी ने जब 1922 में चौरीचौरा कांड के बाद असहयोग आंदोलन को खत्‍म करने की घोषणा की तो भगत सिंह का अहिंसावादी विचारधारा से मोहभंग हो गया। उन्‍होंने 1926 में देश की आजादी के लिए “नौजवान भारत सभा” की स्‍थापना की।
23 मार्च 1931 की रात भगत सिंह को सुखदेव और राजगुरु के साथ लाहौर षडयंत्र के आरोप में अंग्रेजी सरकार ने फांसी पर लटका दिया।
यह चिन्तन करने का विषय है कि जब मृत्युदंड के लिए 24 मार्च की सुबह तय की गयी थी, तो 23 मार्च को ही
इन्हे फांसी पर क्यो दे दी गयी ? 
क्या सच मे उस वक्त जन आक्रोश से डरी थी ब्रिटिश हुकूमत/ब्रिटिश सरकार ? अथवाँ कुछ आन्तरिक विद्रोही लोगो की सहायता से एक सोची - समझी साजिश के तहत इसे अंजाम दिया गया !
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
स्तम्भकार/पत्रकार/लेखिका/
समीक्षक/स्वतंत्र टिप्पणीकार
  मार्च 23 2019

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